अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
तावड़ू (हरियाणा) : मेवात ज़िले के डींगरहेड़ी गांव में 24-25 अगस्त की रात को गौरक्षकों द्वारा दो लोगों की हत्या, एक नाबालिग़ समेत दो के साथ गैंगरेप और लूट की घटना के बाद अब पीड़ित परिवार को इंसाफ़ दिलाने में खट्टर सरकार की नाकामी को देखते हुए अब मेवात के लोगों ने महापंचायत के ज़रिए इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी उठाई है.
गुरूवार को मेवात की तावड़ू मंडी में आयोजित इस महापंचायत में कई मांगे रखी गई. सबसे पहली मांग इस घटना की सीबीआई जांच कराने की है. इसकी वजह यहां के लोगों का राज्य प्रशासन में बिल्कुल भी यक़ीन न होना है. दूसरी अहम मांग दोषियों को फांसी की सज़ा देने की है, ताकि मेवात में कोई ऐसा जघन्य अपराध करने की दुबारा जुर्रत न करे.
इस महापंचायत की ख़ास बात यह रही कि इसमें 36 बिरादरियों के लोग शामिल हुए. किसी में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था. न ही कोई आपसी रंजिश या दुर्भावना थी, बल्कि इस महापंचायत में कुछ नेताओं ने अपनी पुरानी रंजिश को भूल इंसाफ़ के इस लड़ाई में एकजुट होने का पैग़ाम दिया. मक़सद सिर्फ़ मज़लूमों को इंसाफ़ दिलाना है और इस कोशिश में समाज के तमाम लोग इस महापंचायत की छतरी तले एकजूट हो चुके हैं.
बताते चलें कि अपने पुरखों के ज़माने से एक दूसरे के धुर विरोधी रहे तय्यब और खुर्शीद के लाडले पूर्व परिवहन मंत्री आफ़ताब अहमद और मौजूदा विधायक ज़ाकिर हुसैन पीड़ित परिवार को हक़ दिलाने के लिए न सिर्फ़ एक साथ नज़र नहीं आयें, बल्कि दोनों ने हाथ से हाथ मिलाकर इस मुहीम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अपनी एकजुटता का संदेश भी दिया.
ये एकजुटता इस उम्मीद को जन्म देती है कि यदि राज्य प्रशासन नाकाम रहा तो मेवाती जनता की आन्दोलन का दबाव इसे अंजाम तक ज़रूर पहुंचाएगा. यह आन्दोलन जितना मज़बूत होगा, सरकार उतना अधिक झुकने को मजबूर होगी.
यहां बात सिर्फ़ इस मेवात की घटना की नहीं है. अगर ये मसला अपने अंजाम तक पहुंचा तो यह तय मानिए कि यह महापंचायत दूसरे मामलों के लिए उदाहरण साबित होगी और इंसाफ़ की मशाल की रोशनी दूर-दूर तक नज़र आएगी.
पुलिस प्रशासन और सरकार की मंशा पर सवाल उठाते यह तथ्य:
इस महापंचायत में सरकार व पुलिसिया तंत्र पर कई सवाल खड़े किए गए और इन सवालों पर यहां के प्रशासन की चुप्पी और भी गंभीर सवाल खड़े करती है. मेवात के लोगों का साफ़तौर पर कहना है कि जिस तरीक़े से इस केस को कमज़ोर बनाकर आरोपियों को बचाने की कोशिश की जा रही है, इसमें सरकार के साज़िश की बू आती है.
– डबल मर्डर होने के बाद भी पुलिस ने आरोपियों पर हत्या की धारा 302 क्यों नहीं लगायी?
– जांच एजेंसी ने इस केस में डीएनए और लाइ डिटेक्टर टेस्ट के लिए अदालत में अर्ज़ी लगाई थी. वकील आबिद हुसैन पूछते हैं कि पीड़ितों के समक्ष मुलज़िमों की शिनाख़्त परेड करवाने की बजाय डीएनए और लाइ डिटेक्टर टेस्ट की मांग के क्या मायने हैं?
– हमेशा डीएनए टेस्ट के लिए आरोपियों के परिवार वाले आवेदन करते हैं, लेकिन यहां तो पुलिस आवेदन कर रही है, आखिर ऐसा क्यों?
– जिन पीड़ित लड़कियों के साथ रात के अंधेरे में 3-4 घंटे तक अत्याचार किया गया, उनके मामा-मामी का क़त्ल कर दिया गया. एक बेटी के मां-बाप को हत्या के क़रीब पहुंचा दिया गया. ऐसी स्थिति में पीड़ित लड़कियों को सांत्वना देने के बजाय पुलिस उन्हें बयान के लिए थाने ले गई, जहां उन्हें एक कमरे में बंद करके रखा गया. लड़कियों से 164 का बयान ऐसी हालत में कराया गया, जब दोनों लड़कियां होश में नहीं थी. आख़िर पुलिस को इतनी जल्दी क्यों थी?
