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जानिए! बटला हाउस ‘एनकाउंटर’ के बाद आज़मगढ़ के कितने बच्चे हैं जेल में और क्या है आरोप?

रिहाई मंच, आज़मगढ़ की ओर से जारी एक रिपोर्ट

19 सितम्बर 2008 को ओखला, नई दिल्ली में स्थित बटला हाउस की चौथी मंज़िल एल-18 में रह रहे आज़मगढ़ के छात्रों, जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ह्यूमन राईट्स की पढ़ाई कर रहे आतिफ़ अमीन और दाख़िले की तैयारी के लिए गए मोहम्मद साजिद को कथित मुठभेड़ में मार दिया गया. और कहा गया कि यह लोग देशी आतंकी माड्यूल ‘इंडियन मुजाहिदीन’ के सदस्य थे.

एनकाउंटर के बाद जब दोनों के फोटो सामने आया तो पता चला कि साजिद के सर पर कई गोलियां मारी गई थीं जो किसी मुठभेड़ में सम्भव नहीं हो सकती थीं. चूंकि अगस्त में मुफ्ती बशर की गिरफ्तारी के बाद गुजरात के डीजीपी पी.सी. पांडे ने कहा था कि, इंडियन मुजाहिदीन सिमी का ही दूसरा रूप है. इसके नामकरण की जो थ्योरी उन्होंने प्रस्तुत की थी, उसके मुताबिक़ सीमी के शुरू के एस और आख़िर के आई को निकाल कर आईएम अर्थात इंडियन मुजाहिदीन बनाया गया था. लेकिन सिमी की सदस्यता की आयु 18 से 30 साल थी. इस एतबार से साजिद और गिरफ्तार सलमान उसके सदस्य ही नहीं हो सकते थे.

ख़ास बात यह कि इंडियन मुजाहिदीन संगठन पर देश में कई बड़े आतंकी हमलों को अंजाम देने के आरोप के बावजूद उस पर एक साल तक प्रतिबंध नहीं लगाया गया था. मांग पर एक साल बाद प्रतिबंध तो सरकार ने लगा दिया, लेकिन विधि अनुसार प्रतिबंध के बाद कोई ट्रिब्यूनल गठित नहीं किया गया और न ही अपनी सफ़ाई पेश करने के लिए किसी को नोटिस ही जारी की गई. यह साबित करता है कि एजेंसियों को भी इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व पर भरोसा नहीं था और न ही उन्हें उसके कार्यालय या पदाधिकारियों के बारे में कोई जानकारी थी.

बटला हाउस कांड के बाद इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर गिरफ्तार आज़मगढ़ के कई नौजवानों की पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है. इस कांड को नौ साल पूरे हो चुके हैं. कई लड़कों पर एक से अधिक स्थानों पर मुक़दमें क़ायम किए गए हैं. लेकिन निचली अदालत में मुक़दमों की जो रफ्तार है, उससे नहीं लगता कि निकट भविष्य में इनका निस्तारण होने वाला है.

कुछ मुक़दमों में तो अभियोजन दो-दो साल तक गवाह ही नहीं पेश कर सका. कुछ अन्य में अभी कार्रवाई शुरू ही नहीं हुई है. कई मामले ऐसे भी हैं, जिनमें अभी तक आरोपियों की गिरफ्तारी तक नहीं दिखाई गई है, जबकि वह सालों से अदालती हिरासत में हैं.

अगर उच्चतम न्यायालय कर्नल पुरोहित की ज़मानत याचिका में जेल में गुज़ारे गए, उसके 8 साल 8 महीने को लम्बी अवधि मानता है और गुलज़ार वानी के 16 साल तक बिना किसी विश्वसनीय सबूत क़ैद रखने को “शर्म की बात” कहता है, तो ऐसे तमाम गुलज़ार वानी अभी भी पुलिस और अभियोजन की कारस्तानी का शिकार हैं, जेलों में सड़ रहे हैं.

