अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
दिल्ली: देश में ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून 2010 से लागू है, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही सर्व शिक्षा अभियान जैसी महत्त्वपूर्ण योजना भी इस देश में चल रही है. लेकिन इन सबके बावजूद चौंकाने वाला तथ्य यह है कि दलितों और मुस्लिमों की शिक्षा का बड़ा हिस्सा आज भी प्राइमरी शिक्षा से वंचित है.
बीते दिनों राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है, जिसके मुताबिक़ देश में 6 से 13 वर्ष तक की आयु के 60 लाख से भी अधिक बच्चे स्कूलों की दहलीज़ से दूर हैं और इनमें सबसे अधिक संख्या मुसलमानों व दलितों समुदाय से आने वाले बच्चों की है.
पिछले महीने राज्यसभा में सीपीआई के सांसद केके रागेश द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने उत्तर के साथ इन चौंकाने वाले आंकड़ों को पेश किया.
आंकड़ें बताते हैं कि भारत में 6 से 13 साल की उम्र के 60 लाख 64 हज़ार और 230 बच्चे स्कूल से दूर हैं. इनमें सबसे अधिक संख्या दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों की है. यदि इन तीन तबकों के कुल वंचित बच्चों की संख्या को जोड़ दें तो यह संख्या स्कूल से दूर रहने वाले अन्य समुदाय के बच्चों के मुक़ाबिले तीन गुना अधिक है. दलित, मुस्लिम और आदिवासी समुदाय के वंचित बच्चों की संख्या कुल संख्या का लगभग 75 प्रतिशत है.
इन आंकड़ों के मुताबिक़ स्कूल से दूर रहने वाले बच्चों की कुल संख्या में 32.4 प्रतिशत बच्चे अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. वहीं 25.7 प्रतिशत संख्या मुसलमान बच्चों की है और 16.6 प्रतिशत बच्चे अनुसूचित जनजाति के हैं.
2014 में आईएमआरबी नामक संस्था द्वारा किए गए सर्वे से यह बात सामने आई है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे अधिक बच्चे स्कूलों से दूर हैं. उत्तर प्रदेश में कुल 16 लाख 12 हज़ार 285 बच्चे स्कूल से दूर हैं, इस संख्या में 5,60,531 की तादाद अनुसूचित जाति की है. वहीं 5,57,870 बच्चे मुसलमान और 1,08,883 अनुसूचित जनजाति के बच्चे शामिल हैं.
इसी तरह बिहार में कुल 11 लाख 69 हज़ार 722 बच्चे स्कूलों से दूर हैं. जिसमें 5,24,150 अनुसूचित जाति 2,46,004 मुस्लिम और 30,746 अनुसूचित जनजाति के बच्चे शामिल हैं.
सबसे अच्छे हालात गोवा में मिलते हैं. यहां एक भी बच्चा स्कूल से बाहर नहीं है. इसके बाद नंबर लक्षद्वीप का आता है. जहां सिर्फ 267 बच्चे से स्कूल से बाहर हैं. इसका मतलब यह है कि केन्द्रशासित प्रदेशों में शिक्षा की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है. उत्तर पूर्व के कई राज्यों में भी शिक्षा की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है.
इस सन्दर्भ में एक अच्छी ख़बर यह है कि देश में स्कूल न जाने वाले बच्चो की सही संख्या का पता लगाने और उन्हें स्कूल तक पहुंचाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने पहल की है. इस मसले को लेकर नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाईल्ड राइट्स और मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से पिछले दिनों एक समीक्षा बैठक की गई. इसमें देशभर से 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के शिक्षा सचिवों, शिक्षा अधिकारियों के अलावा नेशनल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन के सदस्य, मानव संसाधन मंत्रालय, लेबर मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भाग लिया. अब देखना दिलचस्प होगा कि कैसे भारत के इन नन्हें सपनों को सरकार स्कूल तक पहुंचाने में कामयाब होती है.