बिहार में तौसीफ़ की गिरफ़्तारी और मीडिया का ‘आतंक’

फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net

गया (बिहार) : अदालत से भले ही ये अभी तय नहीं हुआ है कि गया ज़िले के डोभी क्षेत्र से गिरफ़्तार तौसीफ़ खान आतंकवादी है या नहीं, या फिर इसका कोई जुर्म है, लेकिन मीडिया ने इसे आतंकवादी ज़रूर क़रार दे दिया है.


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दैनिक जागरण ने तो तौसीफ़ खान की गिरफ़्तारी के पहली ही ख़बर में यह लिख दिया है कि, ‘ज़िले के राजेन्द्र आश्रम मोहल्ले से बुधवार को गिरफ़्तार शख़्स का आतंकी संबंध है, ये साबित हो गया है.’ अब ऊपर वाला ही बेहतर जानता है कि इस ख़बर को लिखने वाले पत्रकार नीरज कुमार के पास ऐसे क्या सुबूत हैं, जिससे उन्होंने साबित कर दिया है. क्योंकि इससे पूछताछ करने वाली सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि, अभी पूछताछ चल रही है.

सुरक्षा एजेंसिया भले ही किसी नतीजे पर न पहुंची हों, लेकिन दैनिक जागरण के साथ-साथ यहां के सारे अख़बारों मे लिखा है कि, तौसीफ़ का संबंध अल-क़ायदा से है. उसे अल-क़ायदा फंड कर रही थी.

ख़बरों के इस ‘आतंक’ में कोई भी अख़बार पीछे नहीं हैं. सभी एक दूसरे को टक्कर देते नज़र आ रहे हैं. यही कारण है कि सभी अख़बारों में एक-दो ख़बरों की बात कौन कहे, पूरे-पूरे दो-तीन पृष्ठ इस ख़बर को केन्द्रित करते हुए आ रहे हैं.

प्रभात-ख़बर ने एक पूरे पेज़ की ‘आतंकी नेटवर्क’ की सीरीज़ की तो वहीं ‘तरक़्क़ी को चाहिए नया नज़रिया’ की दावा करने वाले दैनिक हिन्दुस्तान ने कई पृष्ठों की ख़बर के साथ-साथ एक पूरे पेज़ की ‘आतंक की साज़िश’ लिखकर एक नया नज़रिया पेश किया. वहीं दैनिक जागरण अपने ख़बरों के ज़रिए लोगों में दहशत फैलाने का काम किया.

दैनिक हिंदुस्तान के ख़बर के मुताबिक़, ‘तौसीफ़ अहमदाबाद में 2008 में हुए बम ब्लास्ट के बाद से गया में छुपकर रह रहा था. आतंकी तौसीफ़ निजी स्कूल में गणित-विज्ञान का टीचर बताया जा रहा है. मुमताज़ पब्लिक हाई स्कूल में उसे शिक्षक की नौकरी मिली. तीन साल तक वहां शिक्षक रहा. इसके बाद ट्यूशन पढ़ाने लगा. तौसीफ़ ने अपना नाम बदल कर अतीक रख लिया था. उसके साथ शहनशां खान उर्फ सन्ने खान और निजी स्कूल के संचालक गुलाम सरवर खान को भी गिरफ्तार किया गया है.’

गौर करने वाली बात ये है कि इन तमाम अख़बारों ने अपनी ख़बर में तौसीफ़ के बारे में या उसके घर वालों के बारे में पता लगाने या लिखना ज़रूरी नहीं समझा. यहां तक स्थानीय लोगों के बातों पर भी कोई तवज्जो नहीं दिया गया.

हालांकि हिन्दुस्तान ने अपनी ख़बर में तौसीफ़ की पढाई के बारे में ज़रूर प्रकाशित किया. जिसमें लिखा कि तौसीफ़ खान उर्फ़ अतीक़ ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्यूनिकेशन से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. महाराष्ट्र के नंदूरबाग स्थित डीएन पाटिल इंजीनियरिंग कॉलेज से उसने वर्ष 2001-05 के बीच बीटेक किया.

सोचने की बात यह है कि अब उर्दू मीडिया भी हिन्दी मीडिया के राह पर चल निकले है. वो भी अपने ‘सहाफती मज़हब’ का पालन नहीं करते. अपनी ओर से कोई जांच पड़ताल नहीं करते. घर वालों से कोई बात नहीं करते. बस पुलिस के बयान को ही अपनी ख़बरों का आधार बनाते हैं. शायद ये भूल जाते हैं कि अभी पुलिस ने सिर्फ़ शक के आधार पर गिरफ़्तार किया. पुलिस का आरोप अभी अदालत में साबित होना है.   

ख़बरों के इस ‘आतंक’ को देखने के बाद ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि मीडिया को हथियार बनाकर देश में नफ़रत का माहौल पैदा करने की पूरी कोशिश की जा रही है.

मीडिया खुद अपना अस्तित्व खोता नज़र आ रहा है. पहले मीडिया पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों का भोंपू माना जाता है, लेकिन अब इससे भी आगे बढ़कर ऐसी गिरफ़्तारियों में नई-नई ख़बरे गढ़ता है, जिसे देखकर ये सुरक्षा एजेंसियां भी अपना सर पीट लें. ज़्यादातर देखा गया कि मीडिया की इन्हीं ख़बरों कहानियों को आधार बनाकर एजेंसियां पकड़े गए युवकों पर आरोप तय करती हैं, लेकिन अदालत में इनकी पूरी कहानी झूठी निकलती है. वो सब बाइज्ज़त बरी हो जाते हैं, जिन्हें आतंकवाद के झूठे आरोपों में 10 या 12 वर्ष पहले गिरफ्तार किया गया था.

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