19 सितम्बर 2008 को हुए कथित बटला हाउस मुठभेड़ में आतिफ़ अमीन और मो. साजिद (साजिद छोटा) की मौत हो गई. मो. सैफ़ को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारियों का सिलसिला चल पड़ा. अलग-अलग तारीखों में ज़ीशान अहमद, साकिब निसार, मो. आरिफ़, मो. हाकिम, मो. सरवर, सैफुर्रहमान अंसारी, मो. शहज़ाद, मो. सलमान, हबीब फ़लाही और असदुल्लाह अख्तर की गिरफ्तारी हुई.

वहीं मुम्बई से ज़ाकिर शेख़, आरिफ़ बदर और सादिक़ शेख़ को गिरफ्तार किया गया. मुफ्ती बशर को अगस्त 2008 में और हकीम तारिक़ क़ासमी को दिसम्बर 2007 में ही गिरफ्तार किया जा चुका था, जो क़ैद में हैं.

मो. सैफ़ निवासी संजरपुर, आज़मगढ़ को 19 सितम्बर 2008 को बटला हाउस के एल-18 से ही गिरफ्तार किया गया. सैफ़ गोविंद वल्लभ पंत कालेज, जौनपुर से इतिहास में एमए करने के बाद इंग्लिश स्पीकिंग और कमप्यूटर कोर्स करने के लिए अभी तीन महीना पहले ही दिल्ली गया था. इस बीच वह बीमार हो जाने के कारण अपने घर संजरपुर भी आया था.

सैफ को जयपुर, अहमदाबाद और दिल्ली में आरोपी बनाया गया. उस पर गोरखपुर गोलघर धमाकों में लिप्त होने का भी आरोप है, लेकिन अभी वहां उसे हाज़िर नहीं किया गया है. संकट मोचन मंदिर हमले के मामले में भी यूपी एटीएस ने उससे पूछताछ की थी, लेकिन उस केस में जांच एजेंसी के अगले क़दम के बारे में परिजनों को कोई जानकारी नहीं दी गई है. सैफ़ दिल्ली जाने से पहले किसी भी बड़े शहर में कभी नहीं रहा. उसने एमए की पढ़ाई भी घर रह कर की थी. वह क्रिकेट का बेहतरीन खिलाड़ी रहा है.

दिल्ली में तक़रीबन तीन महीने रहा. इसी दौरान देश के तीन राज्यों के बड़े शहरों में हुए सिलसिलेवार धमाकों में लिप्त होने का उस पर लगा आरोप लोगों के लिए हैरानी का सबब है.

बटला हाउस घटना के एक सप्ताह के भीतर ही मीडिया में यह ख़बर प्रकाशित व प्रसारित की गई कि सैफ़ और आतिफ़ के सरायमीर स्थित यूनियन बैंक के खातों से बहुत कम समय में तीन करोड़ रूपयों का लेनदेन किया गया है. जब खातों की पड़ताल की गई तो पता चला कि वह खाते छात्रवृत्ति के लिए खोले गए थे, दोनों खातों में कुल जमा राशि 2 हज़ार रूपये से भी कम थी और विगत सात सालों से उन खातों से कोई लेनदेन नहीं हुआ था. प्रमाण देने के बावजूद उक्त ख़बर का किसी मीडिया हाउस की तरफ़ से खण्डन तक नहीं किया गया.

यहां गौर करना होगा कि बटला हाउस कांड के बाद तमाम पुराने मामलों को इंडियन मुजाहिदीन से जोड़ कर थोक के भाव आज़मगढ़ के लड़कों को उनमें संलिप्त बताया गया. जबकि इन मामलों में किसी दूसरे संगठन पर आरोप लगाया गया था और अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार कर मुक़दमा भी चलाया जा रहा था. तो पुलिस की कहानियां खुद ही एक दूसरे को खारिज कर रही थी, पर इसका खामियाजा मो. सैफ़ जैसों को हुआ. उन पर विभिन्न राज्यों में मुक़दमें पर मुक़दमें लादे गए. संकटमोचन, वाराणसी और गोरखपुर मामले में भी उसे आरोपी बनाया गया.

