जावेद अनीस, TwoCircles.net के लिए
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपनी जांच रिपोर्ट में भोपाल की सेन्ट्रल जेल में कथित रूप से सिमी से जुड़े विचाराधीन क़ैदियों से साथ उत्पीड़न की शिकायतों को सही पाया है और इसके लिए जेल स्टाफ़ के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की अनुशंसा की है.
दरअसल, पिछले साल 2017 में भोपाल सेंट्रल जेल में सिमी से सम्बंधित मामलों में आरोपी 21 विचारधीन क़ैदियों के परिवार वालों ने एनएचआरसी से शिकायत की थी कि जेल स्टाफ़ द्वारा क़ैदियों का शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीड़न किया जा रहा है और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, जिसके बाद आयोग द्वारा इस मामले की जांच करके रिपोर्ट तैयार की गई है.
दरअसल, 31 अक्टूबर 2016 की रात एनकाउंटर में आठ विचाराधीन क़ैदियों के मारे जाने के बाद वर्तमान में भोपाल सेंट्रल जेल में 21 क़ैदी बचे हैं, जिनपर प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य होने का आरोप है.
एनकाउंटर होने के बाद से इन क़ैदियों के परिवार वाले लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि इन्हें जेल में शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है.
परिजनों ने आरोप लगाया था कि इस सम्बन्ध में न्यायलय के समक्ष शिकायत करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही उत्पीड़न की स्थिति में कोई सुधार हुआ.
बाद में परिजनों द्वारा इसकी शिकायत एनएचआरसी से की गई, जिसमें कहा गया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्र, मंत्रियों समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा सार्वजनिक मंचों से पुलिस के हाथों मारे गए आठ बंदियों की मौत को उचित ठहराया गया और जेल में बंद इन विचाराधीन क़ैदियों को आतंकवादी बताया गया (जबकि वे सज़ायाफ्ता नहीं, बल्कि विचाराधीन क़ैदी हैं) जिसके कारण परिजनों को उनके एनकाउंटर का डर सताता रहता है.
परिजनों का आरोप था कि जेल ब्रेक की घटना के बाद क़ैदियों को जेल प्रशासन द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है, उनके साथ गंभीर रूप से मारपीट की जाती है, उन्हें पेट भर भोजन नहीं दिया जाता और नहाने-धोने व पीने के पर्याप्त पानी नहीं दी जाती है. उन्हें एकांत परिधि (solitary confinement) में रखा जा रहा है और परिजनों को और उनसे ठीक से मिलने नहीं दिया जा रहा है और उन्हें अपने धर्म के ख़िलाफ़ नारे लगाने को मजबूर किया जा रहा है.
परिजनों के शिकायत के बाद इस मामले में संज्ञान लेते हुए एनएचआरसी द्वारा टीम भेजकर इन आरोपों की जांच कराई गई.
इस सम्बन्ध में आयोग की टीम ने दो बार जून और दिसंबर 2017 में भोपाल सेन्ट्रल जेल का दौरा करके विचाराधीन क़ैदियों के बयान दर्ज किया था और क़ैदियों के परिजनों, उनके अधिवक्ताओं, जेल के अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी बातचीत की थी.
एनएचआरसी ने अपनी जांच रिपोर्ट और अनुशंसाओं को मध्य प्रदेश सरकार को पहले ही सौंप दी थी और अब यह सावर्जनिक रूप से भी उपलब्ध है.
जांच रिपोर्ट में आयोग ने परिजनों ज़्यादातर शिकायतों को सही पाया है और इसमें शामिल अधिकारियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की शिफ़ारिश की है.
रिपोर्ट के कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं—
—नियमों का उल्लंघन करते हुए क़ैदियों को 5’X8’ के सेल में एकांत कारावास में रखा गया, जहां पंखे नहीं हैं और वहां गर्मी और उमस है. क़ैदियों को दिन में कुछ मिनटों के लिए ही सेल से बाहर निकाला जाता है. इसकी वजह से ये क़ैदी कई तरह के मानसिक विकारों के शिकार हो चुके है. जबकि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश है कि विचाराधीन क़ैदियों को किसी भी परिस्थिति में भी एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता है.
—क़ैदियों को जेल के स्टाफ़ द्वारा बुरी तरह पीटा जाता है. क़ैदियों ने आयोग के जांच दल को बताया कि उन्हें रबर की पट्टियों, आटा चक्की के बेल्ट और लाठियों से मारा जाता है. कई क़ैदियों के शरीर पर चोट के निशान पाए गए हैं. इस संबंध में जेल स्टाफ़ जांच दल को कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाया.
—जेल स्टाफ़ क़ैदियों के प्रति धार्मिक द्वेष की मानसिकता रखते हैं, क़ैदियों को अपने धर्म के ख़िलाफ़ नारे लगाने को मजबूर किया जाता है और इन्कार करने पर पिटाई की जाती है.
—नियमों के अनुसार विचाराधीन क़ैदियों को हफ्ते में दो बार 20 मिनट के मुलाक़ात की इजाज़त है, लेकिन यहां यह पाया गया कि क़ैदियों के परिवारजनों को 15 दिनों में सिर्फ़ एक बार पांच मिनट के लिए मिलने दिया जा रहा है और इसमें भी खुलकर बात नहीं करने दी जाती है.
आयोग ने अपने जांच रिपोर्ट में क़ैदियों के उत्पीड़न में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल जेल कर्मचारियों, अधिकारियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की अनुशंसा भी की है. साथ ही रिपोर्ट में क़ैदियों द्वारा लगाए आरोपों की जांच उच्च स्तर पर कराने की सिफ़ारिश भी की गई है.
दरअसल, हमारे देश में किसी अंडरट्रायल क़ैदी को आतंकवादी बता देना बहुत आम है. अगर मामला अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से जुड़ा हो तो आरोपों के सिद्ध होने से पहले ही फैसला सुनाने की होड़ लग जाती है.
पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां मुस्लिम नौजवान कई सालों तक जेल की “सज़ा” काटने के बाद निर्दोष साबित हुए हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें ‘आतंकी’ ही बताया जाता रहा.
भोपाल जेल महानिदेशक ने आयोग के रिपोर्ट को नकारते हुए इसे एकतरफ़ा बताया है. लेकिन एनएचआरसी की यह रिपोर्ट हमारे जेल व्यवस्था और दुसरे समुदाय के क़ैदियों के प्रति हमारे नज़रिये को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है, जिसपर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.