‘योगी मुख्यमंत्री रहते जेल जाने वाले पहले मुख्यमंत्री होंगे’

TwoCircles.net News Desk

लखनऊ : 2007 गोरखपुर में हुए मुस्लिम विरोधी साम्प्रदायिक हिंसा की जांच मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी और अन्य आरोपियों के खिलाफ़ सीबीसीआईडी जांच के लिए 153 (ए) के तहत अनुमति नहीं दिए जाने पर राज्य सरकार से जवाब तलब करते हुए तीन हफ्तों के अंदर रिपोर्ट पेश करने को कहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये निर्देश सामाजिक कार्यकर्ता परवेज़ परवाज़ व असद हयात की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है.


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उत्तर प्रदेश की राजनीतिक व सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने अदालत के इस क़दम का स्वागत किया है. मंच ने उम्मीद जताई है कि इस संगीन आरोप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सज़ा होगी और योगी मुख्यमंत्री के बतौर जेल जाने वाले पहले व्यक्ति होंगे.

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा है कि पिछले दो साल से अखिलेश सरकार का इस मामले में जांच की अनुमति नहीं देना साबित करता है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह ही संघी तत्वों को अदालती कार्यवाईयों से बचाने के नक़्शे-क़दम पर चल रहे थे.

राजीव यादव ने कहा है कि अगर पिछली अखिलेश सरकार ने इन संगीन आरोपों में जांच की अनुमति दे दी होती तो आज योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री आवास में नहीं बल्कि जेल की सलाखों के पीछे अपने पापों की सज़ा काट रहे होते.

रिहाई मंच लखनऊ के प्रवक्ता अनिल यादव ने मुख्यमंत्री के खिलाफ़ आए अदालत के इस महत्वपूर्ण निर्देश का मीडिया से पूरी तरह ग़ायब रहने को मीडिया की संघ और भाजपा की दलाली का ताज़ा उदाहरण बताया है.

उन्होंने कहा कि मीडिया को समझना चाहिए कि किसी हत्यारे को संत बताने से हत्यारा संत नहीं हो जाएगा. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और संघ परिवार समर्थित हिंदुत्ववादी मीडिया आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के बजाए योगी और सन्यासी जैसा उत्पाद बताकर न सिर्फ़ उनके प्रति अपनी भक्तिभावना प्रदर्शित कर रही है, बल्कि इस इमेज मेकिंग के बहाने योगी की प्रशासनिक अक्षमताओं पर जनता को सवाल उठाने से रोकने का मनोवैज्ञानिक दबाव भी डाल रही है.

यहां ग़ौरतलब है कि 153 (ए) आईपीसी के तहत साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषण के आरोप में न्यूनतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है. इसके किसी भी मामले का संज्ञान कोर्ट नहीं लेगी यदि राज्य सरकार या केंद्र सरकार ने इसकी मंज़ूरी नहीं दी हो.

मुक़दमे की पृष्ठभूमि बताते हुए प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि 27 जनवरी 2007 की रात गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर योगी आदित्यनाथ ने विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की मेयर अंजू चौधरी की मौजूदगी में हिंसा फैलाने वाला भाषण देते हुए ऐलान किया था कि वो मुहर्रम में ताजिया नहीं उठने देंगे और खून की होली खेलेंगे. जिसके लिए उन्होंने आस-पास के ज़िलों में भी अपने लोगों को कह दिया है.

इस भाषण के बाद भीड़ ‘कटुए काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे’ के नारों के साथ मुसलमानों की दुकानें फूंकती आगे बढ़ती चली गई थी. इसके साथ ही गोरखपुर, देवरिया, पडरौना, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर में योगी के कहे अनुसार ही मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी. लेकिन इस पूरे प्रकरण जिसमें मुसलमानों की करोड़ों की सम्पत्ति का नुक़सान हुआ था, एफ़आईआर तक दर्ज नहीं हुआ था. जिसके बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं परवेज़ परवाज़ और असद हयात द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट पेटिशन दायर कर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई, लेकिन अदालत ने उसे खारिज करते हुए सेक्शन 156 (3) के तहत कार्रवाई का निर्देश दिया. जिसके बाद सीजेएम गोरखपुर की कोर्ट में एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए गुहार लगाई गई. जिस पर कुल 10 महीने तक सुनवाई चली और अंततः मांग को खारिज कर दिया गया. जिसके ख़िलाफ़ फिर हाईकोर्ट में रिवीजन दाखिल हुआ. तब जाकर इस मामले में एफ़आईआर दर्ज हो पायी थी.

वहीं इस एफ़आईआर के दर्ज होने के बाद योगी के साथ सहअभियुक्त अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एफ़आईआर और जांच पर स्टे ले लिया. जिसके बाद 13 दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने अंजू चौधरी की एसएलपी को खारिज कर दिया और जांच के आदेश दे दिए, लेकिन सीबीसीआईडी की इस जांच के लिए अखिलेश यादव सरकार ने अपने जांच अधिकारी को अनुमति ही नहीं दी और मामला वहीं का वहीं पड़ा रहा.

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