ज़ीशान अहमद निवासी बाज़ बहादुर, आज़मगढ़ आईआईपीएम नई दिल्ली से एमबीए कर रहा था और साथ-साथ एक प्राइवेट कंपनी मोनार्क इन्टरनेशनल में बतौर असिस्टेंट मैनेजर काम भी करता था. बटला हाउस कांड के दिन वह परीक्षा देने गया हुआ था.

परीक्षा के बाद उसे पता चला कि मीडिया में उसका नाम इस घटना से जोड़कर लिया जा रहा है तो उसने घर वालों को फोन किया. परिवार की राय पर वह एक स्थानीय चैनल के कार्यालय चला गया. चैनल वालों ने दिल्ली पुलिस को बुलाकर उसे सुपुर्द कर दिया.

ज़ीशान को दिल्ली और अहमदाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया है. आतंकवाद जैसे किसी अपराध में लिप्त कोई भी व्यक्ति ऐसे नाज़ुक समय पर कम से कम फोन करने की हिमाकत तो कभी नहीं कर सकता. यह एक तरह से मीडिया के सामने आत्मसमर्पण करना था. लेकिन चैनल वालों ने भी इसे आत्मसमर्पण न दिखा कर पुलिस की मंशा के मुताबिक़ गिरफ्तारी ही बताया.

साकिब निसार निवासी शाहपुर, आज़मगढ़ का परिवार अस्थाई रूप से दिल्ली में रहता है. बटला हाउस घटना के समय वह मनीपाल यूनिवर्सिटी से डिस्टैंट एजुकेशन में एमबीए कर रहा था और साथ में टैलेंट प्रो. इंडिया एचआर में रिक्रूटमेंट असिस्टेंट के तौर पर कार्यरत था. बटला हाउस कांड के बाद दिल्ली स्पेशल सेल ने उससे अन्य आरोपियों के बारे में पूछताछ की थी. उसने उन लड़कों को पढ़ने-लिखने वाला व शरीफ़ बताया था. चिढ़कर पुलिस अधिकारियों ने उसे ही आरोपी बना दिया.

साकिब को दिल्ली और अहमदाबाद धमाकों की साज़िश का आरोपी बनाया. सनद रहे कि 26 जूलाई 2008 को अहमदाबाद धमाकों के दिन वह दिल्ली में परीक्षा दे रहा था.

आरिफ़ नसीम निवासी संजरपुर, आज़मगढ़ लखनऊ में रहकर सीपीएमटी की तैयारी कर रहा था. उसे मुजाहिदीन का सदस्य बताते हुए उत्तर प्रदेश एटीएस ने 29 सितम्बर 2008 को चारबाग़, लखनऊ से गिरफ्तार दिखाया था. जबकि दरअसल उसे 24 सितम्बर को डॉलीगंज, लखनऊ से उठाया गया था.

कहा गया कि गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने अपना सिमकार्ड तोड़कर मोबाइल फेंक दिया था. परन्तु आश्चर्यजनक रूप से उसी एटीएस का कहना था कि उसकी जेब से कुछ कागज़ात और नक्शे बरामद हुए थे जिनसे पता चलता है कि यूपी की कचहरियों में होने वाले सिलसिलेवार धमाकों में हूजी के साथ इंडियन मुजाहिदीन की सहभागिता थी.

इसी कड़ी में आरिफ़ के रिश्तेदार शफ़ीकु़र्रहमान का कहना है कि, ‘यह बात सामान्य समझ से परे है कि जो व्यक्ति गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना मोबाइल फेंक चुका हो, वह अपनी जेब में ही अपने गुनाहों का दस्तावेज़ी सबूत लेकर क्यों घूमेगा?’

आरिफ़ नसीम को गिरफ्तारी के एक महीना बाद गुजरात एटीएस को सौंप दिया गया. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक वह अहमदाबाद के साबरमती जेल में बंद है. लखनऊ कचहरी धमाके में उसे आरोपी बनाया गया था, लेकिन अहमदाबाद में होने की वजह से नौ साल बाद भी इस केस में उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई है.

