फहमीना हुसैन, TwoCircles.net
बेलसर : बिहार सरकार द्वारा विकास के दावों के बीच आज वहां गया जिले में बेलसर गाँव के दलित टोले में रहने वाले करीब 250 दलित समुदाय लोगों ने भारी बारिश की वजह से अपना घर छोड़ दिया हैं. सड़क किनारे तम्बू लगा कर वो किसी तरह रह रहे हैं. वही अभी तक उनको कोई सरकारी मदद नहीं मिल सकी हैं इससे उनके लिए जीवन कठिन होता जा रहा हैं.
जहाँ ये दलित बारिश का पानी कम होने का इंतज़ार कर रहे हैं वहीँ सरकारी अमला अब तक उनके पास नहीं पहुच पाया हैं. खाने का सामान ख़त्म हो रहा हैं वहीँ साफ़ पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में ये दलित सिर्फ मना रहे हैं कि को बीमार न पड़े क्यूंकि स्वास्थ्य सेवाएं वहां उपलब्ध नहीं हैं.
बिहार के गया जिले के जीरी पंचायत, जहाँ लगातार 3 दिन से हो रही बारिश ने पानी का लेवल बढ़ गया जिससे सैकड़ों लोगों को अपना घर छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा. इस गाँव के लोग पास के हिलखोर गाँव में सड़कों के किनारे तम्बू लगा कर रहने पर मज़बूर हैं.
बिहार, गया ग्राम पंचायत बेलसर की रहने वाली कमला देवी के घर में कई दरारें पड़ चुकी हैं. उन्होंने बताया कि ये हर साल की स्तिथि है. लेकिन इस साल पानी इतना बढ़ जायगा ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था. ऐसे सड़क किनारे रहने को मज़बूर होना पड़ेगा.
जहाँ एक तरफ ये लोग बारिश-पानी से बचने के लिए प्लास्टिक के टेंट में रहने को बेबस हैं वहीँ पूरे इलाके में पीने के पानी की सबसे ज्यादा किल्लत का लोग सामना कर रहे हैं. इस बस्ती में रहने वाले मूंगा चौधरी ने बताया कि बारिश के दिनों में नदी में पानी आने के कारण सरकारी पानी का सप्लाई बंद कर दिया जाता है. सिर्फ बरसात ही नहीं आम दिनों में भी कई कई दिनों तक जलापूर्ति बंद कर दी जाती है. सरकारी पानी की सप्लाई बंद होने से पास के दूसरे इलाके से पानी का इंतज़ाम करना पड़ता है. यहाँ इस बस्ती में चाहे कोई भी मौसम रहे पानी का यही हाल रहता है.
दस वर्षों से अधिक समय से इस टोले में 50 घरों में लगभग 250 से भी ज्यादा लोग रह रहे हैं. ये सभी गाँव में ही मज़दूरी कर अपना परिवार चलाते हैं. बेघर होने के बाद अब इनके सामने रहने खाने की चुनौती आ गयी हैं.
38 वर्षीय रागनी देवी पास के हाट में सब्जी बेचती हैं. उन्होंने दो महीने पहले ही उधार ले कर अपने घर की छत्त पर एस्बेस्टस शीट डलवाया था. अब उन्हें ये डर सता रहा है कहीं मूसलाधार वर्षा में टीन, मिटटी से बना मकान भी नहीं ढह जाए. अपने तीन बच्चों के साथ वो बहुत मुश्किल से परिवार का गुजर बसर कर पाती हैं. वो कहती हैं ईश्वर किसी को गरीबी नहीं दे. सरकार योजना गरीब की सुविधा के लिए बनती है लेकिन बीपीएल कार्ड बनवाने में उन्हें दो साल लग गए.
हलखोर गाँव के सड़क पर अपने तब्बू में खामोश बैठे कृष्णा मांझी ईंट भट्टी में मज़दूरी का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि गर्मी में घास-फूस की झोपड़ी में आग लगने का डर ऊपर से बरसात में कच्चे घरों की छतें टपकने का दुःख फिर बरसात में मजदूरी बंद. ऐसे हाल में सड़क किनारे पानी कम होने का इंतज़ार कर रहे हैं ताकि घर को फिर से बनाया जाये.
बिन्तोश पासवान ने बताया कि वो और उनकी पत्नी मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. कई दिनों से हो रही बारिश के कारण उसके मकान की छत गिर गई. हादसे में परिवार वाले सही सलामत बच गए लेकिन छत गिरने के कारण उसका सामान-अनाज खराब हो गया. उन्होंने कहा यहाँ बस्ती में सभी मज़दूर परिवार ही रहते हैं. ऐसी स्तिथि में सरकार से मदद की गुहार ही लगा सकते हैं.
28 वर्षीय दिनेश मांझी ने बताया कि घर में रखा सारा राशन पानी में भीग कर ख़राब हो चूका अब तो सिर्फ दो दिनों का ही राशन बचा है. बारिश की वजह से आस-पास के गाँव में मज़दूरी भी बंद हैं. और कुछ दिन और ऐसे रहा तो भूखे मरने की नौबत आ जायगी. अभी तक ना तो किसी अधिकारी ने कोई खबर ली है या नहीं गाँव के मुखिया से कोई मदद मिली.
हैरान करने वाली बात ये है की गाँव के मुखिया और अधिकारियों को इसकी जानकारी तक नहीं है. सभी ने अगले दिन देखने की बात कह कर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की.
इस बारे में जब गया जिले के बेलसर गाँव की मुखिया ललिता कुमारी से पूछा गया तो उन्होंने अभी तक ऐसी किसी भी जानकारी से इंकार किया. उन्होंने दूसरे दिन किसी को भेज कर देखने की बात कही और कहा कुछ व्यवस्था करते हैं.
हालांकि इन सभी बातों के अलावा इस दलित गाँव में रहने वाले मुकुंद मांझी ने बताया कि बरसात के 3 महीने तक अपने ख़राब दौर से गुजरता है. कच्ची सड़क होने से आने जाने तक का रास्ता बंद हो जाता था. प्रसव से कराहती महिला को खटिया पर टांग कर ले जाना पड़ता है कई बार तो कई महिलाएँ तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया है.
इस गाँव में अगर स्वास्थ्य सेवाओ की बात करें एक भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. सड़कों की हालत इतनी ख़राब है कि आपातकालीन स्थिति में भी कोई चार पहिया वाहन आ-जा नहीं सकता. ऐसी स्थिति में ज़्यादातर मरीज़ों को मौत ही नसीब होती है और सरकार के पास इन मौतों का कोई हिसाब-किताब नहीं है.
राज्य सरकार के द्वारा विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच बिहार की ये तस्वीर कहीं कहीं अपने खुलेपन को साबित कर रही है. जाड़ा, गर्मी, बरसात हर मौसम इस परिवार के लिए मुसीबत लेकर आता है. सरकारी आवास के लिए परिवार ने आवेदन तो किया मगर सालों हो गए अभी तक इसकी सुगबुगाहट इन दलित परिवारों को सुनाई नहीं दी.