Home Lead Story मुस्लिम सियासी पार्टियों के ‘इत्तेहाद फ्रंट’ में नहीं है कोई ‘इत्तेहाद’

मुस्लिम सियासी पार्टियों के ‘इत्तेहाद फ्रंट’ में नहीं है कोई ‘इत्तेहाद’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

साल 2015 में उत्तर प्रदेश की चार मुस्लिम सियासी पार्टियों ने इत्तेहाद फ्रंट नाम से एक राजनीतिक गठबंधन का ऐलान किया था. इसका मक़सद मुसलमान और दलित वोटरों के लिए एक ऐसा राजनीतिक मंच मुहैया करवाना था जहां सांप्रदायिकता, पूंजीवाद और मीडिया के गठजोड़ के ख़िलाफ़ मतदान किया जा सके.

फ्रंट के गठन के दौरान ही तय हुआ था कि उत्तर प्रदेश की तमाम मुस्लिम, दलित और पिछड़ों की पार्टियों को एकजुट किया जाएगा ताकि समाज के वंचित तबक़े को उसका साथ मिल सके और राज्य सत्ता में उसकी बराबर की भागीदारी हो. मगर अफ़सोस की बात यह है कि इत्तेहाद फ्रंट आकार लेने से पहले ही बिखर गया है.

इस फ्रंट का एक मक़सद यह भी था कि फ्रंट के लोग सपा, बसपा और कांग्रेस से ज्‍यादा मुस्लिम प्रतिनिधित्‍व की मांग करेंगे और जो इनकी मांग पूरी करेगा, उसका चुनाव में साथ देंगे. मगर बाद में इस फ्रंट की ओर से कहा गया कि ये सभी पार्टियां मुसलमानों के वोट का सिर्फ़ इस्तेमाल करती हैं. इसलिए फ्रंट अपने उम्मीदावार चुनाव मैदान में उतारेगा.

इस मक़सद के तहत कई पार्टियां इस इत्तेहाद फ्रंट में शामिल हुई. जिसकी चर्चा मीडिया में भी हुई. साथ ही इस फ्रंट के नेताओं ने दावा किया कि असदुद्दीन औवेसी की पार्टी समेत क़ौमी एकता दल और मुसलमानों की सियासत करने वाली कुछ और पार्टियों से भी बात चल रही है और जल्द ही उनका फ्रंट और मज़बूत होकर उभरेगा.

लेकिन इस फ्रंट से पहले मुस्लिम लीग अलग हुई. फिर मुस्लिम मजलिस भी अलग हो गई. फिर अय्यूब अंसारी की पीस पार्टी और आमिर रशादी की राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल भी अलग होकर अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. 

इनके अलग होने की वजह पूछने पर फ्रंट के संयोजक व मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद सुलेमान TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं कि इन दोनों नेताओं ने खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने की मांग की थी. लेकिन आप जानते हैं कि मुस्लिम मुख्यमंत्री का ऐलान करते ही साम्प्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो जाता. इसलिए फ्रंट ने इससे इंकार कर दिया.

दिलचस्प बात यह है कि जमाअत-ए-इस्लामी की सियासी पार्टी वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया भी इस फ्रंट की संस्थापक पार्टी रही है. लेकिन फ्रंट में रहने के बावजूद इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैय्यद क़ासिम रसूल इलियास दिल्ली में मिल्ली रहनुमाओं को एकजूट करके यह तय करने में लगे हैं कि मुसलमान अखिलेश को वोट दे या मायावती को.

सैय्यद क़ासिम रसूल इलियास बताते हैं कि हमारी वेलफेयर पार्टी इस बार चुनाव नहीं लड़ेगी. क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि हमारे लड़ने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी अभी भी इत्तेहाद फ्रंट के साथ है.

वेलफेयर पार्टी के सवाल पर फ्रंट के संयोजक मोहम्मद सुलेमान का कहना है कि -‘उनकी हमेशा दोहरी पॉलिसी रही है. हमने उन्हें हर जगह मंच दिया. वो फ्रंट में नहीं रहेंगे तो भी इस फ्रंट पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’

बताते चलें कि इस फ्रंट ने 11 जनवरी को 71 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुके हैं. मोहम्मद सुलेमान के मुताबिक़ वो जल्द ही 150 उम्मीदवारों की सूची जारी करेंगे. वहीं इस फ्रंट में शामिल अम्बेडकर समाज पार्टी भी 120 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है. इस फ्रंट में इस समय 11 पार्टियां शामिल है. इन 11 पार्टियों में इंडियन नेशनल लीग, परचम पार्टी ऑफ इंडिया, अवामी विकास पार्टी, अम्बेडकर समाज पार्टी, नेशनल लोकमत पार्टी, नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, नवभारत निर्माण पार्टी, एन.डी.एफ़, समाजवादी जनता पार्टी और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया का नाम शामिल है. 

मोहम्मद सुलेमान का कहना है कि हमें पूरी उम्मीद है कि इस बार फ्रंट यूपी की सियासत एक बड़ा कारनामा अंजाम देगा. ख़ास तौर पर पूर्वांचल में हमें हर तबक़े का समर्थन हासिल है. हम कई सीटों पर कामयाबी हासिल करेंगे.

मालूम हो कि 2012 विधानसभा चुनाव के पहले भी 20 छोटे दलों ने मिलकर इत्तेहाद फ्रन्ट नाम से एक राजनीतिक मोर्चा बनाया था. तब इसकी अगुवाई पीस पार्टी व इण्डियन जस्टिस पार्टी को लेकर ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य व शैक्षणिक संस्था नदवा दारूल उलूम के अध्यापक मौलाना सैय्यद सलमान हुसैनी नदवी कर रहे थे. फ्रंट ने सभी 403 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. नतीजा क्या हुआ, यह आप सब बखूबी जानते हैं.