सहारनपुर जातीय संघर्ष : क्या सोचते हैं यहां के दलित नौजवान?

आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

सहारनपुर : उत्तर प्रदेश में सहारनपुर ज़िले के शब्बीरपुर व उसके आस-पास के गांव में शुक्रवार को हुए जातीय संघर्ष के बाद स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है. दलित युवाओं का दर्द व गुस्सा उनकी आंखों में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है.


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TwoCircles.net ने आज सहारनपुर से देहरादून की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित रविदासी आश्रम के दलित छात्रावास में जाकर उनसे बातचीत कर उनका दर्द समझने की कोशिश की. साथ ही  यह भी समझने की कोशिश की कि उनके दिल व दिमाग़ में इस समय क्या चल रहा है?

यहां के वार्डन संदीप कुमार बताते हैं कि, शब्बीरपुर गांव में बवाल की ख़बर आने के बाद वो अंदर तक हिल गए. उन्हें बताया गया कि राजपूतों ने गांव पर हमला कर दिया है. वो नंगी तलवारें लिए हुए थे और पुलिस ने उन्हें रोका नहीं. उन वहशी दरिंदों ने गांव में 25 से ज्यादा घर जलाकर राख कर दिए. औरतों और बच्चों की पिटाई की.

वो आगे बताते हैं कि, ‘गेंहू कटाई के कारण ज्यादातर लोग बाहर गए हुए थे. आमने-सामने लड़ते तो उन्हें अपनी औक़ात पता चलती.’ संदीप जब अपनी बातों को रख रहे थे तो उनका दर्द व गुस्सा उनकी आंखों से साफ़ झलक रहा है.   

अजय कुमार बताते हैं कि, यहां प्रधानी अक्सर दलितों के पास ही रहती है. शिवकुमार जाटव वर्तमान प्रधान है. पहले मेरे चाचा थे. लेकिन इस बार दूसरे स्थान पर राजपूत समाज का प्रत्याशी रहा. 20 साल से यहां राजपूत समाज से कोई प्रधान नहीं बना. जबकि पहले इनका वर्चस्व था. इसलिए अब उन्हें जलन होनी शुरू हो गई है और ये जलन उनके अंदर तक है. इसलिए वो पूरी ताक़त से अब दलितों को कुचल देना चाहते हैं. ये सबकुछ सोच-समझकर किया गया है. इसके पीछे गहरी राजनीति है.

जसवीर सवालिया अंदाज़ में बताते हैं, 14 अप्रैल को गांव के लोग बाबा साहब की जयंती मनाना चाहते थे, मगर राजपूत समाज ने विरोध किया और जयंती के असवर पर निकलने वाली शोभा यात्रा निकलने ही नहीं दिया. अब महाराणा प्रताप जयंती को नंगी तलवारों और गाजे-बाजे के साथ हमारे बीच से क्यों निकालना चाहते थे? क्या वो हमें यह अहसास दिला रहे थे कि तुम्हारी हमने निकालने नहीं दी और अपनी हम तुम्हारी छाती के ऊपर से लेकर जायेंगे.

सोनू कहते हैं कि, वो ताक़त के नशे में अंधे थे. विधायक कुंवर बृजेश सिंह और पास की विधानसभा थानाभवन के विधायक और मंत्री सुरेश राणा शिमलाना गांव में आ रहे थे. अहंकार में अंधे होकर गांव में उन्होंने रविदासी आश्रम में बाबा साहब की मूर्ति को नुक़सान पहुंचा दिया.

धर्मेंद्र नौटियाल कहते हैं कि, दलित ऊंची जातियों वालों की आंख में खटक रहा है. वो हमारा आत्मविश्वास कुचल रहे हैं. सड़क दुधली में भी दलित शामिल नहीं थे. हिन्दू महासभा और बजरंग दल के लोगों ने वहां बवाल कराया. अब शब्बीरपुर में राजपूतों ने दलितों पर अत्याचार किया. पुलिस हमारी सुन नहीं रही है. हम असहाय से हो गए हैं.

राहुल कहते हैं, आप अस्पताल जाकर देखिये घायल सिर्फ़ दलित समाज से मिलेंगे और उनमें भी महिलाएं ज्यादा हैं. कोई यह क्यों नहीं पूछ रहा है कि 2000 से ज्यादा की भीड़ तलवारें लेकर गांव में पहुंची कैसे, जबकि दलित नेता को अब तक भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है.

बताते चलें कि इस छात्रावास में जनपद भर के दलित युवा रहते हैं. पिछले 15 दिनों में दलितों के टकराव की दो बड़ी घटनाओं के बाद अब इन दलित नौजवानों में आक्रोश उबाल मार रहा है. ऊंची जात के लोगों के ख़िलाफ़ वो खुलकर बोल रहे हैं. लेकिन इनके आंखों में गुस्से के साथ-साथ उनके दर्द व डर को भी आसानी से देखा जा सकता है.

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