इस झूठ को हवा देने के पीछे क्या कारण थे?

खुर्रम मल्लिक, TwoCircles.net के लिए


Support TwoCircles

2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूरे ज़ोर-शोर से कांग्रेस कार्यकाल में हुए कई घोटालों को जनता के समक्ष उठाया था और उसी मुद्दे को आधार बनाकर उसने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई. उन्हीं घोटाले में से एक था —2G घोटाला.

2G स्पेक्ट्रम घोटाला भारत का एक बहुत बड़ा घोटाला बताया गया, जो सन 2011 के आरम्भ में प्रकाश में आया था. लेकिन दिसम्बर 2017 में सीबीआई कोर्ट ने इस मुक़दमें के सभी आरोपियों को रिहा कर दिया और कहा कि ये ग़लत मुक़दमा है. यानी जिस ए. राजा पर 1 लाख 76 हजार करोड़ का वारा न्यारा करने का आरोप था, अब वो बेदाग़ है. 

किसी भी विभाग या संगठन में कार्य का एक विशेष ढांचा निर्धारित होता है. टेलीकाम मंत्रालय इसका अपवाद हो गया है. विभाग ने सीएजी रिपोर्ट के अनुसार नियमों की अनदेखी के साथ-साथ अनेक उलट-फेर किए. 2003 में मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत नीतियों के अनुसार वित्त मंत्रालय को स्पेक्ट्रम के आवंटन और मूल्य निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए. टेलीकाम मंत्रालय ने मंत्रिमंडल के इस फ़ैसले को नज़रअंदाज़ तो किया ही, साथ ही आईटी, वाणिज्य मंत्रालयों सहित योजना आयोग के परामर्शो को भी कूड़ेदान में डाल दिया. प्रधानमंत्री के सुझावों को हवा कर दिया गया.

यह मामला 2008 से चलता चला आ रहा है, जब 9 टेलीकाम कंपनियों ने पूरे भारत में ऑप्रेशन के लिए 1665 करोड़ रूपये पर 2G मोबाईल सेवाओं के एयरवेज और लाईसेंस जारी किए थे. लगभग 122 सर्कलों के लिए लाईसेंस जारी किए गए. इतने सस्ते एयरवेज पर जिससे अरबों डॉलर का नुक़सान देश को उठाना पड़ा.

इतना ही नहीं, सीएजी ने पाया कि स्पेक्ट्रम आवंटन में 70 फ़ीसद से भी अधिक कंपनियां हैं जो न तो पात्रता की कसौटी पर खरी उतरती हैं और न ही टेलीकाम मंत्रालय के नियम व शर्ते पूरी करती हैं. इस पूरे सौदेबाजी में देश के ख़ज़ाने को 176,000 हज़ार करोड़ कि हानि हुई.

यूपीए कार्यकाल में इस घोटाले को उस समय की विपक्षी पार्टी यानी भाजपा ने ख़ूब भुनाया. आप इसे इस तरह समझ सकते हैं कि उस समय के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अपने मंत्री ए. राजा को मंत्री पद से हटाना पड़ा और इसके साथ ही कंपनी के कई लोगों को जेल में डाल दिया गया.

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि अगर घोटाला हुआ था तो फिर ए. राजा  निर्दोष कैसे साबित हुए? और अगर घोटाला नहीं हुआ था तो फिर इतना झूट का पुलिंदा क्यों बनाया गया? क्या अब इस फैसले से यह मान लिया जाए कि पूरे देश को एक ऐसे झूट से बहलाया गया जो वास्तव में था ही नहीं. क्या यह सत्ता प्राप्ति के लिए देश की जनता से खिलवाड़ नहीं है.

क्या आपको अब यह नहीं लगता कि एक ऐसी टीम गठित की जाए जो इस पूरे एपिसोड की सघन जांच करे और लोगों को सच बताए कि यह कैसे हुआ, क्यों हुआ? इस झूट को हवा देने के पीछे क्या कारण थे?

न जाने ऐसे कितने मुद्दे थे जो ज़्यादा आवश्यक थे, जिसके बारे में विचार किया जाता तो देश की उन्नती होती, देश विकसित होता. क्या आपको नहीं लगता कि इस एक मुद्दे को हव्वा बनाकर लोगों को और मुद्दों से भटकाया गया.

सवाल यह भी है कि क्या कारण है कि जिस कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (विनोद राय) की रिपोर्ट में 1.76 लाख करोड़ के घोटाले की बात कही, उन्हें इस मोदी सरकार में कई पदों से सम्मानित किया गया है, जिनमें से एक बैंक बोर्ड ब्यूरो की अध्यक्षता भी है. क्या इन्हें वर्तमान पद से निष्काषित नहीं किया जाना चाहिए. क्या उनसे नहीं पुछा जाना चाहिए कि आख़िर यह 2G था क्या. एक हक़ीक़त या महज़ एक शिगूफ़ा? क्या अब 56 इंच सीना का दम भरने वाले हमारे प्रधान सेवक इसकी ऐसी ही सेवा करते रहेंगे या कोई करवाई भी करेंगे? दोस्तों, इन सवालों का जवाब देश-वासियों को ज़रूर मिलना चाहिए, क्योंकि इनका जवाब यक़ीनन देश के हित होगा. बस ज़रूरत है कि हम और आप मज़हब व जाति की लड़ाई से ऊपर उठकर देश-हित में इन सवालों को ज़ोर से उठाए.

(लेखक पटना में एक बिजनेसमैन हैं.)

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE