Home Indian Muslim काम तो हम भी वही करते हैं जो ‘धोनी’ करता है, मगर...

काम तो हम भी वही करते हैं जो ‘धोनी’ करता है, मगर लोग हमें भिखारी कहते हैं और धोनी को हीरो…

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

रसूलपुर : बुग्गी में खच्चर की जगह खुद 70 किलोमीटर तक गाड़ी खींचने वाली मीना सलीम पश्चिम उत्तर प्रदेश में इन दिनों चर्चा की विषय है. मजबूरी में की गई इस कारनामें के बारे में खूब बातें हो रही हैं. लेकिन मीना के साहस को लेकर रसूलपुर के मुस्लिम नट बिरादरी के लोगों को कोई आश्चर्य नहीं है.

यहां के जमील अहमद कहते हैं कि, यह कोई बड़ी बात नहीं है. हमारे लड़के-लड़कियां मज़बूत बदन के होते हैं. हमारे पास ऐसे भी लड़के हैं, जो 500 मीटर की दूरी सिर्फ़ हाथों पर चलकर तय कर सकते हैं. उनके अनुसार मीना में यह खून का असर है, जिसने उसे इतनी हिम्मत दी.

दरअसल, मीना मुस्लिम नट बिरादरी से है, जिसे ‘बादी’ कहा जाता है. यह खानाबदोश बिरादरी है और इस समाज के लोग खेल तमाशे दिखाकर पैसे कमाते हैं. लेकिन खेल-तमाशों का ये दौर धीरे-धीरे ख़त्म होने के कगार पर है. ऐसे में बिरादरी की हालात बेहद कमज़ोर है और चिंता इस बात की भी इनके पूरे बिरादरी में कोई भी इंटरमीडिएट तक पढ़ा-लिखा नहीं है.

जमील अहमद रसूलपुर में ‘बादी’ बिरादरी के सबसे ज़िम्मेदार व्यक्ति हैं. वो हमें बताते हैं कि चार दशक पहले मेरे वालिद यहां आए थे. अब हम 170 हैं, जिनमें से 80 वोट हैं और 90 बच्चे हैं और 30 लड़कियों की शादी कर चुके हैं. 

जमील अहमद के पास बताने के लिए बहुत कुछ है. वो कहते हैं, कोई शादी ऐसी नहीं हुई, जिसमें क़र्ज़ ना लिया हो और ब्याज सहित दुगना न दिया हो.

वो बताते हैं, 30 साल पहले तक हम लोग होली दिवाली सब मनाते थे. मगर अब तब्लीग़ के लोगों मिलने के बाद से वो सब छोड़ दिया है. लड़के अब जमात में भी चले जाते हैं.

वो कहते हैं कि, हम नट जाति के लोग हैं. हिन्दू नट समाज के लोगों को तो तमाम सुविधा मिलती हैं, मगर मुस्लिम नटों को कुछ भी नहीं, फिर भी हम खुश हैं.

वो आगे बताते हैं कि, कुछ साल पहले इटावा में मुस्लिम नटो को बहका लिया गया कि हिन्दू बनने पर उन्हें आरक्षण मिलेगा. 120 लोग हिन्दू बन गए, मगर बिरादरी ने तुरंत एक्शन लिया और सभी ने फिर कलमा पढ़ा. दरअसल लोग लालच देते हैं कि वापस हिन्दू बन जाओगे तो आरक्षण मिलेगा, मगर हमें आरक्षण को ठोकर में रखते हैं और इस्लाम को दिल में.

जमील बेहद सोचने के बाद भी ये नहीं बता पाते हैं कि समाज में कोई भी 10वीं तक पढ़ा-लिखा है.  वो बताते हैं, जो लड़का एक बार में बिना सहारा लिए 5 फुट और सहारा लेकर 15 फुट दिवार लांघ जाए, वो अच्छा और शादी योग्य समझा जाता रहा है. पढ़ाई-लिखाई का चलन समाज में नहीं है. हालांकि आजकल कुछ बच्चे पढ़ रहे हैं. ख़ासतौर पर लड़कियां पढ़ रही हैं.

बताते चलें कि, यहां 30 परिवारों में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की फ़रहाना है, जो छठी क्लास में पढ़ती है. यहां यह भी बता दें कि धीरे-धीरे इस समाज ने कलाबाज़ी कर खेल दिखाना अब बंद कर दिया है और वो दूसरे कामों में मज़दूरी करते हैं.

युवा शहजाद बताते हैं, हम लोग अपने हुनर को दिखाकर पैसा लेते थे. लोग हमारे खेल से खुश होकर हमें इनाम देते थे. यही तो धोनी भी करता है. वो भी अपनी कला के दम पर कमा रहा है, मगर हमें भिखारी कहते हैं और उन्हें हीरो. यह फ़र्क़ अमीर और गरीब का है.

जान मोहम्मद बताते हैं कि, लोगों की सबसे बड़ी समस्या क़ब्रिस्तान की है. अब इनके परिवार के लोग तीन अलग-अलग क़ब्रिस्तान में दफ़न हैं. कुछ दिन पहले एक बच्चे का इंतेक़ाल हो गया तो पंचायत हुई, इसे कहां दफ़नाए. जिस बिरादरी के क़ब्रिस्तान थे, वो लाठी लेकर घर आ गए.

जमील कहते हैं, जब से यह नई सरकार आई है मजदूरी लगनी भी कम हो गई है, जिससे पूछो काम ठप्प बता रहा है.

गौरतलब रहे कि, नट बिरादरी के लोग खेल तमाशे का काम करते हैं. अक्सर रस्सी पर चलती लड़की और उछल-कूद करते नौजवान इसी समाज के लोग होते हैं. कुछ जगह इन्हें कलाबाज़ भी कहते हैं और इनका काम कलाबाज़ी कहलाता है. इस समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बेहद कम है. यहां यह भी बता दें कि बादी एक खानाबदोश क़ौम है और जगह-जगह झोपड़ी डालकर रहती है, मगर रसूलपुर में ऐसा नहीं है. यहां प्रधान ने इन्हें ज़मीन आवंटित कर दी थी, जिसपर वो स्थाई तौर पर रहने लगे हैं.