आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर: जिले की 6 विधानसभाओं में से 4 पर यहां के कद्दावर ‘राणा परिवार’ के चार सदस्य ताल ठोंक रहे थे. विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद कमाल यह है कि ये चारों सदस्य चुनाव बुरी तरह से हार गए हैं.
बुढ़ाना से सईदा क़ादिर राणा, शाहनवाज़ राणा खतौली से, नूरसलीम राणा चरथावल से और जाकिर राणा मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ रहे थे. चुनावी नतीजों में सईदा दूसरे, नूरसलीम तीसरे, शहनवाज़ चौथे और जाकिर छठे स्थान पर आये है. शाहनवाज़ राणा और जाकिर राणा की तो जमानत भी जब्त हो गयी है. वे अलग-अलग पार्टी से लड़ रहे थे, जैसे सईदा क़ादिर और नूरसलीम बसपा के टिकट पर, शाहनवाज़ राणा रालोद से और जाकिर राणा बिना दल के अपने दम पर चुनाव लड़ रहे थे.
चारों सदस्यों के नामांकन मे एक ही पता था – गांव सुजडू यानी शहर कोतवाली का 20 हजार आबादी वाला राणाओ की राजधानी वाला गांव. क़ादिर राणा, जाकिर राणा और नूरसलीम राणा सगे भाई है और शाहनवाज़ राणा बड़े भाई के बेटे है. चारो एक ही आंगन में रहते हैं. चारो का अपना राजनीतिक इतिहास है, और यह अदालता राजनीतिक आस्था के अनुसार बदलता रहता है.
क़ादिर राणा से बात करते हैं. वो सपा से 60 हजार वोट लेकर भी 2002 में शहर विधानसभा चुनाव हार गए और रालोद से 2007 में मोरना (अब मीरापुर) विधायक बन गए. इससे पहले वो 2004 में कांग्रेस से एमएलसी रहे, फिर उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर कई बार चुनाव लड़ा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनो के जिलाध्यक्ष रहे. 2009 में बसपा के टिकट पर सांसद बने. 2014 मे बसपा के टिकट पर फिर लोकसभा लड़े और संजीव बालियान से हार गये. इस बार विधानसभा में उनकी पत्नी सईदा कादिर राणा भी हार गयी, उन्हें 60 हजार वोट मिले.
क़ादिर राणा के एक भाई नूरसलीम राणा 2012 में बसपा के टिकट पर चरथावल से विधायक चुन लिए गए, इस बार वे हार गये और उन्हें 47707 वोट मिले. शाहनवाज़ राणा रालोद के टिकट पर खतौली से लड़े. पहले उनकी विधानसभा बिजनौर थी, फिर मीरापुर हुई. सबसे पहला चुनाव उन्होंने कैराना से लड़ा था. फिर इलाहाबाद बार कॉउंसिल मे उपाध्यक्ष, फिर बिजनौर, फिर जिला पंचायत मुजफ्फरनगर मे पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं. फिर बिजनौर विधानसभा, फिर बिजनौर जिला पंचायत, फिर मीरापुर और अब खतौली. दल भी देख लीजिये. 2004 बसपा से कैराना, 2007 बसपा से बिजनौर, 2012 रालोद से बिजनौर विधानसभा, 2012 सपा से जिला पंचायत मुजफ्फरनगर, 2014 में समाजवादी पार्टी से बिजनौर लोकसभा, 2017 मे मीरापुर से समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया. कांग्रेस मे सीट जाने की सम्भावना मे दो दिन पहले कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन सीट सपा के हिस्से में गयी. मीरापुर विधानसभा छोड़कर खतौली से रालोद का टिकट हासिल कर ताल ठोंक दी. लेकिन चुनावों में उन्हें 12846 मत ही मिले, जिससे उनकी जमानत नही बची.
जाकिर राणा 2001 मे नजदीकी अंतर से जिला पंचायत अध्यक्ष बनते-बनते रह गए.2008 मे केंद्र सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया और अब मुज़फ्फरनगर शहर से निर्दल चुनाव लड़ रहे थे, उनके निर्वाचन प्रक्रिया का दुर्भाग्य यह है कि उन्हें महज़ 240 मत मिले.
मुजफ्फरनगर और आसपास की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले राणा परिवार का मुस्लिम राजपूत बिरादरी में दबदबा है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के स्टील किंग राणा परिवार के दबंगई के किस्से यहां सुने जा सकते है. 80 के दशक मे सबसे पहले क़ादिर राणा किदवई नगर से सभासद चुने गए थे, अब इनका परिवार जिले का सबसे शक्तिशाली परिवार है.
आज भी यह परिवार चार विधानसभाओं में मजबूत दावेदारी के साथ चुनाव लड़ रहा है. इससे पता चलता है कि वे कितने प्रभावशाली हैं. राणा परिवार का विवादों से भी गहरा नाता है. मगर इनके दबदबे और मुस्लिमो मे पकड़ के चलते चुनाव जीतने की संभावना बनते देख राजनीतिक दल इनके साथ अदलाबदली कर लेते हैं. इस बार भी तमाम फेरबदल और गठजोड़ के बाद एक ही छत के नीचे रहने वाले चार लोग अलग-अलग विधानसभाओं और पार्टी के दम पर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन सभी हार गए.