झारखंड: भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस फायरिंग

TCN News

हजारीबाग(झारखंड): झारखण्ड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव के आदिवासी अपनी 17,000 एकड़ जमीन बचाने के लिए पिछले 15 दिनों से शांतिपूर्ण कफ़न सत्याग्रह चला रहे थे. 1 अक्टूबर की सुबह के 4 बजे पुलिस ने सत्याग्रह स्थल पर सो रहे लोगों पर बर्बर पुलिस फायरिंग की. इस फायरिंग में 4 लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी.


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बीती शाम तक कुल 6 लोगों का पोस्टमार्टम किया जा चुका था. मरने वालों में ज्यादातर नौजवान शामिल हैं. इस फायरिंग में एक 13 साल के बच्चे को भी गोली मारी गई है. पुलिस फायरिंग में लगभग 75 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. घायलों में से 35 लोग रांची में भर्ती हैं तो बाकि घायल हजारीबाग के जिला चिकित्सालय में भर्ती हैं.

स्थानीय लोगों की मानें तो हजारीबाग का पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया है. जिले में धारा 144 लागू कर दी गयी है.

दरअसल पिछले 15 सितम्बर से यहां के ग्रामीण NTPC द्वारा कोयला खदान के लिए उनकी ज़मीनों के अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे. NTPC द्वारा अधिग्रहण के लिए कुल प्रस्तावित भूमि 47 वर्ग किलोमीटर में फ़ैली हुई है.

इस साल वन विभाग में 2,500 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका था. लेकिन प्रस्तावित 17,000 एकड़ के कुल अधिग्रहण के लिए नियमानुसार 70 प्रतिशत ग्राम सभाओं की सहमति ज़रूरी है, अन्यथा अधिग्रहण नहीं किया का सकता है.

एकता परिषद् से जुड़े बीरेंद्र कुमार ने समाचार संस्था TheWire से बातचीत में बताया था कि पुलिस की पांच और रैपिड एक्शन फ़ोर्स की एक टुकड़ियां प्रदर्शन स्थल पर पहुंचीं, जहां हज़ारों की संख्या में ग्रामीण आदिवासी सो रहे थे. उन्होंने TheWire को आगे बताया है, ‘वे वहां बैठे लोगों से घटनास्थल खाली करने को कहने लगे. जब लोग नहीं माने तो वहां बैठी महिलाओं को बाल से पकड़कर घसीटना शुरू कर दिया.’

इस मामले में प्रशासन की ओर से कोई बयान अभी तक जारी नहीं किया गया है. अधिकारी बता रहे हैं कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलायी.

विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन की झारखंड ईकाई ने बयान जारी कर इसकी कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा है, ‘हम सरकार के किसान विरोधी, आदिवासी विरोधी खनन नीतियों का और उनसे हो रहे विस्थापन का पुरजोर विरोध करते है. पूंजीवादी-साम्राजवादी हितों की रक्षा के लिए सरकार जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधन व राजकीय पूंजी को साम्राज्यवादी पूंजीपतियो व भारत के बड़े पूंजीपतियों को सौंप रही है. वन संरक्षण के नाम पर आदिवासी बहुल इलाको से ग्रामीण को जंगल और जमीन से खदेड़ा जा रहा है. इसकी जितनी निंदा की जाए, कम है.’

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