By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
जब सलमान खान की फ़िल्म ‘तेरे नाम’ रिलीज़ हुई तो कई युवाओं ने सिर के बीच से मांग काढ़कर लंबे बाल रखने शुरू कर दिए. यदि पाठक बनारस, इलाहाबाद या कानपुर से कोई ताल्लुक रखते होंगे तो जानते होंगे कि अक्सर सैलूनों और जींस बेचने वाली दुकानों पर सलमान खान एक ब्रांड-एम्बैसडर की तरह मौजूद रहते हैं.
थोड़ा और गहरे उतरने पर मालूम होता है कि लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत में बॉडी-बिल्डिंग के लिए सबसे देशज प्रेरणा सलमान खान ही देते आए हैं. किसी भी मंझले से मंझले जिम में घुसिए तो अर्नॉल्ड स्वार्ज़नेगर की न भले ही न मिले, सलमान खान ज़रूर मिलते हैं. सलमान खान ने खासकर मुस्लिम युवाओं में अपनी ख्याति, बदन और अभिनय – जो कि वे एक ख़राब अभिनेता ही हैं – के दम पर एक बड़ी जगह बनाई है. एक शहर पर ही केंद्रित होकर बात करें तो बनारस के मुस्लिमबहुल इलाके दालमंडी में सलमान-फीवर खासकर देखा जा सकता है.
अपने मत को और पुख्ता बनाने के लिए उस मसले की ओर ध्यान देना होगा जब लोकसभा चुनाव के पहले सलमान खान नरेन्द्र मोदी के साथ पतंग उड़ाते देखे गए थे. इसके कुछ रोज़ बाद सलमान खान के अब्बा ने उर्दू ज़ुबान में नरेन्द्र मोदी की वेबसाईट बनाने का बीड़ा उठा लिया. खुद को इश्तिहार की तरह पेश करने में माहिर नरेन्द्र मोदी ने सलमान खान को खुद से जोड़कर मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया था. मोदी को इस बात का मतलब पता था कि सलमान खान को लेकर मुस्लिम युवा किस कदर दीवाने हैं..
अब आज सलमान खान को साल 2002 में हुए हिट-एंड-रन मामले में मुम्बई की अदालत ने दोषी माना है, तो पूरा सोशल मीडिया आज सलमान खान की पैरवी और उनके प्रति दयाभाव से उतर आया है. सलमान खान को कानूनन गुनाहगार मानने का यही सिर्फ़ एक बहाना नहीं है. फ़िल्म अभिनेत्री ऐश्वर्य राय, अभिनेता विवेक ओबेराय और काले हिरन के शिकार जैसे कई मामले हैं, जिनमें सलमान खान दोषी साबित होते हैं. अपने जीवन के इन काले अध्यायों के बाद जब सलमान खान बुरे तरीकों से कानूनी पेंचों में फंसने लगे तो उन्होंने ‘बीइंग ह्यूमन’ की नींव डाली. सलमान खान के करीबी बताते हैं कि ऐसा उन्होंने अपना कलेवर बदलने के लिए किया था, ताकि उनके फैन्स के बीच उन्हें भरपूर समर्थन मिल सके.
लेकिन ऐसा नहीं कि ‘बीइंग ह्यूमन’ से सलमान खान ने एक मुक़म्मिल ह्यूमन होने का कोई काम किया हो. अपनी निजी सुरक्षा में लगे बॉडीगार्ड रवीन्द्र पाटिल को बरास्ते डिप्रेशन मौत तक धकेल देने का आरोप उन पर लगता आया है. यहां यह भी बता देना ज़रूरी है कि जब पहली बार ब्लॉगर सौम्यदीप्त बनर्जी ने सलमान खान के इस कारनामे को अपने ब्लॉग पर लगाया तो सलमान खान ने उन्हें पोस्ट हटा लेने वरना अंजाम भुगतने की धमकी दी.
अब प्रश्न उठता है कि इतनी सारी जानकारियों और बातों का मतलब क्या है? हम इन्हें क्यों यहां गिनाना चाह रहे हैं? आज दोपहर जब से सलमान खान का दोष मुक़र्रर हुआ है और उन्हें सज़ाएं सुनाई गयी हैं, तभी से सोशल मीडिया पर उनके चाहने वाले उमड़ पड़े हैं. उनके साथ खड़े होने, उनके साथ जेल जाने की दलीलें दी जा रही हैं. फैन-फालोइंग को छोड़ दें तो भावनात्मक और सामुदायिक स्तर पर सलमान खान से जुड़े लोग इसे इन्साफ का गला घोंटना बता रहे हैं. ऐसे मन यह साफ़ करना ज़रूरी है कि सलमान खान ने भले ही देश के आर्थिक और मनोरंजन जगत में बड़ा योगदान क्यों न दिया हो, लेकिन कानून और आम इंसान की नज़र में वे दोषी ही हैं. यह अंतर मिटाना होगा जहां हम आसाराम बापू सरीखे लोगों को दोषी मान लेते हैं, संजय दत्त को भी मान लेते हैं लेकिन सलमान खान के प्रति सिर्फ़ इसलिए उदार हो जाते हैं कि उदार होने का कोई सही कारण नहीं मिलता. अपराध और अपराधियों को लेकर कोई पैमाना न विकसित हुआ है, न ही बनाया जा सकता है. लोकतंत्र में ऐसी दलीलें देना मुश्किल है कि चार खून करने वाला खूनी है और तीन खून करने वाला भला.