आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
अलीगढ : सवाल यह है कि अच्छी तरह साफ़ की गयी अलीगढ की सबसे व्यस्त सड़क पर सफेदी तो दिखाई देती है मगर खून के छींटे नही. सवाल यह भी है लाइसेंसी पिस्टल की पूरी मैगजीन किसी छाती में उतार दी जाये तो झगडे में चलाई गई गोली है या नफरत की इंतहा…
आधे घण्टे तक आसमोहम्मद और वसीम की लाश अलीगढ के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके में सड़क पर पड़ी रहती है. हमलावर आसानी से निकल जाते है और ऐसा तब होता है जब वो अपने हथियार पूरी तरह बारूद से खाली कर चुके होते है. भीड़ यहाँ तमाशबीन की तरह देखती रहती है. ना हत्यारों को पकड़ने को कोशिश करती और ना तड़पते मजलूमो को अस्पताल पहुंचाने की पहल.
भीड़ तंत्र यहाँ कथित तौर पर जागरूक नही होता वो हत्यारे सुरेश साथियो के साथ भागने का अवसर देता है और सुरेश का साहस यह है कि वो दिन तीन बार वसीम को उसके घर से खींचना चाहता है. मगर मौत हर बार वसीम को बाहर निकलने से रोकती है. मगर चौथी बार नही, इस बार उसका सगा भाई आसमोहम्मद भी मारा जाता है. गोली तब तक चलती है जब तक खत्म न हो जाये…
एक पक्ष पर लाठी भी नही और दूसरे पर लाइसेंसी हथियार है और कुछ लोग कहते है खतरा इन्ही बिना हथियार वाले लोगो से जो एक दिन काम न करे तो शाम को रोटी नही खा पाएंगे.
वसीम और आसमोहम्मद टायर पंचर लगाते है. सुरेश हलवाई है. तीन दिन कोई कहासुनी हो गयी थी. आज बदला लिया गया. वैसे इसे बदला इसलिए भी नही कहा जा सकता क्योंकि तीन दिन पहले भी वसीम ही पीटा गया था.
अलीगढ के एसएसपी राजेश कुमार पांडेय से सवाल बनता है कि उनका मुखबिर तंत्र खुफिया विभाग यह क्यों पता नही लगा सका कि आग इतनी सुलग रही हैं. दूसरा सवाल यह भी है कि वसीम और आसमोहम्मद की लाश इतनी देर तक कैसे सड़क पर पड़ी रही. सवाल यह भी है हमलावर इतनी आसानी से कैसे चले गए. इतने व्यस्त इलाके में पुलिस कहाँ थी. जब झगड़ा तीन दिन से हो रहा था तो पुलिस को क्यों पता नही चला. भारी पुलिस बल के साथ ही मौके पर पहुंचने का इंतजार क्यों हुआ. क्यों अलीगढ़ के सेंसटिव होने के बावजूद ‘किविक रेस्पॉन्स टीम’ (क्यूआरटी ) नही पहुंची और सवाल यह भी है अब तक किसकी गिरफ़्तारी हुई.
एसएसपी अलीगढ के अनुसार यह घटना बिलकुल भी साम्प्रदयिक नही है. दोनों पक्षो में 3 दिन पहले विवाद हुआ था. सुरेश की वहां कचौरी की दुकान है और वसीम की टायर पंचर की. आज वसीम और सुरेश में फिर कहासुनी हुई और वसीम की गोली मारकर हत्या कर दी गयी. आसमोहम्मद ‘आसू’ वसीम का भाई है उसने अपने भाई को बचाने की कोशिश की तो वो भी मारा गया.
पुलिस के मुताबिक आरोपी को हम जल्द ही गिरफ्तार कर लेंगे. यह पुलिस कप्तान की बात है. मगर वसीम के परिजन यह नही मान रहे उनका कहना हत्या बस दो कारण से हुई. पहला हम मुसलमान है और दूसरा हम गरीब है. दोपहर दिन में इन दोनों क़त्ल में दुस्साहस का ऐसा ही चरम दिखाई देता है जैसा बिजनोर के पैदा कांड में दिखाई दिया था. अगर कोई गरीब है, कमजोर है, और माइनॉरिटी है, तो छाती छलनी कर दी जायेगी. अलीगढ को यह घटना बहुत सवाल खड़े करती है. कानून पर भी और इंसानियत पर भी.
देर रात पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए मुख्य आरोपी सुरेश को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के अनुसार वसीम (22) से उसकी तीन दिन पहले कहासुनी हुई थी. जिसका बदला आज लिया गया. वसीम का भाई आसमोहम्मद (24)भी उसके बचाव में मारा गया.
अब अलीगढ बारूद के ढेर पर है. चप्पे चप्पे पर पुलिस है एक समुदाय में जबरदस्त अविश्वाश उसका भरोसा कमजोर पड़ गया. आत्मविशवास रौंद दिया गया है. कानून की पकड़ इस भरोसा को कायम कर सकती है. क्या ऐसा हो पायेगा…?