‘दलित-मुस्लिम एकता के विरुद्ध षड्यंत्र है सड़क दुधली गांव का दंगा’

आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

सहारनपुर : उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का सड़क दुधली गांव. अधिकतर दुकानें बंद. सड़कें सुनसान. सन्नाटा हर ओर क़ायम. गांव के ज़्यादातर मर्द नदारद. बल्कि यूं कहिए कि गांव में इस समय सिर्फ़ औरतें, बच्चे व बूढ़े ही बचे हैं और कोई भी मीडिया से बात करने के लिए राज़ी नहीं है.


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सच तो यह है कि लगभग दो हज़ार की आबादी वाले इस गांव में 20 से 40 साल के उम्र का एक भी मर्द आपको नहीं दिखेगा. क्योंकि बहादुर बनकर पुलिस के सामने ही पथराव करने वाला गांव का हर मर्द पलायन कर चुका है. शायद ये यूपी के नए पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह के उस बयान का असर है, जिसमें उन्होंने कहा है कि, ‘हम दंगे में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ ऐसी सख्त कार्यवाही करेंगे कि लोग याद रखेंगे. यहां स्पष्ट रहे कि इस मामले में गांव के लगभग 500 अज्ञात लोगों के विरुद्ध पुलिस ने मुक़दमा दर्ज किया है.

TwoCircles.net ने इस गांव का दौरा किया और गांव में फिलहाल मौजूद लोगों से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन ज़्यादातर लोग बात करने से बचते नज़र आएं. महज़ कुछ गिने-चुने लोगों ने ही अपनी बात रखी और इस पूरी घटना को दलित-मुस्लिम एकता के विरुद्ध षड्यंत्र बताया.

बसपा के पुराने कार्यकर्ता एडवोकेट सज्जाद हुसैन के मुताबिक़ यह भाजपा की दलित-मुस्लिम एकता को तोड़ने की साजिश थी, क्योंकि इस जनपद में दलित और मुस्लिम दोनों काफ़ी संख्या में हैं.

वो बताते हैं कि पहले भी इस तरह के प्रयास हुए हैं, मगर इस बार बहुत बड़ा षड्यंत्र था, जिसे प्रशासन ने नाकाम कर दिया. 

गांव के बुजुर्ग सूर्य प्रकाश कहते हैं, ‘बालक बहकावे में आ गए. शायद इन्होंने मुज़फ़्फ़नगर से कुछ नहीं सीखा. जाट ताक़तवर क़ौम है. दलित और मुसलमान तो दोनों गरीब हैं.’

गांव में बचे बड़े-बुजुर्गों में भी डर व भय का माहौल साफ़ दिख रहा था. शायद यही वजह है कि यहां बचे हुए लोग मीडिया से बात तो करते हैं, मगर अपना नाम नहीं बताते. वजह पूछने पर शमीम अपना तर्क रखते हैं, ‘पुलिस 500 अज्ञात लोगों को ढूंढ रही है, अख़बार में हमारा नाम पढ़ लिया तो?’

गांव के अनिल हिम्मत करते हैं और अपनी बातों को सामने रखते हैं. वो बताते हैं कि, ‘हमने तो अम्बेडकर जयंती पहले ही मना लिया था. उस दिन निकलने वाले अम्बेडकर जयंती के जुलूस का तो गांव के लोगों को कुछ पता ही नहीं था. सभी लोग बाहरी थे. बड़ी गाड़ियों और गले में भगवा अगोंछा डाले आए थे. अब बाबा साहब का इनसे क्या मतलब? डीजे में नारा बज रहा था,  ‘जय श्री राम… जय श्री राम’

फिर वो आगे कहते हैं, ‘अब अम्बेडकर जयंती पर श्री राम का क्या काम? सच तो यह है कि वो चाहते ही गड़बड़ थे.’

लंबी बातचीत में गांव के लोग बताते हैं कि हाल में ही यहां के पूर्व केंद्रीय मंत्री व कद्दावर नेता क़ाज़ी रसीद मसूद बसपा सुप्रीमो मायावती से मिलकर आए हैं. उनको बसपा में शामिल कर लिया गया है. उनके पुत्र शाजान मसूद गांव में शांति सन्देश लेकर गए थे.

लोगों का सवाल है कि, ‘कमाल की बात यह है कि बवाल सांसद राघव लखनपाल और उनकी टीम ने किया मगर अब मुक़दमा सड़क दुधली के लोग क्यों झेलेंगे? क्या ईमानदारी का चोला पहनने का दावा करने वाले सुलखान सिंह सांसद के लोगों को गिरफ़्तार करने की हिम्मत रखते हैं?’

लोगों का यह भी सवाल है कि दलित और मुस्लिम बहुल इस गांव में पिछले 7 साल से कभी भी अम्बेडकर जयंती के नाम पर जुलूस नहीं निकला था, तो इस बार क्यों? लोगों का यह भी कहना है कि 14 अप्रैल को जब देशभर में अम्बेडकर जयंती का आयोजन किया जा चुका था तो भाजपा सांसद ने 20 अप्रैल को सभी विद्यायकों समेत पूरी भाजपा वहां लेकर पहुंच गये. ये ठीक उसी तर्ज़ पर था जैसे मुज़फ़्फ़रनगर पंचायत में संगीत सोम लेकर पहुंच गए थे.

शायद लोगों को नेताओं की चाल समझ में आ चुकी है. इसलिए अब शांति की पहल दोनों तरफ़ से शुरू हो चुके हैं. बसपा से जुड़ी ‘भीम आर्मी’ नाम के एक संगठन ने एक वीडियो बनाया है जो पूरे इलाक़े में वायरल हो चुकी है. इस वीडियो में ‘भीम आर्मी’ के सदस्य मुसलमानों को अपना बताते नज़र आ रहे हैं और इस घटना को भाजपा वालों की साज़िश बताकर बहकावे में न आने की अपील कर रहे हैं. साथ ही अपने दलित समाज के लोगों को वो मुसलमानो से कोई झगड़ा न होने की बात भी कहते हैं. 

बताते चलें कि 20 अप्रैल को सड़क दुधली गांव से अंबेडकर यात्रा निकालने को लेकर हुए बवाल का कारण धार्मिक या आस्था का ना होने की बजाए राजनैतिक ज्यादा था. लोगों की माने तो दरअसल सहारनपुर से सांसद राघव लखनपाल के भाई राहुल यहां से मेयर पद का चुनाव लड़ने के फ़िराक में हैं. माना जा रहा है कि सारा घटनाक्रम इसी के इर्द गिर्द बुना गया है कि किस तरह समर्थन को वोट-बैंक में तब्दील किया जाए. लेकिन यहां अब ज़्याजातर लोग इस सियासत को समझने लगे हैं.

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