मिन्डा कम्पनी में सफ़ाई-कर्मियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

सुनील कुमार, TwoCircles.net के लिए

गुरूग्राम (गुड़गांव) का पोस्टमार्टम हाउस ‘स्वच्छता दिवस’ के एक दिन पूर्व यानी 1 अक्टूबर, 2017 को लगभग शाम तीन बजे को सुनसान पड़ा था. दो-चार लोग बैठे थे. तभी अचानक सैकड़ों की संख्या में कुछ पैदल और कुछ गाड़ियों से भीड़ आई. उस भीड़ में नौजवान, बुजुर्ग, महिलाएं और छोटे बच्चे थे. इनमें से किसी के शरीर पर ‘स्वच्छ कपड़े’ या किसी के शरीर की चमड़ी ‘स्वच्छ यानी गोरी’ नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि हां ‘साहब’ लोग हैं. ना ही उस भीड़ में आए किसी बच्चे के लाल गाल और ‘साफ़-सुथरा’ दिख रहा था, जिसको झट से गोद में लेकर दुलारा जा सके या कान मरोड़ कर उसके साथ शरारत किया जा सके.


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वह इस तरह भी नहीं दिख रहे थे जिससे पूछा जाए कि आपके डैडी क्या करते हैं. आपके स्कूल का नाम क्या है. आप किस कक्षा में हो?

भीड़ में शामिल हर व्यक्ति को देखकर कहा जा सकता था कि यह भारत की मेहनतकश जनता है, जिनके बच्चों के लिए ना तो कोई लाड़-प्यार उमड़ता है, ना ही उनकी ज़िन्दगी में स्वच्छता के कोई मायने हैं.

इन बच्चों, बुर्जुगों, महिलाओं को दो जून की रोटी और तन ढ़कने के लिए कपड़े चाहिए तथा शिक्षा के मायने अधिक से अधिक अक्षर ज्ञान. अगर इनकी ज़िन्दगी में इतना मिल जाए तो यह अपने जीवन में रोशनी पाते हैं. उस रोशनी को पाने के लिए 15-20 फीट गहरी, सड़ांध देने वाली बदबू , घोर कूप अंधेरे में भी उतर कर काम करने के लिए तैयार रहते हैं.

भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर को अपने सम्बोधन में कहा कि ‘बच्चों के लिए भी स्वच्छता मिशन एक अभियान बन चुका है.’

इस भीड़ में आई महिलाएं रो रही थी और उनके बच्चे शून्यभाव में थे. इन बच्चों में कुछ की उम्र तो इतनी थी कि उनको पता भी नहीं कि यह भीड़ क्यों है, क्या हो रहा है और वह कहां हैं?

पूनम एक बेंच पर बैठी रो रही थी. उसके साथ तीन बच्चे थे, जिनकी उम्र 2 से 7 वर्ष के बीच की थी. इन बच्चों को यह भी नहीं पता था कि उसके पिता किस ‘स्वच्छता अभियान’ के तहत मरे, क्यों और कैसे मरे?

मां को रोते हुए देख उनको यह लग रहा था कि कोई बड़ा दुख उनके ऊपर आया हुआ है. इसी तरह आरती अपने दो बच्चों के साथ रो रही है. वह उसी दिन अपने गांव सिमरा चौराहा, ज़िला हरदोई से आई थी.

आरती बताती हैं कि पति रिंकू और दो बच्चों के साथ गुड़गांव के खांडसा ग्राम में राजकीय स्कूल के पास किराये के मकान में क़रीब 8 साल से रह रही थी. तीन माह पहले वह गांव चली गई, क्योंकि रिंकू जो भी कमाता था यहां किराये और खाने में खर्च हो जाता था. वह चाहती थी कि कुछ समय गांव में बच्चों को लेकर रहे, जिससे कि कुछ पैसों की बचत हो पाए. आरती की ज़िन्दगी में रोशनी आने के बजाए अन्धेरे कुंड ने उनकी रोशनी को छीन लिया.

पूनम के चार बच्चे हैं और वह लखीमपुर खीरी ज़िले के गौला गोकरनाथ गांव की रहने वाली हैं. वह अपने पति और बच्चों के साथ गांव खांडसा, सेक्टर 37 में किराये के मकान में रहती थी. उनके पति घर से क़रीब 200 मीटर की दूरी पर ‘जय ऑटो कम्पनी लिमिटेड’ में स्वीपर का काम 9 साल से करते आ रहे थे.

पूनम बताती हैं कि, दशहरे के दिन 30 सितम्बर, 2017 को 7 बजे सुबह पर ड्यूटी गये थे. हमें 11 बजे सूचना दी गई कि वो गड्ढे में गिर गए हैं, जिससे उन्हें चोट आई है. 12 बजे जब वह कम्पनी गेट पर पहुंची तो पता चला कि उनके पति की मौत हो चुकी है.

वह कम्पनी प्रबंधन से बातचीत करना चाहती थी, लेकिन काफ़ी प्रयास के बावजूद प्रबंधन ने बात नहीं की और ना ही गेट को खोला.

इस घटना में तीसरा मृतक राजकुमार है जिसकी उम्र 24 साल है. राजकुमार गौतमबुद्ध नगर ज़िले के सबोता गांव के निवासी थे. राजकुमार का परिवार भी गरीब है. पिता नानक चन्द खेती का काम करते हैं और राजकुमार व उसके दूसरे भाई मेहनत-मज़दूरी करते हैं.

