सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
इलाहाबाद: इलाहाबाद की पिछली रिपोर्ट में हम आपको बता चुके हैं कि कैसे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ सपा और भाजपा शहर के बाहर की सीटों पर उठाना चाह रही हैं. लेकिन शहर की विधानसभा सीटों को देखें तो पता चलता है कि यह ध्रुवीकरण और विरोधी लहर कहीं न कहीं शहर के बीचोंबीच से निकलती है और कई दिशाओं में फ़ैल जाती है.
आज चुनाव प्रचार थम जाएगा. सपा-कांग्रेस और भाजपा का नेतृत्व शहर में अपना दमखम दिखाने की कोशिश कर रहा है. इलाहाबाद शहर में कुल तीन सीटें हैं. उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी. अभी इलाहाबाद पश्चिम की सीट पर पूजा पाल बसपा के टिकट से उम्मीदवार और मौजूदा विधायक दोनों ही हैं. यह सीट पिछले दो दशकों से या तो माफियाओं या उनके परिजनों के पास रही है. यहां लड़ाई और कद में सबसे आगे चलने वाला नाम इस समय भाजपा के प्रत्याशी सिद्धार्थनाथ सिंह का है.
यह नाम इसलिए बड़ा है क्योंकि यह नाम लालबहादुर शास्त्री के परिवार से जुड़ा हुआ है, राष्ट्रीय राजनीति का नाम है और भाजपा के प्रवक्ता का नाम है. सिद्धार्थनाथ सिंह का इलाहाबाद पश्चिम से लड़ना एक बड़े खेल का हिस्सा माना जा रहा है. मीडिया से बातचीत में सिद्धार्थ साफ़ बताते हैं कि उनकी उम्मीदवारी के पीछे प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का दबाव है. पार्टी के कार्यकर्ता भी बताते हैं कि सिद्धार्थनाथ सिंह पश्चिमी की सीट के लिए हेलीकॉप्टर कैंडिडेट हैं. भाजपा ने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब अमित शाह की कल की रैली में छिपा हुआ है. जनसभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था, ‘हमने सिद्धार्थनाथ सिंह को राष्ट्रीय नेतृत्व से शहर पश्चिम में बड़े परिवर्तन के लिए भेजा है, आप लोग सिद्धार्थ नाथ को सिर्फ एक विधायक बना कर नहीं भेजेंगे बल्कि एक बड़े नेता को प्रदेश में महत्त्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन करने के लिए भेजेंगे.’ ऐसे में इलाहाबाद में इस खबर ने अब तेज़ी से जोर पकड़ा है कि सिद्धार्थनाथ सिंह भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. कुछ दिनों पहले इलाहाबाद में कई ऐसे पोस्टर भी सामने आए थे, जिनमें सिद्धार्थनाथ सिंह को बतौर मुख्यमंत्री प्रत्याशी दर्शाया गया था, लेकिन जल्दी ही पार्टी ने इन पोस्टरों से किनारा कर लिया था.
सिद्धार्थनाथ सिंह के पक्ष में ऐसी अफवाहें इधर बीच नहीं, हफ़्तों से उड़ रही हैं. इन अफवाहों का फायदा सिद्धार्थनाथ सिंह उठाने की फ़िराक में थे, लेकिन अमित शाह की कल की रैली के बाद इन अफ़वाहों पर अब मुहर लग गयी है.
2012 के विधानसभा चुनाव में जहां पूजा पाल ने 71,114 वोट पाए थे, वहीँ अतीक़ अहमद उनसे नौ हज़ार वोट पीछे रह गए थे. अतीक़ अहमद ने उस साल अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था. अतीक़ अपना दल से लम्बे समय से जुड़े रहे लेकिन 2014 में लोकसभा चुनावों के पहले समाजवादी पार्टी में वापिस लाए गए. अतीक़ अहमद का राजनीतिक ग्राफ अब गिरावट का शिकार है. उन्हें कौम के भी वोट नहीं मिलते हैं. अपनी आपराधिक छवि और कई पार्टियों में उछलकूद को लेकर उन्होंने अपना और उन पार्टियों, दोनों का वोटबैंक गंवाया है. यह गिरावट सबसे ज्यादा देखी गयी साल 2005 के बाद, जब इलाहाबाद पश्चिम के विधायक राजू पाल की ह्त्या में अतीक़ अहमद और उनके भाई मोहम्मद अशरफ़ का नाम सामने आया था. अतीक़ अहमद के लोकसभा में जाने के बाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गयी. 2004 के नवम्बर में इस सीट पर उपचुनाव हुए तो बसपा के राजू पाल और अतीक़ अहमद के भाई मोहम्मद अशरफ़ आमने-सामने हुए. राजू पाल ने जीत दर्ज की, लेकिन दो महीनों बाद यानी जनवरी 2005 में दिनदहाड़े राजू पाल की ह्त्या हो गयी. हत्या में मोहम्मद अशरफ़ और साज़िश के पीछे अतीक़ अहमद पर संगीन आरोप लगे. तब से लेकर अभी तक इलाहाबाद की राजनीति में अतीक़ अहमद की साख़ में अच्छी खासी गिरावट आयी है.
