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लखनऊ : अक्षरधाम मंदिर हमले में पोटा और गुजरात हाईकोर्ट की साम्प्रदायिक मानसिकता के चलते फांसी की सज़ा पाने के बाद सुप्रीम कोर्ट से बरी हुए बरेली निवासी चांद खान वैसे तो राज्य सरकार से मुवाअज़ा पाने के हक़दार हैं, लेकिन सरकार ने मुवाअज़ा देने के बजाए गोमांस के नाम पर जेल में डाल दिया है. वो पिछले तीन महीने से पीलीभीत जेल में बंद हैं.
इस ख़बर के आने के बाद लखनऊ की सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने इसे सपा सरकार की साम्प्रदायिकता का ताज़ा उदाहरण बताया है.
रिहाई मंच की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच नेता और अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले पर लिखी गई पुस्तक ‘ऑपरेशन अक्षरधाम’ के लेखक राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 11 साल तक बेगुनाह होने के बावजूद जेल में रहने के बाद चांद खान ने 2014 में छूटने के कुछ दिन बाद से परिवार को पालने के लिए कार चलाने का काम शुरू कर दिया था, जिसके तहत वे सवारी ढ़ोने लगे. इसी दौरान 15 जून 2016 को जब सवारी छोड़कर वापस लौट रहे थे, तब बीसलपुर थाना अंर्तगत पड़ने वाले नवदिया सितारगंज इलाक़े में सब इंस्पेक्टर श्याम सिंह यादव ने उन्हें और उनके दो अन्य साथी अतीक़ और फैज़ान को गोकशी के झूठे आरोप में गिरफ़्तार किया. फिर उनके पास से पांच सौ किलो कथित गोमांस की बरामदी दिखाकर जेल भेज दिया. जबकि सच्चाई यह थी कि उनके पास से पुलिस को कुछ भी नहीं बरामद हुआ था और वे बिना किसी सामान के गाड़ी से लौट रहे थे.
राजीव यादव का कहना है कि पुलिस का झूठ इससे भी बेनक़ाब हो जाता है कि कोई बरामद मांस किस चीज़ का है इसकी जांच फोरेंसिक लैब में होती और उसे आने में महीनों लग जाते हैं. लेकिन इस मामले में पुलिस ने फौरन उन्हें आरोपी बनाकर चलान कर दिया जो पुलिस की आपराधिक नीयत साबित कर देता है.
शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि अक्षरधाम मंदिर में हुए कथित आंतकी हमले के आरोप से बरी होने के कारण ही पुलिस चांद खान को गोकशी के झूठे आरोप में फंसा रही है ताकि वो जेल के अंदर रहे. जिससे गुजरात पुलिस, आईबी और एटीएस समेत तत्कालीन मुख्मंत्री नरेंद्र मोदी की अक्षरधाम मंदिर हमला मामले में संलिप्तता पर बोलने के लिए कोई बाहर न रह जाए.
उन्होंने कहा कि गुजरात में भी इस मामले से बरी हुए लोगों को पुलिस, आईबी और एटीएस लगातार डराती धमकाती रहती है, जिसके खिलाफ़ वहां कई बार विरोध प्रर्दशन भी हुए हैं.
राजीव यादव बताते हैं कि होना तो यह चाहिए था कि बेगुनाह होने के बावजूद 11 साल तक जेल में फांसी के डर में जीने वाले चांद खान को अपने चुनावी वादे के मुताबिक़ सरकार मुआवज़ा देकर उसका पुर्नवास करती, लेकिन ऐसा करने के बजाए अखिलेश सरकार उसे फिर से फ़र्ज़ी मामले में जेल भेजकर अक्षरधाम मामले में बेगुनाहों को फंसाने के असली दोषी नरेंद्र मोदी को बचा रही है.
यहां गौरतलब है कि 14 मई 2014 को सुनाए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को बेगुनाह बताते हुए गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री को आरोपियों के खिलाफ़ निराधार और संगीन आरोप लगाने में अपने विवके का इस्तेमाल नहीं करने के लिए तीखी आलोचना की थी. यहां यह भी स्पष्ट रहे कि गृह मंत्रालय का कार्यभार भी उस समय मुख्यमंत्री मोदी ही सम्भाले हुए थे.