राजकुमार का चचेरा भाई राम अवतार उसी कम्पनी में चौकीदारी का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि राजकुमार क़रीब छह साल से कम्पनी के मैंटीनेन्स विभाग में अस्थायी रूप से काम कर रहे थे. कम्पनी प्रबंधन ने राजकुमार को ज़बरदस्ती सीवर के अन्दर उतारा जिससे उसकी मौत हो गई. इस घटना में रिंकू, नन्हें और राजकुमार की असमय मृत्यु हो गई और विनेश व अरविन्द बेहोश हो गए.

जय ऑटो कम्पोनेन्ट कम्पनी में 17-18 सफ़ाई मजदूर हैं, जो वाल्मिकी समुदाय से हैं. बारह-बारह घंटा के दो शिफ्ट में काम करते हैं. इन सफ़ाई कर्मचारियों का मुख्य काम तीन मंज़िला कम्पनी और उसके टॉयलेट को स्वच्छ बनाए रखना होता है. इनके काम में सीवर सफ़ाई का काम नहीं आता है. सफ़ाई विभाग के सुपरवाईजर दीप कुमार ने बताया कि, कम्पनी के प्रबंधक ने हमें सीवर सफ़ाई के लिए कई दिन कहा, लेकिन हमने यह कहते हुए मना कर दिया था कि यह हमारा काम नहीं है. 30 दिसम्बर को छुट्टी का दिन था. हम गए नहीं थे, तो प्रबंधन ने इन लोगों पर दबाव बनाकर सीवर सफ़ाई के लिए उतार दिया.

उसके मुताबिक़, इस काम के लिए प्रबंधन ने किसी तरह की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की थी और ना ही सेफ्टी बेल्ट या कोई सुरक्षा का उपकरण दिया था. यहां तक कि कई सालों से काम कर रहे मज़दूरों को स्थायी तक नहीं किया गया है. मजदूरों से 8000-8500 रू. मासिक वेतन में काम कराया जाता है.

इसी कम्पनी में कुछ समय पहले ऋषिपाल सफ़ाई कर्मचारी थे. उन्होंने बताया कि वह कम्पनी में सात साल काम कर चुके हैं. 2017 में होली पर घर गए थे. घर से आने में दो-तीन दिन देर हो जाने पर कम्पनी ने उनको बिना किसी मुआवजे या नोटिस दिये कम्पनी से हटा दिया.

क्या है जय आटो कम्पोनेन्ट?

बताते चले कि जय आटो कम्पोनेन्ट कम्पनी मिन्डा ग्रुप की कम्पनी है जिसका कि हरियाणा, दिल्ली, नोएडा सहित देश के अन्य हिस्सों में कई ब्रांच है. इस ग्रुप के कम्पनियों के दर्जनों नाम है. यह कम्पनी ऑटो क्षेत्र के बड़ी कम्पनियों जैसे होन्डा, सुजुकी, यामाहा, टोयोटा, मारूति सुजुकी, बजाज, महेन्द्रा व हीरो जैसी कम्पनियों के लिए पार्ट्स बनाता है. चार पहिया और दो पहिये के कई पार्ट्स पर इस कम्पनी का एकाधिकार है. इस कम्पनी का सलाना टर्न ओवर 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 2700 करोड़ रूपये) है.

कम्पनी द्वारा मुआवजा की घोषणा

मृतक के परिवारों, नगरपालिका कर्मचारी संघ हरियाणा, सीटू, एटक, सीवर वर्कर्स यूनियन, फ़रीदाबाद, रोडवेज यूनियन के पदाधिकारियों के दबाव के बाद मालिक ने डीएलसी के सामने सादे कागज़ पर इक़रारनामा किया है. जिसके अन्तर्गत मृत मज़दूरों के परिवारजन को 17 लाख रू. मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को अस्थायी नौकरी देने की बात कही गई है. परन्तु इस समझौते पर न तो कम्पनी का और न ही लेबर अधिकारी का मोहर व लेटर पैड का प्रयोग किया गया है.

इस समझौते में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि कम्पनी यह मुआवजा कब तक पीड़ित परिवार को देगी. इस तरह से मालिक-प्रशासन के गठजोड़ ने मज़दूरों को एक बार फिर से छलने की कोशिश की है. दुर्घटना के दूसरे दिन कम्पनी बंद होने के बावजूद भी हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों से पुलिस बल को बुलाकर कम्पनी की सुरक्षा में लगाया गया था.

मृतक परिवार की हालत

मृतक परिवार के आठ बाई आठ के कमरे के लिए दो से ढाई हज़ार रूपये चुकाते हैं. इसके अलावा दस से बारह रूपये प्रति यूनिट बिजली का बिल चुकाते हैं. दस-बारह परिवारों पर एक टॉयलेट की व्यवस्था है. पानी के लिए हैंडपम्प पर निर्भर होना पड़ता है. जहां ये रहते हैं वहां मज़दूरों को बाध्य किया जाता है कि वह खाने-पीने की वस्तु उसी मकान मालिक की दुकान से खरीदे जिसमें वह रहते हैं. इसके लिए उनको बाज़ार भाव से अधिक पैसा देकर वस्तु खरीदना पड़ता है.

गौरतलब रहे कि कम्पनी के अन्दर सीवर में मौत की यह कोई पहली घटना नहीं है. सितम्बर माह में ही 18 तारीख़ को अहमदाबाद के एक कम्पनी में टैंक सफ़ाई के दौरान चार मज़दूर असमय काल के ग्रास में समा गए और 5 घायल हो गए. कुछ समय से लगातार देश के कई हिस्सों से सीवर में मज़दूरों की मरने की ख़बरें आ रही हैं. दो माह में दिल्ली और एनसीआर में 18 मौतें हो चुकी हैं और दर्जनों लोग घायल हुए हैं. सवाल है कि आम लोगों की जीवन में रोशनी लाने के लिए कब तक अंधरे गड्ढे में मौतें होती रहेंगी?

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