Home Lead Story ‘मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना चाहता था और मैं बन गया’

‘मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना चाहता था और मैं बन गया’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है

मेरी आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा…

बशीर बद्र का ये शेर बिहार के आरिफ़ अहसन पर हू-बहू लागू होता है, जिन्होंने इस बार देश के सबसे ऊंचे इम्तिहान में कामयाब होकर अपनी मंज़िल हासिल कर ली है. आरिफ़ बताते हैं कि ‘यूं तो मेरे पसंदीदा शायर चचा ग़ालिब हैं, लेकिन बशीर बद्र का ये शेर मुझे हमेशा इंस्पायर करता रहा है. इसलिए ये शेर मेरे पसंदीदा अश्आर में शामिल है.’

बिहार के गया ज़िला में जन्मे आरिफ़ अहसन के ज़िन्दगी का बस एक ही मक़सद था कि यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल करके सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना. आरिफ़ 2012 में यूपीएससी की परीक्षा देकर असिस्टेंट कमांडेंट बने, लेकिन उन्होंने यह सरकारी पद ठुकरा दिया और अपने मक़सद को हासिल करने में लग गए. चार बार नाकाम होने के बाद पांचवी बार में यूपीएससी के इस परीक्षा में 74वां रैंक लाकर अपने आईएएस बनने का ख़्वाब पूरा कर लिया.

आरिफ़ का परिवार गया शहर के करीमगंज इलाक़े में रहता है. गया के ही ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल से 2004 में 86.2 फ़ीसदी अंक लाकर आरिफ़ ने दसवीं पास की. उसके बाद की तालीम के लिए वो दिल्ली आ गए. यहां उनका दाख़िला जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुआ. जामिया स्कूल से 2006  में बारहवीं की परीक्षा 79.4 फ़ीसद अंकों से पास की. 2010 में जामिया से ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने. इंजीनियर बनने के बाद दो महीने एक प्राईवेट कम्पनी में नौकरी की, लेकिन दिल में कुछ और था, इसलिए नौकरी छोड़ दी.

2012 में यूपीएससी के ज़रिए ही असिस्टेंट कमान्डेंट बने, लेकिन ज्वाईन नहीं किया. यही नहीं, इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के परीक्षा में तीन बार इंटरव्यू तक पहुंचे. 2014 में यूपीएससी मेन्स पास करके इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके.

आरिफ़ कहते हैं कि, ये मेरी पांचवी कोशिश थी. मैंने लगातार अपनी कोशिश जारी रखी. आईएएस बनने का ख़्वाब था, और आज कामयाब हूं.

उन्होंने इस परीक्षा के लिए कौन सा विषय लिया था और क्यों? तो इस सवाल के जवाब में आरिफ़ बताते हैं कि उन्होंने इस परीक्षा के लिए उर्दू अदब का चयन किया था. क्योंकि शुरू से ही उन्हें उर्दू अदब से लगाव रहा. बचपन से ही उर्दू पढ़ा. वो बताते हैं कि, उर्दू अदब का सिलेबस काफी बेहतर है. कम समय में इसे अच्छे से कवर किया जा सकता है. वैसे ये स्कोरिंग सब्जेक्ट भी है.   

परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां की? इस पर आरिफ़ अहसन का कहना है कि मैंने कभी कोचिंग नहीं की. खुद से तैयारी करने में ही यक़ीन रखा. हमदर्द स्टडी सर्किल में रहकर डेढ़-दो साल पढ़ाई की. फिलहाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कोचिंग एंड गाईडेंस सेन्टर में सितम्बर 2015 से रहकर तैयारी कर रहा था. जामिया तैयारी के लिए अच्छी जगह है. वहां रहने, खाने व पढ़ने की अच्छी सुविधा है.

ये पूछने पर कि आपका नाम ज़कात फ़ाउन्डेशन की लिस्ट में भी शामिल है. इस पर वो बताते हैं कि ज़कात फ़ाउंडेशन में सिर्फ़ मौक इंटरव्यू दिया था. वहां न तो रहा हूं और न ही कोई आर्थिक मदद ली है. 

एक लंबी बातचीत में अपनी परेशानियों के बारे में आरिफ़ बताते हैं कि मेरी ज़िन्दगी के सफ़र में काफ़ी अप-डाउन्ड्स रहें. कई बार मन में कई सवाल आए. इंटरव्यू तक पहुंच कर कामयाब नहीं हो सका. लेकिन बावजूद इसके अपने ऊपर कॉन्फीडेंस रखा और लगातार अपने मक़सद के लिए लगा रहा. आज इसी की वजह से कामयाब हुआ. अगर मैं चाहता तो 2012 में ही असिस्टेंट कमान्डेंट बन जाता तो आज डी.सी. बन चुका होता. लेकिन वो मेरा मक़सद या गोल नहीं था. उसे छोड़ दिया. मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना चाहता था और मैं बन गया.

