इस साल मार्च 2017 में उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही यहां बहुत कुछ बदल गया है. मुसलमान हालांकि यहां कम संख्या में हैं, लेकिन जो हैं, अब वो भी निशाने पर आ गए हैं. इस मुद्दे पर TwoCircles.net के संवाददाता आस मुहम्मद कैफ़ ने देहरादून जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष और पिछली सरकार में वक़्फ़ बोर्ड के सलाहकार रह चुके मुफ़्ती रईस क़ासमी से बातचीत की. पेश है बातचीत का प्रमुख अंश :
सरकार बदलने के बाद से आप उत्तराखंड में क्या बदला है?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : यहां अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की घटनाएं बढ़ी हैं. बल्कि बहुत ज़्यादा हो रही हैं. हालांकि पहले भी होती थी, मगर अब लगातार हो रही है.
ये किस तरह की घटनाएं हैं?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : अब हर एक मामले में अहसास कराया जा रहा है कि हिन्दू और मुसलमानों के अलग-अलग अधिकार है. मुसलमानों ने सरकार के पास सिफ़ारिश और शिकायत लेकर जाना अब बंद कर दिया है. नतीजे में मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़्यादती हो रही है. मिश्रित आबादी में मस्जिद बनाने की इजाज़त नहीं देते. कई जगह विवाद हुआ है. मुसलमानों को किराए पर घर नहीं मिलता. पुलिस उत्पीड़न करती है…
क्या यह अभी-अभी हुआ है?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : अब बहुत ज़्यादा हो गया है. यहां साम्प्रदायिक ताक़तें बेहद उग्र हो गई हैं. वो बस मुसलमानों के ख़िलाफ़ कुछ न कुछ करना चाहते हैं. हर एक घटना को साम्प्रदायिक रंग दे देते हैं. पिछले कुछ समय से यहां पर्चे बांटे जा रहे हैं, जिनमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाली बातें लिखी हुई हैं. हिन्दू दोस्त अब दोस्त कम रह गए हैं. उन्होंने मिलना जुलना कम कर दिया है.
आपका कोई निजी अनुभव
मुफ़्ती रईस क़ासमी : हां, एक लड़का मेरे पास आता-जाता था. अच्छी बातें करता था, प्यार-मुहब्बत की. समझदार भी लगता था. भाजपा की सरकार आने के बाद उसने आना बंद कर दिया है. मैं बात करने की कोशिश करता हूं तो बहाना बना देता है. अब उसकी तस्वीर मुझे किसी ने सोशल मीडिया पर दिखाई, उसने भगवा कपड़े पहना था और हाथ में नंगी तलवार थी. बड़ा तिलक लगाकर वो हथियारों के साथ खड़ा था. उसके बाद भी मैंने उससे बात की और जानना चाहा कि यह बदलाव क्यों और कैसे? कुछ ख़ास बोला नहीं. वो मेरी इज़्ज़त तो करता है. मुझसे मिलने आया भी, मगर अब उस पर हिंदुत्व का असर है.
नौजवानों में यह बदलाव क्या सरकार बदलने के बाद आया है?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : बहुत सारे बदलाव सरकार के बदलने के बाद ही आए हैं.
और मुसलमानों के साथ हिंसा की घटनाएं कब से होने लगीं?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : पिछले कुछ समय से यहां प्रधानमंत्री जी और अमित शाह के लगातार दौरे हुए हैं. उसके बाद से यहां शिद्दतपसंद ताक़त जोश में हैं. अब आप इस मामले को इस तरह समझिए कि यहां बहुत सी झांकियां निकलती हैं. मगर यह इनामुल्लाह बिल्डिंग के पास से नहीं गुज़रती थीं. क्योंकि यह एक मुस्लिम बहुल जगह है. मगर इस बार जान-बूझकर प्रसाशन के मना करने के बावजूद झांकियां व जुलूस इसी रास्ते से न सिर्फ़ गुज़रा बल्कि ज़ोरदार हंगामा किया गया और मुसलमानों को निशाना बनाकर भड़काऊ नारे लगाए गए.
आपने इस मामले में क्या किया?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : हम एक प्रतिनिधिमंडल के साथ डीएम से मिले थे. उन्होंने कहा आप पुलिस से मिल लीजिए. जबकि डीएम चाहते तो सीधे आदेश करते. पुलिस से मिले तो उन्होंने कहा, डीएम साहब ने आदेश क्यों नहीं किया, वो सीधे कर देते. हम सब असहाय से हो गए. पुलिस ने अपनी हर ज़िम्मेदारी से हाथ झाड़ दिया. यह तो अच्छा हुआ कि मुस्लिम नौजवान घरों से नहीं निकला. उन्होंने बुजुर्गों की बात मान ली, मगर यह कब तक चलेगा. एक दिन कुछ न कुछ होगा.
अब आप क्या सोचते हैं?
मुफ़्ती रईस क़ासमी : अल्लाह करे ऐसा कभी न हो. मगर हालात ऐसे ही हैं. मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़के के प्रेम-प्रसंग में चली गई तो पुलिस मुक़दमा दर्ज नहीं करती. अगर दर्ज कर भी ले तो लीपापोती ही करती है. लेकिन अगर लड़की हिन्दू हो तो लड़के पक्ष का पूरा परिवार जेल में डाल दिया जाता है. पड़ोसी भी पीटते हैं. बारूद की ढ़ेर पर है उत्तराखंड, खुदा खैर करे…