‘देशभक्ति’ का ये कैसा पैमाना है, जहां युवाओं के भविष्य पर हमला किया जा रहा है?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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रांची : ‘नवंबर 2013, आगरा में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि ‘अगर भाजपा सत्ता में आई तो हर साल एक करोड़ नई नौकरियां पैदा करेगी.’ लेकिन आज हक़ीक़त इससे कोसों दूर है. भारत की अर्थव्यवस्था आज ‘रोज़गार विहीन विकास से रोज़गार ख़त्म करने वाला विकास’ हो गई है.’

ये बातें जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष गीता कुमारी ने TwoCircles.net से बातचीत करते हुए कही हैं. गीता ‘नफ़रत नहीं अधिकार चाहिए, शिक्षा और रोज़गार चाहिए’ नारे के साथ चंडीगढ़ से निकले ‘छात्र-युवा अधिकार यात्रा’ को लेकर शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची पहुंची हैं.

गीता कुमारी का कहना है कि, 2013-14 में शिक्षा पर कुल केन्द्रीय बजट का 57% खर्च को 2016-17 में घटाकर 3.65% कर दिया गया है. वहीं साल 2016-17 में बड़े कॉर्पोरेट्स को दी गई टैक्स छूट 83,492 करोड़ रुपये है. इतने पैसे से देश में जेएनयू जैसे सस्ते और गुणवत्तामूलक 491 विश्वविद्यालय चल सकते थे.

वो आगे कहती हैं कि, नोटबंदी के बाद आर्गनाइज्ड सेक्टर से 15 लाख नौकरियां चली गई हैं. यूनिवर्सिटी में ज़बरदस्त सीट कटौती हुई है. छात्रवृति का हक़ भी मारा जा रहा है. झारखंड में छात्रवृति कटौती के कारण सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े छात्र पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं. वहीं सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों की फ़ीस में भारी वृद्धि की है. लेकिन जब छात्र-युवा सरकार की इन नीतियों के ख़िलाफ़ सवाल उठा रहे हैं तो उन सवालों का जवाब देने के बजाए सरकार उन्हें धर्म के नाम पर उलझाने व लड़ाने का काम कर रही है. समझ नहीं आ रहा है कि भाजपा सरकार की ‘देशभक्ति’ का ये कैसा पैमाना है, जहां छात्रों-युवाओं के भविष्य पर हमला किया जा रहा है, वहीं कॉर्पोरेट को खज़ाना लूटने की पूरी छूट है.

इस यात्रा में शामिल ‘आइसा’ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज कुमार TwoCircles.net से बातचीत में बताया कि, इस ‘छात्र-युवा अधिकार यात्रा’ की शुरूआत चंडीगढ़ से हुई थी, जो हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार के विभिन्न शहरों से होते हुए झारखंड पहुंची है. आगे ये यात्रा झारखंड के विभिन्न ज़िलों में सभाओं को संबोधित करते होते हुए आगामी 21 नवम्बर को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में समाप्त होगी.

वो बताते हैं कि, इस यात्रा में मुख्य रूप से दर्जन भर लोग शामिल हैं. इनमें जेनएनयू छात्र संघ अध्यक्ष गीता कुमारी, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुचेता डे, राष्ट्रीय महासचिव संदीप सौरभ, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष फ़रहान अहमद के नाम प्रमुख हैं.

वो कहते हैं कि, यह सरकार अपने ही देश में एक अलग तरह का देश बनाना चाहती है, जहां किसी को विरोध करने का अधिकार नहीं होगा. मोदी सरकार द्वारा ‘अच्छे दिन’, ‘विकास’ और ‘देशभक्ति’ की माला जपना बेरोज़गारी की मार झेल रहे युवाओं के लिए महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है. देशभर के छात्रों का भविष्य  ख़तरे में है.

आइसा के राष्ट्रीय महासचिव संदीप सौरभ कहते हैं कि, देश में शिक्षा व रोज़गार के बजाए विभाजनकारी नीति के तहत नफ़रत फैलाई जा रही है. अल्पसंख्यक, आदिवासी को एवं दलितों पर भाजपा एवं उनसे जुड़े संगठनों के ज़रिए लगातार हमले किए जा रहे हैं. झारखंड के बालूमाथ, रामगढ़ या जामताड़ा का सवाल हो, चाहे राजस्थान के अंदर ज़फ़र खान की हत्या की, अख़लाक़ की पीट-पीटकर हत्या करने की बात हो या जुनैद खान की हत्या की बात हो. चाहे जेएनयू के छात्र नजीब को एबीवीपी के द्वारा ग़ायब करने का मसला हो. यानी हर जगह जहां भाजपा की सरकार है, वहां लोगों को बांटने व उनमें नफ़रत भरने का काम कर रही है.

