ख़ामोश मेरठ में लगातार हो रही हैं तनाव फैलाने की कोशिशें

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net 

मेरठ: मेरठ के लोग इस बात को लेकर मुतमईन हैं कि पड़ोस के मुज़फ़्फ़रनगर में हुआ भयानक साम्प्रदायिक दंगा भी उनके भाईचारे में कोई ख़ास दरार पैदा नहीं कर सका है. उनकी ज़िन्दगी आज भी आपसी सौहार्द से गुज़र रही है. बावजूद इसके मेरठ के सामाजिक चरित्र को नुक़सान पहुंचाने की कोशिशें लगातार जारी हैं.


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मेरठ का सरधना विधानसभा क्षेत्र इन्हीं कोशिशों की एक प्रयोगशाला बन चुका है. सरधना से हो रही कोशिशें मेरठ के साम्प्रदायिक माहौल को ध्वस्त कर व्यक्ति विशेष की राजनीति को चमकाने का ज़रिया बनती जा रही हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मौजूद यह इलाक़ा अब भाजपा नेता संगीत सोम की उन्मादी राजनीति की ज़मीन बनने की कगार पर है.

सरधना में रहने वाले ऐनुद्दीन शाह का कहना है, ‘हमारे विधायक जी तो साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के मामले में वर्ल्ड फेमस हो चुके हैं. अभी अपने चुनावी प्रचार में वीडियो दिखाने का उनका मक़सद भी वही था. भाजपा सपा दोनों ही पार्टियां इस कोशिश में हैं कि इस चुनाव में भी ऐसा कुछ किया जाए जिससे कि वोटों का ध्रुवीकरण हो.’ एेनुद्दीन शाह इस समय राष्ट्रीय लोक दल से जुड़े हुए हैं. 

इसी सरधना के एक और शख़्स नाम प्रकाशित करने की गुज़ारिश पर बताते हैं, ‘जिस तरह से संगीत सोम यहां अपना कैम्पेन कर रहे हैं. खुद को हिन्दू सम्राट बता रहे हैं, भड़काऊ भाषण दे रहे हैं, वह अपने आप में काफी ख़तरनाक है.’

सरधना में पिछले एक साल में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनके तहत इलाक़े के साम्प्रदायिक माहौल को ख़राब करने की भरपूर कोशिश की गई है. 

18 जनवरी 2017 को सरधना में संगीत सोम द्वारा चुनाव प्रचार में वीडियो क्लिप के ज़रिए साम्प्रदायिक तनाव फ़ैलाने की कोशिश की गयी. इस मामले में पुलिस ने मामला दर्ज किया. वीडियो में दंगों से जुड़ी ख़बरों और वीडियो के क्लिप मौजूद थे. वीडियो में संगीत सोम को हिन्दू धर्म का ठेकेदार बताया गया है, जिसमें संगीत सोमहिन्दू स्वाभिमान’ का हवाला देते हुए दादरी में हुए अख़लाक़ हत्याकांड को जायज़ बता रहे हैं.

2016 के दिसम्बर महीने के आख़िर में एक सड़क के शिलान्यास से पहले लगाए गए शिलापट्ट को लेकर विधायक संगीत सोम सपा नेता अतुल प्रधान के समर्थकों के बीच ठन गयी और वो आमनेसामने गए, जिससे पूरे इलाक़े में तनाव फैल गया. आसपास के कई थानों की पुलिस फोर्स मौक़े पर पहुंची तब मामले को नियंत्रण में लिया गया नहीं तो स्थिति काफी ख़राब हो जाती.  

2016 के अक्टूबर महीने में सरधना में गाड़ी खड़ा करने को लेकर शुरू हुए एक विवाद में सांसद प्रतिनिधि और उनके भाई के साथ मारपीट के मामले ने तूल पकड़ा. आरोपियों के खास सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने के कारण सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं और व्यापारियों ने जमकर हंगामा किया और इसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई.  

2016 के अक्टूबर महीने में ही सरधना के क़रीब कुशावली के जंगल में किसान की भैंस लूट के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई. कुशावली के नवाबगढ़ी में दूसरे समुदाय के युवकों के साथ मारपीट की गई. इन मामलों के आधार पर फिर से पूरे इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का भरपूर प्रयास किया गया. कई जगहों पर दोनों समुदाय के लोगों ने आपस में मारपीट की. माहौल की गंभीरता को देखते हुए छह थानों की पुलिस फोर्स और पीएसी को यहां तैनात किया गया, तब जाकर क्षेत्र में तनावपूर्ण शांति रही.

2016 के मई महीने में दो समुदायों के युवकों के बीच मारपीट के मामले में एकतरफ़ा कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए विधायक संगीत सोम इंस्पेक्टर सरधना और एसएसआई के खिलाफ़ मोर्चा खोलते हुए सैकड़ों समर्थकों के साथ पुलिस चौकी के सामने धरना देने बैठ गए. इस दौरान भीड़ ने इंस्पेक्टर और एसआई से हाथापाई कर उनकी वर्दी भी खींच ली. इतना ही नहीं, इस मामले को तूल देकर पूरे इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई.

2016 के फ़रवरी महीने में सरधना क्षेत्र में ही आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति और ओवैसी की पार्टी मजलिसइत्तेहादुल मुस्लिमीन के कार्यकर्ताओं ने एक धर्म के ख़िलाफ़ कथित रूप से नारेबाजी की, जिससे इलाक़े में तनाव फैल गया

बताते चलें कि मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा 2013 में हुआ था, ये 2017 है. इन गुज़रे तक़रीबन साढ़े तीन सालों में काफ़ी कुछ बदला है. लोग उन हादसों से उभरने की कोशिश कर रहे हैं, बावजूद इसके मेरठ जिले में लगातार ऐसी छिटपुट घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं, जो यहां के लोगों को साम्प्रदायिक विभाजन के मुहाने में ले जाते हैं. ये कोशिशें पूरी तरह से राजनीतिक हैं. ये हक़ीक़त जितनी चौंकाने वाली है, उससे कहीं अधिक ख़तरनाक भी है.

हालांकि मेरठ कॉलेज में भौतिकी विभाग के अध्यापक डॉ. सतीश प्रकाश का मानना है कि मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों का यहां बिल्कुल भी असर पड़ने वाला नहीं है. ये तो स्वाभाविक है कि जब दो समुदायों के लोग एक साथ रहेंगे तो इनके बच्चों में प्यार पनपेगा ही. लेकिन ये प्यार नेताओं के काम तब आता है जब चुनाव क़रीब हो. गुज़रे दिनों मवाना में हुई साम्प्रदायिक कोशिश इसी की एक मिसाल थी.

बीती 22 जनवरी को मेरठ का मवाना क़स्बा सुलगने से बालबाल बच गया. यहां एक युवक को पीटने पर बवाल मचा और फिर पूरे इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बन गया. असामाजिक तत्वों ने पथराव किया कई दुकानों में लूटपाट व तोड़फोड़ की. स्थानीय अख़बारों के रिपोर्ट के मुताबिक़ हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी दिनेश खटिक अपने समर्थकों के साथ सड़क पर गए और स्थानीय पुलिस अफ़सरों के साथ काफी नोकझोंक की. हालांकि ये पूरा मामला एक पतिपत्नी के बीच लड़ाई को लेकर था, जिसे राजनीतिक फ़ायदे की नीयत से तूल देकर साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई

22 जनवरी, 2017 को ही मेरठ के मेट्रो प्लाजा के सामने एक दारोगा के ज़रिए की अभद्रता और फिर उसके बाद हुई हाथापाई को भी साम्प्रदायिक रंग देकर इलाक़े में तनाव फैलाने की कोशिश की गई

इससे पहले 17 जनवरी को मेरठ के लिसाड़ी गेट क्षेत्र से एक युवती के अपहरण के बाद पूरे इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई.   

इससे पूर्व भी मवाना में ऐसी कई साज़िशें हो चुकी हैं. 2016 के नवम्बर महीने में भी यहां के मुबारकपुर गांव में पटाखे चलाने को लेकर दो संप्रदाय आमनेसामने गए थे. दोनों ओर से जमकर लाठी डंडे चले और पथराव हुआ, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे

मेरठ हिन्दूमुसलमान की तहज़ीब का शहर माना जाता रहा है. आज़ादी की लड़ाई से लेकर आधुनिक राजनीति तक के कई अध्याय इस शहर में लिखे गए हैं, जो क़ौमी एकता की कोशिशों को नई ऊंचाई देते हैं. मगर उन्हें जलाकर खाक करने की साज़िशें तेज़ी से अपना सर उठा रही हैं. चुनावी मौसम ने उन्हें और भी खादपानी उपलब्ध करा दिया है.

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