बिहार को लेकर आपके क्या फिलिंग्स हैं? इस सवाल पर आरिफ़ बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में बिहार ने यक़ीनन काफी प्रोग्रेस किया है. लेकिन अभी भी शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत काम करने की ज़रूरत है. क्योंकि जब तक ये नहीं सुधारेंगे, विकास की राह में रोड़े आते रहेंगे. 

वो बताते हैं कि मैं अपनी सर्विस बिहार में ही लेना चाहूंगा. मेरी फर्स्ट च्वाईस बिहार ही है. अगर मुझे बिहार में कहीं किसी भी ज़िला में ज़िम्मेदारी दी जाती है तो शिक्षा पर सबसे अधिक फोकस करूंगा. टीचर अटेंडेन्स को चेक करना बहुत ज़रूरी है. ये बहुत ज़रूरी है कि पहले टीचर ईमानदारी के साथ स्कूल आएं और बच्चों को सही से पढ़ाएं. मैं अपने ज़िले के टीचरों को विशेष ट्रेनिंग दूंगा कि उन्हें कैसे और क्या पढ़ाना है.

सोशल मीडिया पर सवाल पूछने पर वो बताते हैं कि सोशल मीडिया पर वो जो कुछ भी पढ़ रहे हैं, उसे लाईक, कमेंट या शेयर करने से पहले जांच लें कि वो पोस्ट कितना सही है. क्योंकि सच्चाई यही है कि सोशल मीडिया के ज़माने में गलत सूचनाएं लोगों तक ज़्यादा पहुंच रही हैं. आज समाज में अगर कुछ ग़लत हो रहा है तो उसके लिए ये ‘ग़लत सूचना’ ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. आरिफ़ खुद भी सोशल मीडिया पर हैं, लेकिन फेसबुक पर बहुत ज़्यादा एक्टिव नहीं रहें, लेकिन उन्होंने ट्वीटर पर थोड़ा बहुत वक़्त ज़रूर दिया है. क्योंकि आरिफ़ मानते हैं कि वहां कुछ अच्छे ट्वीटर हैंडल्स को फॉलो करके अपना कुछ ‘ज्ञान’ ज़रूर बढ़ाया जा सकता है.     

यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे? इस सवाल पर आरिफ़ बताते हैं कि मैं ख़ासतौर पर दो बातें कहना चाहुंगा. सबसे पहले ये तय कीजिए कि क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है. क्योंकि सिलेबस बहुत ज़्यादा होता है. दूसरी बात सही गाईडेंस की सख्त ज़रूरत होती है. कोई भी अच्छे सीनियर या टीचर से गाईडेंस ज़रूर लें. समय-समय पर उनसे बात करें. और कभी भी हार नहीं मानना चाहिए. धैर्य के साथ लगातार लगे रहिए, एक न एक दिन कामयाबी ज़रूर मिलेगी. 

देश के युवाओं खास़ तौर से अपने क़ौम के युवाओं से आप क्या कहना चाहेंगे? तो इस पर आरिफ़ का कहना है कि, आपको खुद ही आगे बढ़ना होगा. जो क़ौम खुद की मदद नहीं करती, खुदा भी उसकी मदद नहीं करता है. ये समाज आपको सिर्फ़ चिंगारी ही दे सकता है. आग लगाना आपका खुद का काम है. तालीम पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है. ख़ास तौर पर लड़कियों को तालीम हासिल करना बहुत ज़रूरी है. मैं गार्जियन्स से कहना चाहूंगा कि वो अपने बच्चों को अधिक से अधिक तालीम दें.

आरिफ़ की इस कामयाबी ने यह साबित कर दिया है कि अगर हौसलों में दम हो और इरादे पक्के, तो कामयाबी की परवाज़ को रोकना किसी के बस में नहीं. आरिफ़ को फ़िल्में देखना भी पसंद है. खासतौर पर वो फ़िल्में जो आपके अंदर कुछ करने का जज़्बा पैदा करे और सिस्टम को बदलने के ख़ातिर आपको अंदर तक झकझोर कर रख दे. आरिफ़ पिछले एक साल तैयारियों में बहुत मशग़ुल रहे, बावजूद इसके वक़्त निकालकर मनोज वाजपेयी अभिनित ‘अलीगढ़’ को देखना नहीं भूले. इन्हें चचा ग़ालिब बहुत पसंद हैं. बातचीत में ग़ालिब के कई अश्आर का ज़िक्र किया.

ख़ास तौर पर ग़ालिब का ये शेर आरिफ़ को काफी पसंद है, क्योंकि उनका मानना है कि इसमें इंसान के होने न होने की बात की गई है. इंसान कुछ भी कर सकता है, बशर्ते कि कुछ करने का जज़्बा होना चाहिए.

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता

डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता!