‘बहन जी ने ठीक किया, अब भाजपा के ख़िलाफ़ सभी को एकजुट हो जाना चाहिए’ —इमरान मसूद

TwoCircles.net Staff Reporter

सहारनपुर : उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री आैर बसपा सुप्रीमो के राज्यसभा से इस्तीफ़े के बाद एक बार फिर से सहारनपुर का शब्बीरपुर कांड सुर्खियों में है.


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मायावती के इस्तीफ़े की पहली लाइन में ही शब्बीरपुर का ज़िक्र है आैर उनका साफ़ कहना है कि जब वह दलितों की बात नहीं उठा पाएंगी तो उनका राज्यसभा का सदस्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं है.

इस तरह की शब्दावली के साथ मायावती के इस्तीफ़े पर राजनीतिक चिंतकों का कहना है कि मायावती ने यह क़दम उठाकर दाेराहे पर खड़े अपने बेस वाेटर, मुख्य रूप से वेस्ट यूपी के दलितों की मज़बूत रहनुमाई का संदेश दिया है.

मायावती के इस क़दम को लेकर सहारनपुर, मुज़फ़्फ़रनगर और बिजनौर में जन-प्रतिनिधियों आैर नेताआें की अलग-अलग राय है.

भाजपा के मंत्री धर्म सिंह सैनी ने इसे ड्रामा बताया है तो हाल ही में सपा छोड़कर बसपा का दामन थामने वाले पूर्व राज्यसभा सांसद रशीद मसूद के बेटे शादान मसूद ने इसे बहन जी का दर्द क़रार दिया है.

कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष इमरान मसूद ने तो यह तक कह दिया है कि अब सभी को भाजपा के साथ ख़िलाफ़ एकजुट होना चाहिए. उन्होंने सभी गैर-भाजपाई दलों से मायावती के पक्ष में खड़े हो जाने की अपील की है.

आगे इमरान ने यह भी कहा है कि, अगर आज बहन जी का साथ नहीं दिया गया तो कल सीबीआई का सहारा लेकर विरोध में उठने वाली हर ज़बां बंद करने की कोशिश होगी. राज्यसभा जैसे सदन में बसपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी की सुप्रीमो मायावती को बोलने ना देना लोकतंत्र के लिए घातक है.

समाजवादी पार्टी के सहारनपुर ज़िलाध्यक्ष जगपाल दास सीधे तौर पर कहते हैं कि विपक्ष की आवाज़ को दबाया जा रहा है जो ठीक नहीं है.

सहारनपुर देहात विधायक मसूद अख्तर भी कहते हैं कि लोकतंत्र में सभी को बोलने का अधिकार है.

मुज़फ़्फ़रनगर के समाजवादी पार्टी के नेता चन्दन चौहान ने भी मायावती के फैसले का समर्थन किया है. उन्होंने कहा है कि, बड़ी नेता होने के नाते सदन में उन्हें सिर्फ़ 3 मिनट बोलने देना और अपमानित करते हुए रोक देना लोकतांत्रिक तरीक़े से सही नहीं है. भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार मनमाने तरीक़े से लोकतंत्र को कुचल रही है.

अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन रहे पूर्व मंत्री बिजनौर निवासी शेख़ सुलेमान के अनुसार जब किसी को अपनी बात कहने ही नहीं दी जाएगी तो वो इस्तीफ़ा ही तो देगा. भारत में दलितों, पिछडों की आवाज़ कुचली जा रही है.

रालोद एमएलसी मुश्ताक़ चौधरी ने भी मायावती को सदन में बोले जाने पर रोकने पर ऐतराज किया है. उनका कहना है कि उनकी बात सुनी जानी चाहिए थी वो बड़ी नेता हैं.

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