बटला हाउस के बाद आज़मगढ़ के नौजवनों को पुराने मामलों में फंसाए जाने की साज़िश का शिकार आरिफ़ भी हुआ. उसका नाम यूपी कचहरियों में हुए विस्फोट से जोड़ा गया, जिसका आरोप हुजी पर था और जिसमें गिरफ्तारियां होकर चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी थी. वहीं पुलिस की थ्योरी उसे इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य बताती है.

सलमान निवासी संजरपुर, आज़मगढ़ को 13 मार्च 2010 को सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया गया था. उस पर गोरखपुर गोलघर धमाकों का भी आरोप है. उस धमाके के समय उसकी उम्र 15 साल कुछ महीना ही थी. उस पर दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद के धमाकों में लिप्त होने का आरोप था. दिल्ली में आरोप तय करते समय अदालत ने उसे आरोपमुक्त कर दिया. उसके बाद उसे जयपुर ले जाया गया.

क़रीब चार साल बाद उसे गोरखपुर धमाके के आरोप में अदालत में पेश किया गया. उसी दिन उसे जयपुर वापस भेज दिया गया. तीन साल गुज़र गए और उसके परिवार वालों को अब तक नहीं मालूम कि गोरखपुर मामले में उसके ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल हुई है या नहीं.

अहमदाबाद में सभी धमाकों को लेकर एक साथ मुक़दमा चल रहा है. लेकिन सलमान के भाई अरमान के मुताबिक़ उसे अभी तक वहां पेश नहीं किया गया है. परिजनों का कहना है कि इसके लिए प्रयास किया गया, लेकिन गुजरात एटीएस उसके मामले को लटका कर रखना चाहती है.

उनकी चिंता है कि हिरासत के दिनों की गिनती कहां से शुरु होगी. हाई स्कूल की मार्कशीट के मुताबिक़ सलमान का जन्म 3 अक्तूबर 1992 को हुआ था. इस एतबार से बटला हाउस मुठभेड़ के समय उसकी आयु 16 साल 15 दिन थी और गोरखपुर गोल घर धमाकों के समय 15 साल 7 महीना 19 दिन.

ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है. लेकिन जयपुर सेशन कोर्ट ने उसे अनदेखा कर दिया. तब से मामला जयपुर हाईकोर्ट में है. किसी नाबालिग़ के लिए अधिकतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है तो भी जयपुर हाईकोर्ट में उसकी आयु का मामला ही पांच साल से लम्बित है.

बटला हाउस के बाद आज़मगढ़ के नौजवानों को पुराने मामलों में फंसाए जाने की साज़िश का शिकार सलमान भी हुआ. उसका नाम गोरखपुर मामले से जोड़ा गया.

मो. सरवर निवासी चांद पट्टी, आज़मगढ़ को 19 जनवरी को उज्जैन, मध्यप्रदेश से रात 9 बजे उठाया गया और दो दिन बाद 21 जनवरी 2009 को टेढ़ी पुलिया, लखनऊ, उत्तर प्रदेश से गिरफ्तारी दिखाई गई.

जब सरवर को उज्जैन से उठाया गया तो उसके साथियों ने विरोध किया था, लेकिन उठाने वालों ने खुद को पुलिस का बताया था. जिस गाड़ी से उसे ले जाया गया उस पर दिल्ली का नम्बर अंकित था. चूंकि वह लोग सादे कपड़ों में थे, इसलिए सरवर के साथियों ने अपहरण की आशंका के तहत थाना नीलगंगा, उज्जैन में 20 जनवरी 2009 को प्राथमिकी भी दर्ज करवाई थी.

सरवर ने इन्टीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ से बीटेक किया था और गिरफ्तारी के समय वह आईसीएलए लिमिटेड, हैदराबाद की इंदौर शाखा में बतौर इंजीनियर कार्यरत था. सरवर को 13 मई 2008 को हुए जयपुर सीरियल ब्लास्ट का आरोपी बनाया गया था. सत्र परीक्षण संख्या 4/2010 के तहत मुक़दमे की कार्रवाई चल रही है.