– जिस जगह यह घटना हुई है, वहां से थाने की दूरी सिर्फ़ 9 मिनट है. पुलिस घटनास्थल पर कुछ ही देर में पहुंच गई थी, लेकिन पुलिस ने एफ़आईआर पूरे 9 घंटे के बाद दर्ज की, वो भी घायलों के बयान पर नहीं, बल्कि उन पीड़ित लड़कियों के बयान पर, जो उस समय होश में नहीं थी. आख़िर ऐसा क्यों?
– 25 अगस्त को दर्ज एफ़आईआर में धारा 459, 460, 376 डी, पॉक्सो-6 और आर्म्स एक्ट शामिल थीं. दो मौत होने के बावजूद तावड़ू पुलिस ने हत्या 302 और हत्या की कोशिश की धारा 307 क्यों नहीं लगाई?
– इस वारदात में चार लोगों से ज़्यादा होने की आशंका है, लेकिन डकैती की धारा 396 भी नहीं जोड़ी गई.
– सुबूत जुटाने की बजाए महिला आयोग की टीम ने दरबार लगाया? महिला अधिकार कार्यकर्ता जगमति सांगवान का कहना हैं कि मदद के बजाय पुलिस ने इस केस में पीड़ितों के मानवाधिकारों का हनन किया. एक गैंगरेप पीड़ित नाबालिग़ है. उसकी काउंसिलिंग या एनजीओ की मदद के बजाय पुलिस द्वारा बयान लेकर उसे डिप्रेशन में ढकेलने का काम किया गया. महिला आयोग की टीम भी पीड़ितों से मिलने की बजाए दरबार सजाकर बैठ गई जबकि उसे मुलाक़ात के अलावा मौक़े पर जाकर सुबूत इकट्ठा करना चाहिए था.
तावड़ू के अफ़सर इन सवालों के जवाब देने के बजाए बचते नज़र आ रहे हैं. तावड़ू थाने के एसएचओ जयप्रकाश यादव और डिप्टी एसपी सुमेर सिंह से इन सवालों की वजह पूछने पर हमें भी जवाब मिला – नो कॉमेंट.
मेवात पुलिस के डिप्टी एसपी आशीष चौधरी स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम के प्रमुख हैं. ये सारे सवाल पूछने पर उन्होंने ख़ुद को मीटिंग में बताकर फोन रख दिया. इस केस की निगरानी कर रही साउथ रेंज की आईजी ममता सिंह ने भी फोन नहीं उठाया.
महापंचायत की खट्टर सरकार से 6 मांगे:
1. इस मामले की सीबीआई जांच हो.
2. तावड़ू के तमाम पुलिस अमले की तबादला किया जाए.
3. दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर उनको सस्पेंड किया जाए.
4. तीनों पीड़ित परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी और 50-50 लाख का मुआवजा दिया जाए.
5. यह मामला फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए.
6. अपराधियों को फांसी की सज़ा दी जाए.
स्पष्ट रहे कि इस महापंचायत ने इस मामले की सम्पूर्ण देख-रेख की ज़िम्मेदारी ‘मेवात बार एसोसिएशन’ को पूरी तरह से सौंपी है. साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि बार एसोसिएशन का कोई वकील अपराधियों की ओर से वकालत नहीं करेगा. साथ ही देश के अन्य राज्यों के वकीलों से भी अपील की गई कि वो ऐसे जघन्य अपराधी के केस में पैरवी न करें. इतना ही नहीं, इन मांगों को मानने के लिए सरकार को 3 दिन का टाईम दिया गया है. साथ ही यह कहा गया कि अगर यह मांगे पूरी नहीं हुई तो अगला महापंचायत नूह में आयोजित कर पूरे हरियाणा में एक बड़ा आन्दोलन खड़ा किया जाएगा. इस खट्टर सरकार की ईंट से ईंट बजा दी जाएगी. हालांकि इस महापंचायत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पूरा आन्दोलन अहिंसक होगा.
इस महापंचायत की अध्यक्षता मौलाना मोहम्मद इसहाक़ ने की, जबकि महापंचायत में बीजेपी सांसद धर्मवीर सिंह, पूर्व परिवहन मंत्री आफ़ताब अहमद, पूर्व मंत्री कप्तान अजय यादव, पूर्व मंत्री मोहम्मद इलियास, ‘स्वराज अभियान’ के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव, विधायक ज़ाकिर हुसैन, विधायक नसीम अहमद, पूर्व विधायक अजमत खान, पूर्व मंत्री आज़ाद मोहम्मद, पूर्व विधायक शाहिद खान, पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान, पूर्व डिप्टी स्पीकर आज़ाद मोहम्मद, कांग्रेस नेता मामन खान इंजीनियर, जमाअत-ए-इस्लामी हिन्दी के नायब अमीर नुसरत अली व सचिव मो. सलीम इंजीनियर, सीपीआई के नेता अमीक़ जामई, एडवोकेट महमूदुल हसन, समाजसेवी एडवोकेट रमजान सहित कई खाफ और पालों के चौधरी और प्रमुख मौजूद थे.