अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
गाज़ियाबाद : प्रधानमंत्री मोदी इन दिनों अपने चुनावी सभा में किसानों के हित में खूब बोल रहे हैं. बुधवार को भी गाजियाबाद के सीबीआई अकादमी के सामने वाले मैदान में भाजपा की ‘परिवर्तन संकल्प रैली’ का फोकस किसानों पर था, मगर हैरानी की बात यह है कि इस मैदान से क़रीब 500 मीटर की दूरी पर ही किसान प्रधानमंत्री मोदी की तमाम योजनाओं की जीती-जागती हक़ीक़त बयां कर रहे थे. ये वो किसान हैं जो पिछले दो सालों से धरना दे रहे हैं, लेकिन कोई भी इनकी सुनने वाला नहीं है.
इस धरने पर बैठे भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान नेता अमरपाल सिंह का कहना है, ‘हम यहां धरने पर पिछले दो साल से बैठे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय को दर्जनों पत्र लिख चुके हैं. लेकिन प्रधानमंत्री ने अभी तक हमारी ओर कोई ध्यान नहीं दिया. हम किसान इसका बदला 11 फरवरी को मतदान के दिन लेंगे.’
धरने का कारण पूछने पर अमरपाल सिंह बताते हैं, ‘केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के आवास हेतु चार गांवों रजापुर, रईसपुर, हरसांव व सिहानी के लगभग 966 एकड़ ज़मीन फरवरी 1964 में भू-अधिग्रहण की धारा 4 के तहत केन्द्र सरकार ने अधिग्रहित किया था. सरकार ने 20 जुलाई 1965 को क़ब्ज़ा भी ले लिया. इस दौरान कुछ खसरा नम्बरों के रक़बा में अशुद्धि के कारण कुछ रक़बे को क़ब्ज़ा में नहीं लिया गया और उनका अवार्ड भी घोषित नहीं हो सका. लेकिन बाद में प्रशासन ने 1972 में शुद्धि धारा 6 की विज्ञप्ति जारी की और एडीएम भू-अर्जन गाज़ियाबाद द्वारा 22 सितम्बर 1986 को पुराने रेट 1.90 रूपये का अवार्ड घोषित किया.’
वो आगे बताते हैं कि, ‘किसानों ने इस पर आपत्ति जताई तो एडीजे गाज़ियाबाद द्वारा किसानों को 8 रूपये प्रति गज मुआवज़ा व अन्य लाभ देने की बात कही. लेकिन इसके तुरंत बाद किसान व सरकार दोनों हाईकोर्ट में अपील लेकर गए. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनकर 2009 में हमारी ज़मीन का रेट 84 रूपये प्रति गज तय किया. तब सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई. भारत सरकार की तीन एएसएलपी माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2004, 2005 व 2011 में खारिज हो चुकी है. इधर हाई कोर्ट के आदेश के आदेश के बाद भी सरकार के सीपीडब्ल्यूडी के अधिकारी किसानों को लाभ देने को तैयार नहीं हैं. जबकि शुद्धि पत्र भी इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2 फरवरी 2016 को जारी कर दिया गया है.’
अमरपाल सिंह का आरोप है कि किसानों की तरफ़ से अपील हाई कोर्ट में लंबित है. लेकिन सरकारी अधिवक्ता तारीख़ पर हाज़िर नहीं होते और अगर हाज़िर होते हैं तो अगली तारीख़ लेने की कोशिश करते हैं. इस तरह से अब तक क़रीब सवा सौ तारीख़ें लग चुकी हैं.
बताते चलें कि ये किसान पिछले 29 अप्रैल, 2015 से इस धरने पर बैठे हैं. इन किसानों में चार गांव यानी रजापुर, रईसपुर, हरसांव व सिहानी के किसान शामिल हैं. इनके मुताबिक़ वो एक महीने का भूख हड़ताल भी कर चुके हैं. बुधवार को भी इनका एक दल प्रधानमंत्री मोदी की सभा में उन्हें ज्ञापन देने के लिए गया था, लेकिन इनका आरोप है कि नेताओं के इशारे पर इन्हें वहां से खदेड़ दिया गया.
धरने पर बैठे किसान नेता विरेन्द्र चौधरी का कहना है कि, ‘हमें मुज़फ़्फ़रनगर के मुसलमानों से लड़वा कर भाजपा 2014 में कामयाब हो गई थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला है. भाजपा की हक़ीक़त हमें अब समझ में आ गई है. अब भाजपा का यहां से सफ़ाया तय है. फिर हम जाट-मुसलमान एकजूट हैं. और वैसे भी किसानों का कोई धर्म नहीं है. किसानी खुद में एक धर्म है.’
वहीं भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष राजवीर सिंह का कहना है, ‘मोदी सरकार लगातार हमें धोखा देने की कोशिश कर रही है. हम किसान दर्जनों बार प्रधानमंत्री ऑफिस को पत्र लिख चुके हैं. राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, अरूण जेटली, नितिन गडकरी, बाबुल सुप्रियो, स्थानीय सांसद वीके सिंह, संजीव बालियान को पत्र के साथ-साथ पूरा क़िस्सा ज़बानी बता चुके हैं. संजीव बालियान ने शहरी विकास राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो के साथ वार्ता का आश्वासन दिया तो वहीं हमारे सांसद वीके सिंह ने शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू से भी वार्ता कराई थी. लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. जबकि प्रधानमंत्री मोदी हर सभा में किसानों के हित की बात करते हैं और दूसरी तरफ़ हम किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है. आखिर अब हम जाए तो कहां जाएं?’
किसानों के पक्ष में बढ़चढ़ कर बातें करने वाले मोदी गाज़ियाबाद के मंच से भी जिन कल्याणकारी योजनाओं का गुणगान कर रहे थे, किसान उन्हें एक सिरे से खारिज किए जा रहे थे. सच तो यह है कि किसानों की ज़िन्दगी में न तो कोई बदलाव आया है और न ही किसी बदलाव की संभावना ही दिख रही है.