एक फिल्म जो कैराना की असल हकीक़त दिखाती है

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी/ दिल्ली: बीते चार महीनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले कैराना का नाम साम्प्रदायिकता के नए गढ़ के रूप में कई बार उछाला गया है. सबसे पहले तो हुकुम सिंह के कथित पलायित लोगों की सूची से इस कस्बे का नाम लोगों ने जाना.


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Kairana Surkhiyon ke baad Poster

सूची आने के बाद मीडिया का बड़ा तबका कैराना की साम्प्रदायिकता को भुनाने में जुट गया. फिर बीते महीने सितम्बर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कैराना के कथित पलायन को एक बड़ी समस्या का रूप दे दिया गया.

समाचार संस्था The Wire और चलचित्र अभियान के बैनर तले स्वतंत्र फिल्मकार नकुल सिंह साहनी ने ‘कैराना – सुर्ख़ियों के बाद’ नाम से एक 27 मिनट की डाक्यूमेंट्री बनायी है. इस डाक्यूमेंट्री में कैराना में पलायन की समस्या की असल हकीकत को दिखाने का प्रयास किया गया है.

मुज़फ्फ़रनगर दंगों पर केंद्रित फिल्म ‘मुज़फ्फरनगर बाक़ी है’ बनाने वाले नकुल की इस हालिया फिल्म में उन मुद्दों को सामने लाने की कोशिश की गयी है, जो कैराना जैसे किसी भी क़स्बे की असल समस्या हैं.

इस फिल्म को देखने पर यह साफ़ पता चलता है कि कैराना के मजदूर – चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान – रोज़ कई किलोमीटर का सफ़र करके शामली या पानीपत काम ढूंढने जाते हैं, तब वे कहीं जाकर मात्र 300 रुपयों की कमाई कर पाते हैं.

कैराना के लोग बताते हैं कि यहां हिन्दू-मुसलमान जैसी कोई भी समस्या नही है, यहां जो भी पलायन हुए हैं वे गुंडागर्दी के कारण हुए हैं. फिल्म में एक मुस्लिम शख्स से बातचीत है, जिसके घर की दीवार से लगायत एक मंदिर की दीवार है. और उक्त मुस्लिम के साथ-साथ मंदिर का पुजारी भी बताते हैं कि इलाके में हिन्दू-मुसलमान के बीच किसी भी तरीके का संघर्ष नहीं है.

हालांकि इलाके के लोग यह भी कहते हैं कि कैराना में न्याय व्यवस्था की समस्या है, जिसका किसी धर्म विशेष से कोई लेना देना नहीं है. इस न्यायव्यवस्था और दूसरे कारणों के चलते यहां पलायन तो हुआ है लेकिन साथ में यह भी एक तथ्य है कि पलायन करने वाले लोगों में सिर्फ हिन्दू नहीं मुसलमान भी हैं.

कैराना कस्बे की लड़कियों का कहना है कि उन्हें छेड़ने वाले ये नहीं देखते कि लड़कियां हिन्दू हैं या मुसलमान. उन्हें बस एक लड़की दिखती है.

फिल्म के निर्देशक नकुल हमसे बातचीत में बताते हैं कि जिस समय हुकुम सिंह द्वारा लिस्ट जारी करने की पहली खबर आयी थी, उसी समय उन्हें अंदाज़ लग गया था कि इस लिस्ट का असल स्वरुप हफ्ते भर के भीतर सामने आ जाएगा. और यह हुआ भी. नकुल सिंह साहनी प्रश्न उठाते हैं, ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट देखकर लगता है कि आयोग की जांच में कई चीज़ों की कमी थी, यदि आयोग को कैराना के 346 लोग दिख रहे थे, तो आयोग ने मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद से पलायित 80 हज़ार लोगों के बारे में भी रिपोर्ट लेकर आना चाहिए. आयोग को यह भी बताना चाहिए कि उन विस्थापितों के पास रोज़गार, भत्ता या दूसरी मूलभूत सुविधाएं पहुंची हैं या नहीं.

नकुल कहते हैं, ‘बेशक़ कैराना से पलायन हुआ है. लेकिन इस पलायन के पीछे लगभग वही कारण हैं जो पलायन के आम कारण होते हैं. उनके साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फ़ैली हुई क़ानून व्यवस्था की कमी भी पलायन का एक बड़ा कारण है. पलायन करने वालों में हिन्दू हैं तो मुसलमान भी हैं, इसे लेकर कोई खाक़ा नहीं खींचा जा सकता है.’

मात्र 27 मिनट की यह फिल्म कई सवालों की परतें उधेड़ती है. इस फिल्म को नीचे देखा जा सकता है.


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