अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
ऊंचाहार (रायबरेली) : ‘यूपी को साथ पसंद है, लेकिन ऊंचाहार को हाथ पसंद है’ कांग्रेस इसी नारे पर यहां चुनाव लड़ रही है. वहीं सपा का नारा है, ‘वोट नहीं रसगुल्ला है, साईकिल खुल्लम खुल्ला है.’
रायबरेली के ऊंचाहार में सपा और कांग्रेस आपस में गुथमगुत्था हैं. यहां नारे भी बदले हैं और राजनीतिक परिभाषाएं भी. एक तरफ़ कांग्रेस प्रत्याशी अजय पाल सिंह सपा पर धुंआधार आरोप लगा रहे हैं, वहीं सपा प्रत्याशी मनोज पांडे जो प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं, वो कांग्रेस की ज़मानत ज़ब्त करवाने का दावा कर रहे हैं.
सपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कांग्रेस ने यहां हठधर्मी की. ऊंचाहार के मन्नू सिंह का कहना है, ‘जीता हुआ प्रत्याशी कैसे बैठ सकता है. कांग्रेस तो यहां दो नंबर पर भी नहीं थी. मनोज पांडे जी सिर्फ़ विधायक नहीं कैबिनेट मंत्री हैं. अखिलेश यादव को उन पर पूरा भरोसा है. कांग्रेस गठबंधन के बाद भी यहां ज़बरदस्ती चुनाव लड़ रही है.’
वहीं सपा के एक अन्य समर्थक दिनकर कुमार बताते हैं, ‘मंत्री जी ने इलाक़े में अब तक विधायकों में से सबसे बढ़िया काम किया है. विकास के काम यहां खूब हुए हैं. उनको यहां की जनता दिल से चाहती है.’
वहीं कांग्रेस से हमदर्दी रखने वाले अखिलेश यादव पर आरोप लगाते नज़र आ रहे हैं. अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है, ‘अजय पाल सिंह यहां के राजा हैं. राजा जब एक बार चुनाव में आ गया तो फिर कैसे बैठ सकता है. उन्हें प्रियंका गांधी का समर्थन है. गठबंधन के प्रत्याशी तो यहीं हैं. इनका दिल देखिए कि इन्होंने अपने हर पोस्टर पर गठबंधन के सारे नेताओं का चेहरा दिया है, जबकि सपा प्रत्याशी इनके बाद आए हैं और उन्होंने हर गठबंधन के ख़िलाफ़ ही बात कही है.’
वहीं यहां की आम जनता का मानना है कि कहीं इन दोनों की लड़ाई में कहीं तीसरा फ़ायदा न उठा ले और इसकी काफी हद तक आशंका नज़र आ रही है. चाय की दुकान चलाने वाले 45 साल के फूलचंद बताते हैं कि लड़ाई तो अभी सपा-कांग्रेस में नज़र आ रही है लेकिन जीत बसपा की हो सकती है. ऐसा क्यों? ये पूछने पर वो बताते हैं कि पिछली बार बसपा प्रत्याशी मात्र दो हज़ार के वोटों के अंतर से हारे थे, ‘यहां चुनाव जातीय आधार पर होता है सर.’
दूसरी ओर उनकी पत्नी संतोष कुमारी का कहना है कि पिछली बार तो वोट साईकिल को दिया था. उन्होंने काम भी किया है. लेकिन इस बार माहौल पंजा का बन रहा है.
वहीं जगतपुर में होटल चलाने वाले 62 साल के शारदा प्रसाद सैनी बताते हैं, ‘इस बार दोनों हाथ मलते रह जाएंगे और कमल खिल उठेगा. गठबंधन होता तो वोट बंटता नहीं.’ वो आगे बताते हैं, ‘वैसे इस बार चारों पार्टियों के प्रत्याशी लड़ाई में हैं. भाजपा व बसपा भी इन दोनों से कोई कमज़ोर नहीं हैं. ये अलग बात है कि निचली जातियों के वोटों का कोई भरोसा नहीं है. चंद पैसे पर वो कहीं भी चलें जाएंगे.’
ऊंचाहार के साथ रायबरेली में एक और सीट है सरेनी. यहां भी दोनों ही पार्टियां आमने-सामने हैं. यहां भी सपा-कांग्रेस के प्रत्याशी एक दूसरे के ख़िलाफ़ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं. एक दूसरे को हराने की अपील कर रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि सरेनी में खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने प्रत्याशी के समर्थन में रैली करके वोट मांग चुके हैं. ये अलग बात है कि रायबरेली में होने के बावजूद प्रियंका गांधी न ऊंचाहार आईं और न ही सरेनी. प्रियंका के रायबरेली में एक दिन आने और सघन प्रचार न करने के पीछे की वजह भी गठबंधन के दोनों ही दलों की आपसी लड़ाई बताई जा रही है क्योंकि स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले चुनाव में प्रियंका ने यहां धुंआधार प्रचार किया था. वो जिले की हर विधानसभा सीट पर गई थीं. मगर इस बार गठबंधन के दोनों दलों के आपसी दंगल की वजह से दोनों ही पार्टियों के स्टार प्रचारक असहज नज़र आ रहे हैं.