फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
अक्सर देखा जाता है कि बारहवीं के बाद मां-बाप के साथ बच्चे अपने करियर को लेकर गंभीर हो जाते हैं. हर बच्चा चाहता है कि वो बस अपना गांव शहर छोड़कर देश के किसी बड़े शहर में रहे और आगे की पढ़ाई करे. हर बच्चा चाहता है कि उसका दाख़िला जामिया, एएमयू, जेएनयू और डीयू जैसी यूनिवर्सिटियों में हो. लेकिन बिहार के छात्रों के लिए यह सपना इस बार महज़ सपना ही बन कर रह जाएगा.
हम सभी जानते हैं कि जामिया, एएमयू, जेएनयू और डीयू जैसी यूनिवर्सिटियों में दाख़िला कम्पीटिशन, कट ऑफ या मेरिट के आधार पर होता है. लेकिन इस बिहार व झारखण्ड राज्य के बारहवीं पास बच्चों के न तो इतना नम्बर है कि वो मेरिट या कट ऑफ़ के बुनियाद पर दाख़िला ले लें. और अगर इन्होंने कम्पीटिशन निकाल भी लिया है तो वो बारहवीं के परीक्षा में फेल हैं या इतने कम नंबर हैं कि यहां उनका दाखिला हो ही नहीं सकता. यानी इस बार के रिजल्ट ने आगे बढ़ने के सपने को पूरी तरह तोड़ दिया है.
हालांकि इंटर के ख़राब रिजल्ट को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने काफी गंभीरता से लिया है. मुख्यमंत्री ने बुधवार को कहा है कि जिन छात्रों का रिज़ल्ट ख़राब हुआ है, वे ऑनलाइन आवेदन करें. उनकी उत्तर-पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन कर एक महीने के अंदर रिज़ल्ट जारी किया जाएगा. साथ ही कंपार्टमेंटल परीक्षा का आयोजन भी जल्द-से-जल्द किया जायेगा, ताकि जो परीक्षार्थी असफल हुए हैं, उन्हें मौक़ा दिया जा सके. लेकिन बावजूद इसके बिहार के छात्र यक़ीनन बड़ी यूनिवर्सिटियों में दाख़िला से महरूम रह जाएंगे.
सच तो यह है कि बिहार के न जाने ऐसे कितने बच्चे हैं, जिन्होंने जेईई मेन्स क्लियर कर चुके हैं, लेकिन बिहार बोर्ड के इंटरमीडिएट के नतीजों में फेल हैं. दरअसल ये वैसे विद्यार्थी थे, जिनको इंटर में बेहतर परिणाम और अच्छे अंक आने का भरोसा था, लेकिन नतीजों में ये फर्स्ट क्लास तो दूर बल्कि फेल नज़र आएं.
बताते चलें कि इस साल जितने भी राज्यों में 12वीं के रिजल्ट घोषित हुए हैं, उनमें सबसे ख़राब प्रदर्शन बिहार बोर्ड का रहा है. उसके बाद नंबर झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) का है.
आख़िर इस बार बिहार के बच्चों का भविष्य क्या होगा? क्या वो देश के बड़े कॉलेजों में दाख़िला पा सकेंगे? इन सवालों को TwoCircles.net ने समझने की कोशिश की. इस क्रम में हमने कई लोगों से बातचीत की.
विवेक वैभव जो कि हाई स्कूल के अध्यापक हैं कहते हैं कि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि छात्रों की संख्या हर साल बढ़ रही है. लेकिन उस अनुपात मे शिक्षकों की संख्या नहीं बढ़ी है. इस बार परीक्षा को लेकर बहुत कड़े इंतेज़ाम किये गए थे. इसलिए रिज़ल्ट पर सवाल खड़े करने का कोई उचित कारण नहीं दिखता.
सासाराम की पूनम कुमारी कहती हैं कि उनको ऐसे रिज़ल्ट की उम्मीद नहीं थी. वो सी.ए. करना चाहती थी. उनके पिता ने नोएडा के एक कॉलेज में सीट भी बुक करा लिया था. लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था की मैं फेल कर जाउंगी.
पटना के रहने वाले मुहम्मद इब्राहिम नतीजों को लेकर काफ़ी आशान्वित थे और वो जेईई एडवांस के नतीजों के बारे में सोच रहे थे. लेकिन रिज़ल्ट आते ही उनकी आशा निराशा में बदल गई. इब्राहिम को जेईई मेन्स में 89 मार्क्स मिले थे, लेकिन इंटर की परीक्षा में वो दो विषयों में फेल हैं. ऐसे न जाने कितने ही छात्र हैं, जिनके सपने इस रिजल्ट ने नाकाम किए हैं.
यही नहीं, इस साल की बिहार टॉपर खुश्बू कुमारी के इलावा बहुत सारे परीक्षार्थियों ने दावा किया है कि उनके मार्क्स उनके उम्मीद से कम आए हैं और वे कॉपी की रि-चेकिंग कराएंगे. नंबर कम आने के दूसरे और भी पहलूओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
यहां यह भी बताते चलें कि 8 मई को कई अख़बारों ने खुलासा किया था कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने जो मास्टर ऐन्सर शीट उत्तरपुस्तिका जांच-कर्ताओं को सौंपी थी, उसके अधिकांश प्रश्नों के उत्तर ग़लत हैं. जिसकी जानकारी एक जांच-कर्ता शिक्षक विनय आनंद ने ईटीवी न्यूज़ 18 हिन्दी के पत्रकारों से बात करते हुए दिया था.
साईंस के मॉडल ऐन्सर शीट के 15% उत्तर ग़लत हैं. यदि किसी जाच-कर्ता ने ध्यानपूर्वक आत्मविश्वास के साथ जांच नहीं किया और परीक्षा समिति के द्वारा दिए गए ऐन्सर शीट को सही मानकर नंबर दिया है तो यक़ीनन अधिकांश बच्चों के फेल होने या नंबर कम आने की सम्भावनाएं खुद बखुद बढ़ जाती हैं. यानी इसकी पुष्टि 8 मई को ही हो गई थी कि 16 लाख बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा. हालांकि तब सबको ये महज़ एक मज़ाक लगा था. पर जैसे ही रिज़ल्ट सामने आया है, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की लापरवाही सवालों के कटघरे में दिख रही है.
यहां यह बात भी ग़ौर करने की है कि भले ही इस बार बिहार का रिज़ल्ट खराब रहा है, लेकिन ये भी सच है कि इससे पहले छात्रों ने इसी बिहार बोर्ड से परीक्षा दी है और सफलता भी पाई है. आज वो छात्र देश के हर कोने में बड़े पोस्ट पर क़ाबिज़ हैं. हर बार के आईटी, इंजिनियरिंग, मेडिकल या फिर सिविल सर्विस की परीक्षा हो, सभी में बिहार के छात्रों का क़ब्ज़ा रहता है. ऐसे में इस बार का रिज़ल्ट कई सवाल खड़े करता है. आखिर इतने छात्रों के फेल होने में किसका दोष मानें, लापरवाह शिक्षा व्यवस्था का या सरकार का…?
बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है. दुनिया को ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाला नालंदा और विक्रमशिला इसी धरती पर हैं. दुनिया को पहला लोकतंत्र इसी बिहार की धरती से मिला. राजेंद्र प्रसाद से लेकर जेपी तक इसी धरती पर हुए. राजनीतिक रूप से बिहार पहले भी संपन्न था और आज भी उतना ही संपन्न है. फिर ऐसा क्या हो गया जो बिहार विकास की रेस में पीछे चला गया? यक़ीनन नीतिश कुमार शिक्षा के दिशा विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है.