अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
रामपुर : समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री आज़म खान को रामपुर में एक शख़्स की ‘दोहरी चुनौतियों’ से दो-चार होना पड़ रहा है. इस शख़्स का नाम है डॉ. तनवीर अहमद खां. डॉ. तनवीर पेशे से डॉक्टर हैं और रामपुर विधानसभा सीट से बसपा के उम्मीदवार हैं.
तनवीर अहमद के राजनीतिक सफ़र का एक बड़ा ही दिलचस्प पहलू है. वह ये कि तनवीर के जुड़वा भाई डॉ. महमूद अहमद खां भी हैं जो इनके इस सफ़र में हमसफ़र की तरह काम कर रहे हैं.
दोनों भाई जुड़वा हैं. हम-पेशा हैं और राजनीतिक मसलों में हम-ख़्याल भी. आलम ये है कि डॉ. तनवीर अपने भाई की बदौलत एक साथ दो जगहों पर अपना चुनावी प्रचार कर लेते हैं. जहां वो नहीं जा पाते हैं, वहां उनके भाई पहुंच जाते हैं. और लोग उन्हें भी डॉ. तनवीर ही समझते हैं.
डॉ. महमूद की शक्ल तनवीर से इस क़दर मिलती है कि सामने आने वाला व्यक्ति अगर दोनों भाईयों को अरसे से भी जानता हो, तो भी धोखा खा जाए. बातचीत में डॉ. तनवीर खुद स्वीकार करते हैं कि अपने भाई की बदौलत वे दोगुनी गति से अपने प्रचार कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं.
TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में डॉ. तनवीर खुद स्वीकार करते हैं कि अपने भाई की बदौलत इस तरीक़े दुनी गति से अपने प्रचार कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं.
डॉ. तनवीर कहते हैं, ‘हमारी जुड़वा इमेज़ का फ़ायदा हमें खूब मिल रहा है. दोनों भाई दो अलग-अलग जगह पर प्रचार कर रहे हैं. महमूद डोर-टू-डोर प्रचार कर रहे हैं और मैं फिलहाल बड़ी सभाओं में हिस्सा ले रहा हूं.’ वहीं डॉ. महमूद का कहना है कि, ‘शहर में मेरी एक अलग पहचान है. एक डॉक्टर के नाते शहर में हमारे चाहने वाले भी बहुत हैं. इसका फ़ायदा इस बार तनवीर को ज़रूर मिलेगा.’
तनवीर अहमद के समर्थकों में भी इन भाईयों की तरह-तरह की कहानियां हैं. वो बताते हैं कि क्षेत्र में हम तनवीर की जगह महमूद भाई को ही लेकर चले जाते हैं, लोगों की प्रतिक्रिया लगभग बराबर ही रहती है. सब लोग इन्हें तनवीर ही समझते हैं.
तनवीर अहमद बसपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो आज़म खान के ख़िलाफ़ तनवीर अहमद की उम्मीदवारी ख़ासी मज़बूत है. दलित-मुसलमान वोटों की जुगलबंदी और अपने पहचान के दम पर डॉ. तनवीर ज़ोर-शोर से प्रसार कर रहे हैं. हालांकि चुनावी दौर में आज़म खान जैसी शख़्सियत को चुनौती देना कोई आसान बात नहीं है. आज़म खान ने इन्हें 2012 के विधानसभा चुनाव में 63 हज़ार से अधिक वोटों से हराया था. तब तनवीर कांग्रेस के प्रत्याशी थे और 32503 वोट ही पा सके थे. बावजूद इसके इस बार दलित वोटों के दम पर समर्थकों को उम्मीद है कि तनवीर अहमद की सियासी पकड़ और हमशक्ल भाई की मेहनत ज़रूर रंग लाएगी.