योगी खुद अपने ही मामले का जज कैसे हो सकते हैं?

TwoCircles.net News Desk

लखनऊ : बटला हाउस फ़र्ज़ी मुठभेड़ की 9वीं बरसी पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच ने ‘लोकतंत्र पर बढ़ते हमले’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया. इस मौक़े पर बटला हाउस के बाद आज़मगढ़ की स्थिति पर ‘तारीखों में गुज़रे नौ साल’ रिपोर्ट जारी की गई.


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अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता असद हयात ने कहा कि, बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर केस में दिल्ली राज्य और केंद्र की सरकारें सच को सामने लाना नहीं चाहती थीं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पत्र लिखकर दिल्ली सरकार को कहा कि हर इनकाउंटर केस की मजिस्ट्रेट जांच होना आवश्यक होता है, परंतु दिल्ली के लेफ्टीनेंट गवर्नर ने इस आधार पर जांच कराने से इनकार कर दिया कि मृतक आतिफ़ और साजिद दोनों इंडियन मुजाहिदीन से सम्बंध रखने वाले आतंकी थे और जांच कराने से पुलिस का मनोबल गिर जाएगा.

आगे उन्होंने कहा कि, जिस तरह से एनकांउटर पर सवाल उठे, यह सरकार का दायित्व था कि वह इसकी निष्पक्ष जांच कराए परंतु सरकार दोषी पुलिसकर्मियों के पक्ष में आ खड़ी हुई. दिल्ली राज्य और केन्द्र सरकारों का यह अमल लोकतंत्र पर हमला था.

असद हयात ने कहा कि, सर्वोच्च्च न्यायालय ने पीड़ितों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करते हुए मणिपुर के 1528 फ़र्ज़ी एनकांउटर मामले में जो निर्णय दिया है, वह मील का पत्थर है, जिसमें कोर्ट ने कहा कि पुलिस अगर आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करती है तो उसे दोषी माना जाएगा. बटला इनकाउंटर केस में पुलिस ने प्रतिशोध और सीमा से अधिक बल प्रयोग किया जो आतिफ़ और साजिद की पोस्टमाॅर्टम रिर्पोटों से साबित है.

आगे उन्होंने कहा कि, लोकतंत्र पर सरकारी हमले का दूसरा उदाहरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुक़दमा है जिन पर धारा —153 ए, 295ए आईपीसी के अंतर्गत आरोप है. इन धाराओं के अंतर्गत मुक़दमा चलाने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य सरकार से इसकी अनुमति प्राप्त की जाए. इस मामले में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री श्री शिव प्रताप शुक्ला, गोरखपुर की पूर्व मेयर अंजू चौधरी, गोरखपुर सदर विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और पूर्व एमएलसी डॉ. वाईडी सिंह अभियुक्त हैं. सीबीसीआईडी ने इन सभी के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी थी, परंतु योगी सरकार ने इनकार कर दिया और मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा दी. प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति अपने ही मामले का जज हो सकता है? इस मामले में एक आरोपी ने मुख्यमंत्री बन जाने के बाद अपने पद का दुरूपयोग करते  हुए, अपने विरूद्ध प्रारम्भ होने वाले अभियोजन को समाप्त करवा दिया जिसकी न्यायिक समीक्षा इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ कर रही है.

सेवानिवृत डिप्टी एसपी शंकर दत्त शुक्ला ने कहा कि, पुलिस के अंदर काफ़ी सुधार की ज़रूरत है. पुलिस में संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान की कमी के कारण पुलिस का आपराधिकरण और राजनीतिकरण काफ़ी बढ़ा है, जिससे लोकतंत्र ही ख़तरे में पड़ गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता परवेज़ परवाज़ ने कहा कि, गौरी लंकेश की हत्या उन आवाज़ों को दबाने की कोशिश है, जो लोकतंत्र के गुंडातंत्र में तब्दील किए जाने का विरोध कर रहे हैं. आज दुर्भाग्य से ऐसी शक्तियां सत्ता पर क़ाबिज़ हैं, जो लोकतंत्र को ही ख़त्म करने पर तुली हैं.    

इस दौरान ‘तारीखों में गुजरे 9 साल’ रिपोर्ट भी जारी हुई, जिसमें विभिन्न राज्यों में इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर गिरफ्तार आज़मगढ़ के लड़कों के मुक़दमों की प्रगति, जेलों में उत्पीड़न और इन सबसे उपजी परिस्थितियों के कारण परिजनों की सदमों से मौत से लेकर व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक पीड़ाओं को समझने का प्रयास किया गया है.

रिपोर्ट बताती है कि कैसे क़रीब 9 साल बीत जाने के बाद भी इन मुक़दमों में आधे से कम गवाह ही पेश किए गए हैं. मसलन, अहमदाबाद में जहां कुल गवाहों की संख्या 3500 है, वहां सिर्फ़ 950 गवाहों की ही गवाही अब तक हो पाई है.

अध्यक्षीय सम्बोधन में रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मो. शुऐब ने कहा कि, आज बटला हाउस की नौवीं बरसी पर जब हम यह आयोजन कर रहे हैं, तब 9 साल पहले पकड़े गए कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत मिल चुकी है. वहीं इतने सालों बाद यह भी तय नहीं हो पाया है कि योगी आदित्यनाथ पर मुक़दमा चलेगा कि नहीं. और आज वह यूपी के सीएम बन चुके हैं.

वो आगे कहते हैं, आतंक के साम्राज्यवादी कुचक्र में मुसलमान आज़ादी के बाद साम्प्रदायिक दंगों में मारा गया. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेलों में ठूंस दिया गया. वहीं मौजूदा दौर में आज राह चलते हुए उसे डर रहता है कि वह माॅब लिंचिंग का शिकार न हो जाए. जो मल्टीनेशनल लाॅबी यह खेल खेल रही है, उसी का शिकार देश का दलित, आदिवासी ही नहीं बल्कि इन सवालों को उठाने वाले गौरी लंकेश जैसे पत्रकार भी हो रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह विचारों का टकराव है इसीलिए रूढ़िवाद के ख़िलाफ़ लड़ने वाले किसी दाभोलकर, किसी कलबुर्गी व पांसरे की हत्या की जा रही है. ऐसे दौर इन शहादतों पर हमें शोक व्यक्त करने के बजाए लोकतंत्र के लिए संकल्पित होना चाहिए.

कार्यक्रम का संचालन रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने किया.

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