Home Lead Story “यहां तो हमारा हर रोज़ बलात्कार होता है…”

“यहां तो हमारा हर रोज़ बलात्कार होता है…”

Photo By: Fahmina Hussain

फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net

“बचपन में शादी का बहुत अरमान था. लेकिन अपने बाप को मेरा सौदा करते देखकर रिश्तों से भरोसा उठ गया.”

ये दर्द 46 साल की आलता मैडम की है, जो फिलहाल जिस्मफ़रोशी के ‘धंधे’ में हैं. अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं कि, अम्मा भी इसी काम में थीं. बाप शराबी था. जब अम्मा ने काम बंद किया तो 13 साल की उम्र में मेरे बाप ने मेरा भी सौदा किया. फिर मैं भी ये काम करने लगी. तब रोज़ मेरा बाप ग्राहकों के पास छोड़ कर आता था. 16 साल होते-होते चार बार मेरा अबोर्शन करवाया गया था…

आलता आगे बताती हैं, अब मैं काम नहीं करती. बस कुछ लड़कियों को रखा है. बेचारी गरीब घर से हैं. घर चलाने के लिए ये ‘धंधा’ अपनी मर्ज़ी से करती हैं.

विश्रामपुर— ये एक ऐसा मुहल्ला है, जहां ऐसी कई कहानियां मौजूद हैं, जो रोज़ जिस्म की दरिन्दगी से गुज़रती हैं.

बिहार के रोहतास ज़िले के करवंदिया क्षेत्र में विश्रामपुर रेड लाइट एरिया की कहानी भी कुछ ऐसी है. रेलवे स्टेशन के पास बसा ये इलाक़ा, जहां तंग गलियों में जिस्मफ़रोशी का धंधा खुलेआम चलता है.

वहीं बिहार के सासाराम-डेहरी स्टेट हाईवे पर बसा एक और मुहल्ला जिस्मफ़रोशी की कई न बयान करने वाली दर्द की सच्चाईयां छुपाए हुए है. जहां बंद दरवाज़ों के पीछे की चीखों को ना कोई सुनता है ना सुनना चाहता है.

23 साल की कोमल जो रोज़ इस बयान न कर सकने वाली तकलीफ़ से गुज़रती हैं. वो कहती हैं, “बलात्कार नाम सुनकर ही जिस्म में सिहरन सी उठने लगती थी. मानो जिस्म का हर हिस्सा सुन्न हो गया. लेकिन अब आदत सी हो गई है. यहां तो रोज़ हमें गिद्धों की तरह नोचा जाता है. पर क्या करें मैडम! यहीं पैदा हुए हैं. पेट के लिए धंधा तो करना ही पड़ेगा. हमारे बलात्कार की तो एफ़आईआर तक दर्ज नहीं होती और न ही ये मामले किसी अख़बार या रिकार्ड में आते हैं.”

कोमल आगे बताती है, यहां कई ऐसे लोग आते हैं, जिनकी डिमांड कम उम्र की लड़की की होती है. कितने तो नाबालिग़ लड़कियों के लिए मुंहमांगा पैसा देने को तैयार होते हैं. लेकिन हम अपनी बच्चियों से ऐसे काम नहीं करवाते.

20 साल की रिंकी एक बच्चे की मां है. चार साल पहले वो यहां आई है. कोई लड़का शादी के नाम पर भगाकर लाया था, लेकिन यहां 40 हज़ार में बेच गया.

वो कहती हैं, शुरू में इस दलदल से भागने की बहुत कोशिश की, लेकिन फिर इस नरक को ही अपनी क़िस्मत मान लिया है.

कठुआ-उन्नाव और देश में घट रहे बलात्कार के बारे में पूछने पर कहती हैं, देखा था उस छोटी सी बच्ची का समाचार टीवी पर. दरिन्दे थे सबके सब… अपनी हवस मिटाने के लिए ये दरिन्दे बच्चों को भी नहीं छोड़ते. ऐसे लोगों को तो फांसी देनी चाहिए.

कुसुम को एक नाच पार्टी वालों ने अगवा किया था. बाद में इसे भी यहां बेच गए.

कुसुम अब ऑर्केस्ट्रा में नाचती है. वो कहती है, “मर्दों की भीड़ में नाचना पड़ता है. जहां हम नाचने वालियों पर वो सब पैसे तक लुटाते हैं. लेकिन कई बार नाच के बाद मारपीट कर ज़बरदस्ती की जाती है. कहते हैं —पईसा दिए हैं, पूरा वसूल करेंगे.”

बता दें कि इन लड़कियों को इस ‘धंधे’ का वाजिब हिसाब कभी नहीं मिलता. ये लड़कियां बताती हैं कि, हमारा सारा हक़ तो दलाल मार जाते हैं. यहां बहुत सी तो महिला दलाल हैं. यहां लड़कियों की सप्लाई से लेकर ख़रीद-बिक्री भी होती है. इन लड़कियों की मानें तो बीमार होने पर दवाएं भी नहीं मिलती. यहां अस्पताल या कहीं बाहर जाने की अनुमति नहीं होती है.

यूं तो हर रेड लाइट एरिया में बहुत सी सामाजिक संस्थाएं काम करती हैं. वक़्त-बवक़्त मॉनिटरिंग भी की जाती है, लेकिन बावजूद इसके इन्हें किसी तरह का कोई लाभ या सुविधा नहीं मिलती.

यहां आए दिन पुलिस छापामारी करके बेची गई लड़कियों को बरामद करती है. करवंदिया थाना के थानाध्यक्ष इस बारे में हमें कई कहानियां सुनाते हैं.

वो बताते हैं कि, गया की एक लड़की अगस्त 2017 में अचानक घर से गायब हो गई थी, जिसे हमने यहीं से बरामद किया. उस लड़की को दो अलग-अलग जगहों पर 15 हज़ार और फिर 60 हज़ार नगद में बेचा गया.  यही नहीं, उसके साथ चार बार अलग-अलग जगहों पर सामूहिक बलात्कार भी किया गया. मारपीट की वजह से उसकी हालत काफ़ी ख़राब हो गई थी.

वहीं महिला थाना के एक कर्मचारी का कहना है कि, अब कितने मामलों में संज्ञान लिया जाए. ये तो आये दिन की कहानी है. ऐसे मामले तो इस एरिया में आए दिन दर्ज होते रहते हैं.

आए दिन जिस तरह से अख़बार व न्यूज़ चैनलों पर बलात्कार की ख़बरें आ रहीं हैं, वो महिलाओं के सुरक्षा पर कई सवाल खड़े कर रही हैं. समाज इस पर बावेला मचा रहा है. हर तरह से महिलाओं की सुरक्षा के लिए नेता लोग सड़कों पर आ रहे हैं…

इस पर आलता कहती हैं, “हम जैसी औरतों को समाज अक्सर कलंक मानta है. सदियों से हमें समाज का हिस्सा ही नहीं माना गया.  लेकिन ये भी सच है कि हम वेश्याएं ही अपनी आबरू बेचकर समाज में औरतों और लड़कियों की इज़्ज़त की रखवाली करते हैं. हम न होते तो सोचो इस बलात्कारी समाज का क्या होता…”

नोट: इस स्टोरी में सारे नाम सुरक्षा व सामाजिक कारणों से बदल दिए गए हैं.