सिराज माही
नोएडा : ‘काहे का मज़दूर दिवस भैय्या, आज अगर काम नहीं करेंगे तो शाम को पैसा हमें कौन देगा? ऐसा तो है नहीं कि मज़दूर दिवस है, तो सरकार हमको बिना काम के पैसा दे देगी.’ यह तीखे बोल हैं रामसत्य के, जो नोएडा के खोड़ा लेबर चौक पर मज़दूर दिवस पर अपने औज़ार लिए इस इंतज़ार में बैठे हैं कि कोई आदमी आएगा और उन्हें काम पर ले जाएगा.
रामसत्य को यहां बैठे हुए सुबह से तीन घंटा हो गया है. अब तक कोई भी काम देने वाला आदमी नहीं मिला. रामसत्य हरदोई से हैं. खोड़ा कॉलोनी में पिछले कई सालों से रह रहे हैं. घर से लेकर फ़र्नीचर तक की किसी भी तरह की रंगाई पुताई हो, वह आराम से कर सकते हैं.
एक दूसरे मज़दूर हैं ख़ैराती. पूछने पर बताते हैं कि वह चिनाई और प्लास्टर कर लेते हैं. यह पूछने पर कि आज मज़दूर दिवस है. क्या आज भी वह काम पर जा रहे हैं? वह बताते हैं कि पिछले पन्द्रह दिनों तक मैं घर पर था. शादी-बियाह में सारा पैसा ख़र्च हो गया. कल शाम को पांच बजे बरेली से आया हूं. अब अगर आज काम मिलेगा तो ख़र्चे के लिए कुछ पैसा मिलेगा.
यह पूछने पर क्या आपके बरेली में चिनाई का काम नहीं मिलता? इस पर ख़ैराती कहते हैं कि मैं बरेली का ख़ास रहने वाला नहीं हूं, मैं बरेली के गांव का हूं, वहां खेत में मज़दूरी के अलावा दूसरा कोई काम नहीं है. इसलिए यहां चला आया. यहां अगर काम मिलता है तो क़रीब महीने भर के लिए मिल जाता है. अगर नहीं मिला तो हफ़्तों तक काम नहीं मिलता. आज भी लगता है काम नहीं मिलेगा.
बता दें कि नोएडा सेक्टर-62 के पास लेबर चौक है. यहां हर दिन तक़रीबन 100 से 500 मज़दूर अपने काम की तलाश में बैठते हैं. बक़ौल ख़ैराती इन मज़दूरों में से आधे लोगों को काम मिल जाता है, तो आधे लोगों को निराश ही घर लौटना पड़ता है.
ग़ौरतलब है कि 1 मई को भारत सहित दुनिया के लगभग 80 देशों में मज़दूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन इन दोशों की लगभग सभी कंपनियों में राष्ट्रीय छुट्टी रहती है. हालांकि इस साल हरियाणा सरकार ने लेबर डे नहीं मनाने का फ़ैसला किया है.
स्पष्ठ रहे कि अंतराष्ट्रीय तौर पर मज़दूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी. दरअसल, अमेरिका के मजदूर संघों ने मिलकर निश्चय किया कि वे 8 घंटे से ज़्यादा काम नहीं करेंगे. इसके लिए संगठनों ने हड़ताल किया. इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ. जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी, जिसमें कई मज़दूरों की मौत हो गई और 100 से ज़्यादा लोग घायल हो गए. इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंहार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा.
भारत की बात की जाए तो भारत में मज़दूर दिवस के मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 से हुई. भारत में यह भी तय हुआ कि अब हर दिन मज़दूर सिर्फ़ 8 घंटे काम करेंगे. लेकिन जानकारों की मानें तो इस नियम का पालन सिर्फ़ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं. इसके अलावा मज़दूरी के नाम पर न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं देते.