आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
लखनऊ : कभी परवान चढ़ने वाली कैलीग्राफ़ी की कला अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व बचाने को लड़ रही हैं. कुछ कंप्यूटर के आने से और कुछ हुनरमंद लोगों के कम होने से कैलीग्राफ़ी की कला पर असर पड़ा है.
कैलीग्राफ़ी की कला का सम्बन्ध इस्लाम से है. क़ुरान की आयतों को ख़ूबसूरती से लिखने की ये कला अरब से भारत आई और मुग़लकाल में खूब फैली. कुछ संरक्षण नवाबी दौर में भी मिला. फिलहाल अब गिने-चुने हुनरमंद बचे हैं, जिन्हें खत्तात कहते हैं, जो कैलीग्राफ़ी को ज़िन्दा रखे हैं. लेकिन इस कला की क़द्र न होने से ये अब धीरे-धीरे अपनी इस कला से दूर जाने लगे हैं.
ऐसे में पेशे से पत्रकार इरीना अकबर ने इस कला को फिर से नई ज़िन्दगी देने की कोशिश में लगातार मशरूफ़ हैं. कुछ इसकी डिजाईन और कुछ इस कला से लगाव ने इरीना को इस ओर मोड़ दिया. वजह, कुछ नया करने की चाहत, दिल को सुकून और इस कला को ज़िन्दा रखना और इरीना ने इस काम में अपने को लगा दिया.
आमतौर पर बहुत लोग कैलीग्राफ़ी तकनीक में कलाकृति पसंद करते हैं, वो इसे लेना चाहते हैं, लेकिन उनको मन मुताबिक़ कहीं नहीं मिलती. किसी विशेष पंक्ति को वो लिखवाना चाहते हैं, लेकिन ये संभव नहीं था.
उन्होंने लखनऊ में कैलीग्राफ़ी को समर्पित अपना ‘बारादरी ए हॉउस ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट ‘ की स्थापना करी. मक़सद सिर्फ़ कैलीग्राफ़ी को नई पहचान देना था. सच कहे तो इरीना ने कैलीग्राफ़ी को अगले मुक़ाम तक पहुंचाने की मुहिम शुरू करी है.
इरीना ने पिछले मई में लखनऊ के ललित कला अकादमी में कैलीग्राफ़ी की उत्कृष्ट रचनाओं की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था, जिसे काफ़ी सराहना मिली. पहली बार ऐसा हुआ कि कैलीग्राफ़ी पर आधारित कोई प्रदर्शनी ललित कला अकादमी में लगाई गई थी.
बताते चलें कि इस प्रदर्शनी में अवध की तमाम बड़ी हस्तियों ने शिरकत की. यहां बेहद ख़ूबसूरत हाथों से काग़ज़ पर कलमा, आयत और दुआ लिखी हुई थी. इरीना बताती है कि गैर-मुस्लिम समुदाय ने भी उन्हें बहुत सराहा है. लोगों को आज भी ताजमहल में कैलीग्राफ़ी में कुरान की आयते लिखी हुई ज़्यादा पसंद है. ये सबको आकर्षित करती हैं.
कैलीग्राफ़ी वैसे तो सफ़ेद कागज़ पर काली स्याही से अंकित की जाती है, लेकिन इरीना इसे रंगीन करने में जी-जान से जुटी हुई हैं. उन्होंने इस हुनर को काला सफ़ेद से लाल गुलाबी कर दिया है. अब इस तकनीक का दुनियाभर में प्रचार हो रहा है. ऑनलाइन वेबसाइट्स जैसे अमेजॉन पर उनकी ये कलाकृति उपलब्ध है.
इरीना बताती हैं, उन्हें दुनिया भर से अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है और वो कैनवास पर बनाई गई अपनी इस्लामिक कैलीग्राफ़ी से अच्छा प्रचार और पैसा पा रही हैं.
किसी भी कलाकृति को बनवाने से पहले इरीना पता करती हैं कि लोगों को क्या पसंद है. यह जानने के लिए इरीना अपने समूह से सर्वे कराती रहती हैं. जैसे उन्होंने क़ुरान-ए-करीम की पसंदीदा आयत के बारे में पूछ लिया इत्यादि.
इरीना लंबे समय तक पत्रकारिता से जुड़ी रही हैं. लेकिन अब ये कैलीग्राफ़ी की दुनिया में उनकी पहचान बन रही है. वो बताती हैं कि, लोग कैलीग्राफ़ी के ज़रिए लिखी हुई इन आयत को अपने घर में लगाते हैं. सबसे ज्यादा ‘कलमा’ की मांग की जाती है.
इरीना अपने इस काम से बहुत खुश हैं. वो कहती हैं, पत्रकारिता में बहुत ज्यादा दबाव होता था और सुकून नाम की कोई चीज़ दूर-दूर तक नहीं थी. वैसे भी पत्रकारिता से बोर हो गई थी, कुछ नया करना चाहती थी. कैलीग्राफ़ी ने मुझे वो नयापन दिया, इससे रूह को सुकून मिलता है.