खतौली में हुआ रेल हादसा अब तक लोगों को डरा रहा है. हादसे के बाद मची चीख़-पुकार अचानक नींद से उठा देती हैं. जिन लोगों ने हादसे में फंसे लोगों की मदद की है, उनके ज़ेहन से वो सब निकल नहीं रहा है. ऐसे ही एक युवक की आंखों देखी कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं.
मोहम्मद आबाद, TwoCircles.net के लिए
19 अगस्त की शाम का वक़्त था. हल्की-हल्की बारिश हो रही थी. मैं अपने दोस्त ताहिर और ओसामा के साथ था. इसी बीच अस्र की अज़ान मार्केट में ही हो गई. हमने मस्जिद जाकर नमाज़ अदा की. जैसे ही हम लोग नमाज़ से फ़ारिग़ होकर मस्जिद से बाहर निकले तो मेरे फोन की घंटी घनघनाई. स्क्रीन पर मुफ़्ती मुजीब का नम्बर आ रहा था.
मैंने बात की तो वो बोले कि बहुत बड़ा हादसा हो गया है. जल्दी से स्टेशन पहुंचो. इतने में दूसरी कॉल आ गई. इस बार सलमान हसन, जो हमारे मिशन तालीम के दोस्त थे. इन्होंने भी यही कहा कि सभी दोस्तों को फोन करो. रेलवे स्टेशन पर बहुत बड़ा हादसा हो गया है.
बस फिर क्या था लगा ली दौड़… मौलाना आसिफ ज़मीर और सलमान भाई के साथ स्टेशन की तरफ़… वहां का मंज़र देखकर तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई. ट्रेन के डब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे. कई डब्बे उलट गये. दो डब्बे एक स्कूल और मकान में घुसे हुऐ हैं. चारो तरफ़ अफ़रा-तफ़री चीख-पुकार और दर्जनों लाशें… तड़पते हुऐ बच्चे गम्भीर घायल हुई मां-बहने… साधु संत कराह रहे है… बस दिल से दुआ निकली —या अल्लाह रहम… अल्लाह रहम…
अगले ही पल बिना देर किए कुछ सोचे समझे ही लग गए लोगों की जान बचाने में. रेलवे पटरी के एक तरफ़ मुस्लिम और दूसरी तरह हिन्दू बस्ती है. मैंने देखा कि एक तरफ़ मुसलमान सीढ़ी लगाकर डब्बों में से औरतों, बूढ़ो, बच्चों को जल्दी-जल्दी निकाल रहे हैं और नीचे हिन्दू बस्ती के लोग चारपाइयों पर घायल लोगों को स्थानीय डॉक्टरों के यहां ले जा रहे हैं, बिना किसी भेदभाव के…
इन लोगों को देखकर मुझे ये लगा कि ख़तौली वाक़ई में ‘खित्ता-ए-वली’ है. बचपन से सुनते आ रहे हैं कि खतौली का असल नाम ‘खित्ता-ए-वली’ है. यहां के लोग नेक और बड़े दीनदार हुआ करते थे, जिसकी वजह से ख़तौली का नाम खित्ता-ए-वली पड़ा था.
जिन लोगों की सांस ख़त्म हो गई थी, उन लोगों को जैसे-तैसे डब्बों से निकालकर एक जगह इकट्ठा किया. मृतकों की हालत देखी नहीं जा रही थी. किसी के दोनों पैर धड़ से गायब थे, तो किसी का हाथ…
कई के चेहरे इतने भयावह हो चुके थे कि देखकर कलेजा कांप जाये. जिस लाश के दोनों पैर गायब थे उसको उठाकर चारपाई पर रखना था. मैं सोचने लगा कि इसको कहां से पकड़कर चारपाई पर रखूं. उफ्फ़! खतौली के सब इंस्पेक्टर सूबे सिंह ने एक साईड पकड़ी और मैंने दूसरी साईड से. उसकी थाई और हाथ पकड़कर चारपाई पर डालकर एम्बुलेंस से हॉस्पिटल पहुंचवाया.
अब दूसरी लाश को उठाने के लिए जैसे ही मैंने लाश का हाथ पकड़ा तो वो हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया. चीख निकल गई मेरी. उस बेचारे बुजुर्ग का हाथ हल्का सा जिस्म से उलझा हुआ होगा.
कुछ लोग डब्बों के नीचे दबे हुऐ थे, जिनको खींचकर बाहर निकालना मुश्किल था. ऐसे में भूड़ के जानकार लोग जो कि गैस वेल्डिंग का कार्य करते हैं, उन्होंने ट्रेन के डब्बों को काटना शुरू किया, लेकिन डब्बों की लोहे की चादरें मोटी होने के कारण बहुत टाईम लग रहा था.
एक तरफ़ दो क्रेनें ट्रेन के डब्बों को हिला भी नहीं पा रही थी. मौलाना आसिफ़ अपनी एम्बुलेंस लेकर घायलों को डॉक्टरों के यहां ले जा रहे थे ताकि किसी भी तरह लोगों को बचाया जा सके.
सबका एक मक़सद था कि इंसानियत बच जाए. हज़ारों की भीड़ इन यात्रियों के लिए जी जान से जुटी थी. कोई खाने के पैकेट बांट रहा था तो कोई पानी, बिस्किट.
लगभग डेढ़-दो घंटों में सरकारी मदद आई थी, लेकिन जब तक ज्यादातर रेस्क्यू कर लोगों को बचाया जा चुका था. मगर दर्द अब तक है. रात में नींद नहीं आ रही है. ख्वाब में एक्सीडेंट ही आ रहा है. चीख पुकार करते लोग… अभी नींद खुली ही कि पता चला कि फिर से एक ट्रेन हादसा… या अल्लाह रहम…