Home Indian Muslim दारुल उलूम की शान मौलाना सालिम को किया गया सुपुर्द-ए-खाक़

दारुल उलूम की शान मौलाना सालिम को किया गया सुपुर्द-ए-खाक़

TwoCircles.net Staff Reporter

देवबंद : दुनिया भर में अपनी इल्म की रोशनी से दारुल उलूम को बुलंदी पर ले जाने वाले ‘दारूल उलूम देवबंद’ (वक़्फ़) के सदर मोहतमिम और ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ख़तीब-उल-इस्लाम मौलाना सालिम क़ासमी की कल यहां इंतेक़ाल की ख़बर सुनते ही देवबंद के सभी बाज़ार खुद-ब-खुद बंद हो गए और हज़ारों की संख्या में लोग उनके घर की ओर चल पड़े.

मौलाना सालिम 94 साल के थे और पिछले कुछ महीनों से बीमार थे. घर पर रहकर उनका इलाज चल रहा था. उनके मौत की ख़बर सुनते ही इस्लामिक दुनिया में रंजो-व-गम छा गया.

मशहूर शायर नवाज़ देवबन्दी ने मौलाना के इंतेक़ाल के बाद कहा कि, देवबंदी सिलसिले का आख़िरी आफ़ताब भी अब रुख़्सत हो गया. उनके जैसे अब कोई दूसरा नहीं हो सकता. वो इस्लामिक दुनिया के एक बड़ी हस्ती रहे.

देवबंद दारुल उलूम के क़रीब ही उनके परदादा और भाई मौलाना असलम क़ासमी के क़रीब ही उनको देर रात दफ़ना दिया गया. हज़ारों की संख्या में लोगों ने उनकी नमाज़-ए-जनाज़ा में शिरकत की.

बड़ी इस्लामिक हस्ती कहलाए जाने वाले मौलाना सालिम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सीनियर नायब सदर के अलावा मिस्र उलेमा कौंसिल के सदस्य, सहारनपुर के मज़ाहिर उलूम (वक़्फ़) में मज़लिस-ए-शुरा के सदर और ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष के साथ-साथ बेशुमार मिल्ली तंज़ीमों से जुड़े हुए थे. बेहद गहरी जानकारी के चलते आपको ख़तीब-उल-इस्लाम का लक़ब हासिल था.

मौलाना सालिम की पैदाइश 8 जनवरी, 1926 को देवबन्द में ही हुई थी. परदादा मौलाना क़ासिम नानोतवी ने ही दारुल उलूम देवबंद की नींव रखी थी. पिता क़ारी तय्यब दारुल उलूम के 50 साल तक मोहतमिम रहे. बाद में 1982 में एक अलग दारुल वक़्फ़ की स्थापना की गई. क़ारी तय्यब के इंतेक़ाल के बाद मौलाना सालिम को यहां की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ी. अभी भी वो यहां बतौर सदर मोहतमिम काम कर रहे थे.

मौलाना सालिम के दादा हाफ़िज़ मोहम्मद अहमद हैदराबाद निज़ाम के यहां मुख्य न्यायधीश के पद पर रहें तो मौलाना सालिम के पिता क़ारी तय्यब ने पाकिस्तान के कराची में दारुल उलूम की स्थापना का काम शुरू किया.

मौलाना सालिम दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम के पक्षधर थे. इसके लिए उन्होंने जमिया दीनियात की स्थापना की. 1966 में इसकी स्थापना के बाद दुनिया भर की कई यूनिवर्सिटियों से इसे मान्यता दिलाई. इनके परिवार ने आज़ादी की लड़ाई में भी योगदान दिया है.

इनके बेटे सलमान पाकिस्तान में रहते हैं. वीज़ा न मिलने के कारण वो आ नहीं सके. उनके भाई मोहम्मद आसिम ने बताया कि इसके लिए उन्होंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी लिखा, मगर कोई मदद नहीं मिली.