Home Indian Muslim खतौली रेल हादसे में फ़रिश्ते बन गए मुसलमान

खतौली रेल हादसे में फ़रिश्ते बन गए मुसलमान

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

खतौली : मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली को ‘खित्ता-ए-वली’ कहते हैं और वली का मतलब होता है —खुदा का दोस्त.

अपने नाम की पाकीज़गी को एक बार फिर हक़ीक़त में बदलते हुए रेल हादसे के बाद यहां के मुसलमानों ने मदद का ऐसा नमूना पेश किया कि दुनिया भर में खतौली का नाम गर्व से ऊंचा हो गया.

दरअसल, खतौली में जहां यह हादसा हुआ उसके पूरब और पश्चिम दोनों ओर मुस्लिम बहुल इलाक़े हैं. जैसे ही यह हादसा हुआ, मौक़े पर बड़ी संख्या में मुसलमान पहुंच गए. रेलवे विभाग की ओर से कोई मदद के लिए आता, उससे पहले यह ‘पड़ोसी’ मुसलमान अपने तौर-तऱीके से लगातार इंसानों की जान बचाने में जूझते नज़र आएं.

हमने ऐसे लोगों की तलाश की, जो इस हादसे में शिकार लोगों के लिए फ़रिश्ते बनकर आएं.

सबसे पहले मोहम्मद आबिद की करते हैं. गारमेंट्स की दुकान चलाने वाले मोहम्मद आबिद कुरैशी नमाज़ पढ़कर मस्जिद से बाहर निकल रहे थे, तभी उन्हें इस हादसे की ख़बर मिली. वो तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

आबिद बताते हैं कि, लोगों में चीख पुकार मची थी. तब तक स्थानीय पुलिस भी नहीं पहुंची थी. क़रीब के भूड़ और नई बस्ती के लोग घायलों को डिब्बों से बाहर निकाल रहे थे. मगर लाशों को हाथ लगाने से लोग हिचकिचा रहे थे.

वो बताते हैं कि, एक आदमी का पेट से नीचे का हिस्सा ख़त्म हो चुका था. साथी रवीश और ताहिर की मदद से मैंने उसे एक कपड़े में समेटा. आप समझ लीजिए हमने दिल कितना सख्त किया होगा.12 लाशें हमने अपने हाथों से निकालीं. कुछ के सर भी कुचल गए थे. किसी के हाथ नहीं था और किसी के पैर. हमारे कपड़े खून में लथपथ हो गए, मगर हमने अपना काम जारी रखा.

आबिद कहते हैं कि, हमें तब बहुत सुकून मिला जब एक भगवा कपड़े वाले ने हमें कहा —बेटा तुम मुसलमान हो, लोग तुम्हारे बारे में ग़लत कहते हैं. लेकिन शायद हम ही ग़लत थे.

पास के ही भूड़ इलाक़े के आरिफ़ मलिक को आप हीरो कह सकते हैं. कबाड़ी का काम करने वाला यही वो नौजवान था, जो गैस कटर लेकर आया और लोगों को डब्बा काटकर बाहर निकाला गया.

इस हादसे से 50 मीटर दुरी पर शारिक ज़ैदी एक मोहल्ला क्लीनिक चलाते हैं. इस क्लीनिक के ठीक सामने झारखंड शिवालय है, जहां घायलों को लाया गया. इस पूरी रात शारिक़ इन घायलों की मरहम पट्टी करते रहे. उन्होंने अपने डॉक्टर मित्र इस्तख़ार को बुला लिया. इस तरह से शारिक़ ज़ैदी का यह क्लीनिक कल बहुत काम की जगह बन गया.

घटना के बाद रात में ही जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का प्रतिनिधिमंडल खतौली पहुंच गया. मौलाना फुरक़ान असदी इसका नेतृत्व कर रहे थे. जमात-ए-इस्लामी के शाहिद अली भी एक टीम लेकर पहुंचे. मगर यह जब पहुंचे तो बहुत कुछ हो चुका था.

पास के ही नई बस्ती में महिलाएं चारपाई बुनने का काम करती हैं. एक चारपाई बुनने के उन्हें 10 रुपये मिलते हैं. इस पूरी बस्ती में लगभग 500 चारपाई रोज़ बुनी जाती है. हादसे के तुरंत बाद इन चारपाई ने स्ट्रेचर का काम किया.

55 साल की रुख़साना बताती हैं कि, अस्पताल के डॉक्टर एम्बुलेंस और स्ट्रेचर घंटों बाद पहुंचे. हमने अपनी चारपाई दे दी. पूरे मोहल्ले की 150 से ज्यादा चारपाई घायलों के काम आई.

नई बस्ती के शाहिद आज भी हादसे में घायल हुए अपनों को तलाशने आए लोगों को पानी पिलाने में जुटे थे.

कल शाम शराफ़त आबादी से सीढ़ियां तलाश रहे थे. शराफ़त बताते है कि मोहल्ले के लड़के सीढ़ी लगाकर ट्रेन के अंदर फंसे लोगों को रेस्क्यू कर रहे थे. पूरी तरह से मदद आने में दो घंटे से ज्यादा लगें. तब तक तो सैकड़ों लोगो को बाहर निकाल चुके थे.

महताब बेग भी इस रेस्क्यू में अपने स्तर से जुटे थे. वो बताते हैं कि एक क्रेन जल्दी आ गई थी, मगर कुछ कर नहीं पाई.

बताते चलें कि सरकार की ओर से पूरी तरह से मदद 9 बजे के बाद पहुंची, फिर स्थानीय लोगों को हटा दिया गया और रेस्क्यू टीम ने कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया. इसके बाद केंद्र सरकार में मंत्री व स्थानीय सांसद संजीव बालियान ने इस घटना को साम्प्रदयिक रंग देने की कोशिश की और घटना के आतंकी घटना होने का शक ज़ाहिर किया, मगर इसकी हवा मजलिस के पूर्व ज़िला अध्यक्ष ओसामा इदरीस ने निकाल दी.

ओसामा डीएम मुज़फ्फ़रनगर और मीडिया को वो ट्रैक दिखाने ले गए जिसे रेलवे ने मरम्मत के लिए खोल रखा था.

स्थानीय निवासी ओसामा बताते हैं कि यहां के कई अख़बारों ने टूटे ट्रैक पर ख़बरें लिखी और ‘टूटी पटरी से गुज़र रही है मौत’ जैसे शीषर्क वाली ख़बरों के बाद भी रेलवे नहीं जागा.

इस बीच आज रेलवे के दो कर्मचारियों की ऑडियो भी चर्चा में है, जिसमें वो लापरवाही और रेलवे कर्मचारियों की अंदरूनी राजनीति में यह मान रहे हैं कि ग़लती हो गई. ख़ास बात यह है कि पटरी का यह हिस्सा 15 दिन से कमज़ोर है और शुक्रवार से तो इससे क्लिप भी निकाल दिया गया था. इस ट्रेन से पहले इंटरसिटी भी इसी टूटे ट्रैक से गुज़र कर गई, मगर उसकी स्पीड कम थी.

स्पष्ट रहे कि इस रेल हादसा को साम्प्रदयिक रंग देने की बहुत कोशिश की गई, मगर ऐसा हो नहीं पाया. यहां जमीयत के प्रतिनिधिमंडल के साथ एक हिंदूवादी संग़ठन के लोगों ने अभद्रता भी की, मगर मुसलमानों ने अपना हक़ अदा कर दिया.