चूंकि अतीक़ पर लम्बे समय से तलवार लटक रही थी और पाल, पिछड़ी जातियों और दलितों के वोटों के खिलाफ़ सपा को एक तगड़ा ठाकुर नाम चाहिए था, तो सपा के लिए इस सीट पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्षा ऋचा सिंह से मुफ़ीद शायद ही कोई दूसरा नाम हो सकता था. ऋचा सिंह उस समय प्रकाश में आयी थीं, जब उन्होंने विश्वविद्यालय कैम्पस में भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ के घुसने का विरोध किया था और उनके इस भारी विरोध के चलते योगी आदित्यनाथ कैम्पस में नहीं घुस सके थे. ऋचा इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पहली महिला छात्रसंघ अध्यक्ष हैं, उन्होंने अपना छात्रसंघ चुनाव जातिवाद, पितृसत्तात्मकता के खिलाफ़ लड़ा था. ऐसे में जायज़ है कि समाजवादी पार्टी 29 साल की ऋचा सिंह की इन खूबियों का लाभ उठाना चाहती है, लेकिन यह भी एक बड़ा सवाल है कि वे पूजा पाल के सामने – जो इन्हीं मुद्दों के साथ और सहानुभूति के साथ दो बार से इस सीट पर विधायक हैं – कैसी लड़ाई पेश करती हैं.
माफिया से बसपा विधायक बने राजू पाल की ह्त्या के बाद सहानुभूति की लहर पूजा पाल की ओर बही. इसलिए वे 2007 से शहर पश्चिमी की विधायक हैं. उनके खिलाफ अतीक अहमद का नाम आने से हिन्दू वोट भी पूजा पाल के पक्ष में लामबंद हुए लेकिन इस बार समीकरण बदलते हुए दिख रहे हैं. हिन्दू वोटों, जिनमें सवर्ण वोटों की संख्या ज्यादा है, के बंटने के मजबूत आसार हैं. स्वतंत्र पत्रकार प्रमोद शुक्ला बताते हैं, ‘ऋचा और पूजा पाल में टक्कर है, आप सही कह रहे हैं. लेकिन भाई साहब, सहानुभूति का वोट कितनी बार मिलेगा, एक बार या अधिक से अधिक दो बार. उससे ज्यादा नहीं. पूजा पाल के लिए एंटी-इनकम्बेंसी पैदा हुई है, लेकिन वो ऋचा की ही ओर जाएगी, यह कहना थोड़ा मुश्किल है.’
ऋचा सिंह की उम्मीदवारी से युवा वोट समाजवादी पार्टी की ओर आने के आसार जताए जा रहे हैं, लेकिन जैसा ट्रांसपोर्ट नगर में मिले 45 वर्षीय राकेश त्रिवेदी बताते हैं, ऋचा की उम्मीदवारी में यह पछाड़ने वाला बिंदु भी है. राकेश बताते हैं, ‘ऋचा को वोट मिल सकता है. लेकिन लोग ये भी सोच रहे हैं कि राजनीति इतनी ज्यादा मुखर और परिपक्व है, उसमें ऋचा कहां टिक पाएंगी? एक तरफ पूजा पाल से महिला वोटों की लड़ाई होगी तो एक तरफ आपकी लड़ाई ठाकुर और जल्दी से भ्रमित हो जाने वाले उन युवा वोटों से होगी जो भाजपा की ओर जा सकते हैं.’ वे आगे कहते हैं, ‘ऋचा का नाम दो साल पहले ही सामने आया है और पार्टी में भी वो उतनी ही नयी हैं. इसका जहां उनको फायदा मिल सकता है, वहीँ इसका नुकसान भी उनको उठाना पड़ सकता है.’
ऋचा सिंह के साथ समस्या यह है कि वे जनवादी छात्र राजनीति से ‘समाजवादी’ सामाजिक राजनीति में उतरी हैं. अक्सर मुद्दे अलग होते हैं और वोट उन मुद्दों पर नहीं पड़ता हैं. ऋचा सिंह यदि अपना छात्रनेता वाला रवैया अपनाती हैं, जिसमें हिंदूवादी मूल्यों का विरोध करना प्रमुख मुद्दा है, तब ऋचा हिन्दू वोट गंवाने का सौदा कर सकती हैं. अतीक़ अहमद के भाई मोहम्मद अशरफ मुस्लिमबहुल इलाकों में घूम-घूमकर ऋचा सिंह के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं, इस वजह से यदि मुस्लिम वोट बसपा की ओर नहीं जाते हैं तो फायदा ऋचा सिंह को मिल सकता है. मुख्यधारा की राजनीति और छात्र राजनीति के ‘स्पार्क’ में बहुत ज्यादा अंतर है, जिसे ऋचा सिंह धीरे-धीरे पाटने की कोशिश कर रही हैं. कल यहां वोट पड़ने वाले हैं और यह कल ही पता चलेगा कि वह इस अंतर को कितना ख़त्म कर सकी हैं.
ऐसे में इलाहाबाद पश्चिमी सीट को देखें तो पूजा पाल के वोटबैंक में ऋचा सिंह धीरे-धीरे जहां सेंध लगाने की जुगत में हैं, वहीँ सिद्धार्थनाथ सिंह ऋचा सिंह के वोटबैंक को कमज़ोर करते जा रहे हैं. ऐसे में ऋचा सिंह की नई राजनीतिक गाड़ी को पूजा पाल और सिद्धार्थनाथ सिंह दोनों ही थोड़ा दबाकर चल रहे हैं.
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