अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : भारत में मुसलमानों और उन्हें मिलने वाली सरकारी सहूलियतों को लेकर समाज में ढे़र सारी ग़लतफ़हमियां हैं. उनमें से एक ये भी है कि भारत के मुसलमान सरकार के पैसे से हज करते हैं. इस ग़लतफ़हमी की सबसे बड़ी वजह ये है कि भारत सरकार मुसलमानों के विरोध के बावजूद उन्हें हज करने के लिए सब्सिडी देती है.
हज का महीना शुरू हो चुका है. भारत के अलग-अलग हिस्सों से मुसलमान हज के लिए जाने लगे हैं. TwoCircles.net की कोशिश है कि एक सीरीज़ के ज़रिए अपने पाठकों तक हज से जुड़े सटीक तथ्य पहुंचाए.
हज पर जाने के इच्छुक व्यक्ति प्रक्रिया की शुरुआत फॉर्म भरने से करते हैं. हर साल हज के लिए जब आवेदन के लिए फॉर्म निकलता है तो इस बात को प्रचारित किया जाता है कि आवेदन फ्री है. लेकिन हमने अपने पड़ताल में पाया कि आवेदन निशुल्क नहीं होता. आवेदन फॉर्म भले ही मुफ़्त में मिलता हो, लेकिन मुसलमानों को प्रत्येक आवेदन पर 300 रूपये का शुल्क देना पड़ता है.
हज कमिटी ऑफ इंडिया का कहना है कि, ये 300 रूपये प्रोसेसिंग फ़ीस होती है, जिसे सबसे लिया जाता है. इस प्रोसेसिंग फ़ीस को वापस नहीं किया जा सकता, भले ही आपका नंबर ड्रॉ में निकले या नहीं.
हज कमिटी ऑफ इंडिया के डिप्टी सीईओ फ़ज़ल सिद्दीक़ी TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं कि इस वापस न की जाने वाली रक़म में 200 रूपये राज्यों के हज कमिटी को दे दिया जाता है. बाक़ी रक़म हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के पास रहती है और ये रक़म फॉर्म व गाईडलाइंस के छपाई के खर्चे में जाता है. साथ ही इस कार्य के लिए स्टाफ़ लगाए जाते हैं. इसी रक़म से उन्हें भी सैलरी दी जाती है.
बताते चलें कि हज के लिए आवेदन ऑनलाईन कर दिया गया है, लेकिन फ़ज़ल सिद्दीक़ी बताते हैं कि अभी भी लोग भारी संख्या में ऑफलाईन फॉर्म ही भरते हैं.
अब यदि सरकारी आंकड़ों की बात करें तो इस साल हज पर जाने के लिए भारतीय हज समिति में कुल 4,48,266 आवेदन प्राप्त हुए जिनसे कुल 13 करोड़ 44 लाख 79 हज़ार 800 रूपये हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के खाते में आया है.
स्पष्ट रहे कि इस साल भारत से कुल 1,25,025 लोग हज पर जाएंगे. इनमें वीआईपी के लिए 500, ख़ादिमूल हुज्जाज के लिए 625 और मेहराम के लिए 200 सीट का कोटा रिजर्व हैं. यानी कि आम मुसलमान जो हज करने जा रहे हैं उनकी संख्या 1,23,700 है. इस तरह लगभग 13.44 करोड़ रुपये हज कमिटी ऑफ इंडिया पहले ही कमा लेती है.
हज के मामलों पर काम करने वाले मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता अत्तार अज़ीमी की माने तो ये रक़म कई महीनों तक हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के बैंक खाते में पड़ी रहती है और इसके ब्याज का लाभ भी हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ही लेती है. राज्यों के हज कमिटी को ये रक़म काफी महीनों के बाद दी जाती है.
अत्तार अज़ीमी ये भी बताते हैं कि, 2011 तक आवेदन के प्रोसेसिंग के नाम पर ये फ़ीस सिर्फ़ 200 रूपये थी, जिसे 2012 में बढ़ाकर 300 रूपये कर दिया गया.