ये यात्रा अपने जलसे-जुलूसों के भाषण और अपने पर्चों में इन तथ्यों को ख़ासतौर पर युवाओं के सामने रख रही है —

—पिछले वर्ष 2015-16 में गहन श्रम क्षेत्रों में रोज़गार की संभावनाएं घटकर न्यूनतम पिछले आठ साल के न्यूनतम दर पर आ गई. इसमें 2009 के मुक़ाबले 84 प्रतिशत की गिरावट आई है. (टेलीग्राफ़ 18 मई 2017)

—केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वित्तीय वर्ष में सूती और हस्त-निर्मित कपड़ा उद्योग के कुल 67 संगठित उपक्रम बंद कर दिए गए. इससे 17,600 लोग बेरोज़गार हुए. छोटे पैमाने के वस्त्र उद्योगों में यह दृश्य और भी अधिक भयावह है.

—जनवरी-अप्रैल 2016 के दौरान संगठित नौकरियों की संख्या 9.30 करोड़ दर्ज की गई थी. मई-अगस्त 2016 में यह आंकड़ा 8.90 करोड़ तक और सितंबर-दिसंबर 2016 में 8.60 करोड़ तक गिर गई. इस तरह महज़ एक साल के अंदर ही संगठित नौकरियों की संख्या में क़रीब 70 लाख की कमी आ गई. (सीएमआईई, सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकॉनोमी, 18 जुलाई 2017)

—नोटबंदी के चलते जनवरी-अप्रैल 2017 के बीच क़रीब 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन गया. (सीएमआईई)

—ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के मुताबिक़ हर साल देश भर में तकनीकी संस्थानों से स्नातक होने वाले आठ लाख इंजीनियरों में से 60 प्रतिशत से अधिक बेरोज़गार ही रहते हैं.

—भारतीय रेलवे में अकेले केवल ग्रुप-डी में एक लाख से ज्यादा रिक्त पदों को भरने में यह सरकार बुरी तरह विफल रही.

—आईबीपीएस के ज़रिए विभिन्न बैंकों में 2015 में बहाल हुए 24,604 क्लर्कों की संख्या 2016 में घटकर 19,243 तथा 2017 में 7,883 हो गई. बैंकों में पीओ इन वर्षों में क्रमशः 12,434, 8,822 और 3,562 ही बहाल हुए. (आईबीपीएस के वेबसाइट से)

—आईटी क्षेत्र की सभी प्रमुख कंपनियों में कर्मचारियों की भारी पैमाने पर छंटनी हुई है. कार्यकारी खोज फर्म ‘हेड हंटर्स इंडिया’ के अनुसार अगले तीन वर्षों में आईटी सेक्टर में नौकरी कटौती की दर सालाना 1.75 लाख से 2 लाख के बीच होगी. (14 मई, 2017)

—रोज़गार विनिमय कार्यालयों में पंजीकृत केवल 0.57 प्रतिशत लोगों (प्रति 500 में से केवल 3 लोग) को ही इस संस्था के ज़रिये नौकरी मिली है. (इंडियन एक्सप्रेस, 26 जुलाई, 2017)

—बहुप्रचारित ‘स्किल इण्डिया’ योजना के तहत 2014-15 में लगभग साढ़े चार लाख पंजीकृत नौजवानों में से महज़ 19 प्रतिशत को ही विविध क्षेत्रों में रोज़गार मिल सका.

—2017 के जनवरी से सितंबर तक कुल 800 स्टार्टअप चल रहे हैं. पिछले साल इसी समय-सीमा में यह 6,000 थे. बाक़ी के सब बंद हो चुके हैं.

—मोदी सरकार द्वारा ‘अच्छे दिन’, ‘विकास’ और ‘देशभक्ति’ की माला जपना बेरोज़गारी की मार झेल रहे युवाओं के लिए महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है.

बताते चलें कि झारखंड की बदहाल उच्च शिक्षा व्यवस्था के ख़िलाफ़ आम आदमी पार्टी यूथ और छात्र विंग भी राज्य के सभी ज़िलों में ‘शिक्षा बचाओ’ आंदोलन शुरू कर रहा है. झारखंडी युवाओं के गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के अधिकार की मांग को लेकर ढाई महीने चलने वाले इस आंदोलन को तीन चरणों में किया जाएगा. इसके तहत आगामी 12 जनवरी 2018 को रांची में राज्य स्तरीय छात्र युवा सम्मेलन होगा, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल होंगे.

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