मुफ्ती बशर निवासी बीनापारा, आज़मगढ़ को बटला हाउस कांड और दिल्ली धमाकों से पहले ही 14 अगस्त 2008 को उसके गांव बीनापारा, आज़मगढ़ से उठाया गया था. इसके अगले दिन तमाम अख़बारों में उसके उठाए जाने की ख़बरें भी प्रकाशित हुईं, लेकिन उत्तर प्रदेश एटीएस ने उसे 16 अगस्त को लखनऊ से गुजरात एटीएस की साझेदारी में हुए ज्वाइंट आपरेशन में गिरफ्तार किए जाने का दावा किया था.

बशर को 14 अगस्त को उसके गांव से अगवा किए जाने सम्बंधी सूचना उसी दिन उसके भाई ने ईमेल द्वारा राष्ट्रपति और मुख्य न्यायधीश, सर्वोच्च न्यायालय समेत वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी थी.

गांव के लोगों का कहना है बशर क़रीब एक महीने से अधिक समय से गांव में ही था और हर दिन सुबह सवेरे पक्षाघात के शिकार अपने पिता को टहलाने के लिए ले जाता था. बशर को अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, बेलगाम में आरोपी बनाया गया है.

परिजन बताते हैं कि जयपुर के एक मामले में उसकी संलिप्तता बताई जाती है पर आज तक उसे वहां की अदालत में पेश नहीं किया गया.

सैफुर्रहमान अंसारी निवासी बदरका, आज़मगढ़ ने शिबली नेशनल कालेज से बीए किया है. 12-13 अप्रैल 2009 की रात को जबलपुर रेलवे स्टेशन से उसे हिरासत में लिया गया, जब वह ट्रेन से वाराणसी रेलवे स्टेशन से सवार होकर अपनी बहन को छोड़ने मुम्बई जा रहा था.

भाई-बहन दोनों को अलग-अलग वाहनों में जबलपुर से भोपाल ले जाया गया, जहां 13 अप्रैल को उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार दिखाया गया.

सैफुर्रहमान पर जयपुर और अहमदाबाद धमाकों में लिप्त होने का आरोप है. यूपी के लखनऊ, वाराणसी और फैज़ाबाद कचहरियों में होने वाले सिलसिलेवार धमाकों में भी यूपी एटीएस ने उस पर आरोप लगाए हैं. इसका उल्लेख निमेष आयोग के समक्ष प्रस्तुत लखनऊ कचहरी धमाके के विवेचक राजेश कुमार श्रीवास्तव के शपथ पत्र में किया गया है, जो आयोग की रिपोर्ट में पेज संख्या 166 पर अंकित है. लेकिन अब तक इस मामले में ना कोई औपचारिक कार्रवाई की गई है और ना ही उसे उत्तर प्रदेश लाया गया है.

मोहम्मद हाकिम निवासी रहमतनगर, आज़मगढ़ को 2 जनवरी 2009 को लखनऊ से गिरफ्तार किया गया. उस पर 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में हुए सिलसिलेवार धमाकों में लिप्त होने का आरोप है. गिरफ्तारी के समय वह इन्टीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ से बी.टेक कर रहा था. पढ़ाई के आख़िरी कुछ महीने ही बचे थे.

उसके पिता इंजीनियर अब्दुल करीम का कहना है कि, हाकिम पर आरोप था कि उसने किसी दुकान से छर्रे खरीदे थे. वही दुकानदार हाकिम के खिलाफ मात्र एक गवाह था, जिसने अदालत में यह क़बूल किया कि उसने हाकिम को पहले कभी नहीं देखा. इसके बावजूद मुक़दमे की लम्बी प्रक्रिया का सामना करने के लिए वह बाध्य है.

शहज़ाद अहमद उर्फ पप्पू निवासी खालिसपुर, आज़मगढ़ पर दिल्ली सीरियल ब्लास्ट और बटला हाउस कांड के समय पुलिस पार्टी पर फ़ायर करते हुए फ़रार हो जाने का आरोप है. उसे 1 फरवरी 2010 को उसके गांव खालिसपुर से गिरफ्तार किया गया था. बटला हाउस कांड में उसे सेशन कोर्ट से उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई है. मामला फिलहाल दिल्ली हाईकोर्ट में लम्बित है.

असदुल्लाह अख्तर निवासी गुलामी का पुरा, आज़मगढ़ हड्डी के मशहूर डाक्टर जावेद अख्तर का बेटा है. वह इन्टीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ से बीटेक कर रहा था. उस पर दिल्ली, अहमदाबाद धमाकों के अलावा हैदराबाद दिलसुखनगर धमाका 21 फरवरी 2013, मुम्बई सीरियल ब्लास्ट 13 जूलाई 2011, जामा मस्जिद हमला 19 सितम्बर 2010 में लिप्त होने का आरोप है. हैदराबाद धमाके में उसे सेशन कोर्ट ने मृत्यु दंड दिया है. अब यह मामला हैदराबाद हाई कोर्ट में है.

हबीब फ़लाही निवासी बारी खास, आज़मगढ़ को ज़िला अम्बेडकर नगर से 27 दिसम्बर 2011 को गिरफ्तार किया गया था. वहां वह एक मदरसे में पढ़ाता था. उस पर अहमदाबाद धमाकों में लिप्त होने और केरल में सिमी द्वारा आयोजित ट्रेनिंग कैम्प में भाग लेने का आरोप है.

आरिफ़ बदर निवासी इसरौली, आज़मगढ़ तीन बच्चों (दो बेटी, एक बेटा) का पिता है. इलेक्ट्रीशियन का काम करके अपना परिवार चलाने वाले आरिफ़ को बटला हाउस कांड के बाद मुम्बई से 24 सितम्बर 2008 को एटीएस मुम्बई द्वारा उठाया गया और 25 सितम्बर को गिरफ्तारी दिखाई गई.

आरिफ़ पर मुम्बई लोकल ट्रेन ब्लास्ट, अहमदाबाद और दिल्ली धमाकों का आरोप है. बटला हाउस के बाद आज़मगढ़ के नौजवानों को पुराने मामलों में फंसाए जाने की साज़िश का शिकार आरिफ़ भी हुआ. उसको भी विभिन्न पुराने मामलों में आरोपी बताया गया.

सादिक़ शेख़ निवासी असाढ़ा पारा, आज़मगढ़ सपरिवार चीता कैंप मुम्बई में रहता रहा था. पेशे से हार्डवेयर इंजीनियर सादिक़ को वहीं से 24 सितम्बर 2008 को एटीएस मुम्बई द्वारा उठाया गया, लेकिन 25 सितम्बर को गिरफ्तारी दिखाई गई. उस पर मुम्बई लोकल ट्रेन ब्लास्ट, अहमदाबाद सीरियल धमाकों के अलावा कोलकाता स्थित अमेरिकन सेंटर पर हमले का आरोप है.

बटला हाउस के बाद आज़मगढ़ के नौजवनों को पुराने मामलों में फंसाए जाने वाली फेहरिस्त में सादिक़ का भी नाम शामिल हो गया. उसे तो कोलकाता स्थित अमेरिकन सेंटर पर हमले जैसे पुराने मामले में संलिप्त बता दिया गया.

ज़ाकिर शेख ग्राम कंवरा गहनी, आज़मगढ़ का रहने वाला है. उसने 2002 में एमए किया और भिवंडी, महाराष्ट्र में रह कर स्क्रैप का व्यापार करता था. 24 सितम्बर 2008 को उसे भिवंडी से ही एटीएस मुम्बई द्वारा उठाया गया और अगले दिन गिरफ्तार दिखाया गया. उसे मुम्बई लोकल ट्रेन ब्लास्ट और अहमदाबाद धमाकों का आरोपी बनाया गया है.

ज़ाकिर को भी आरिफ़ बदर और सादिक़ शेख़ की तरह ही बटला हाउस कांड के बाद गिरफ्तार तो किया गया पर मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट जैसे पुराने मामले में भी आरोपी बना दिया गया.