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देशभर में हक-हुकूक की आवाज उठाने वालों का दमन किया जा रहा है चाहे वो भीमा कोरेगांव हो या फिर कश्मीर। ऐसे में इंसाफ के लिए जीवन पर्यन्त लड़ते रहे जस्टिस राजिन्दर सच्चर की जयंती पर यह आयोजन प्रतिरोध के जारी संघर्ष में अहम होगा। जस्टिस राजिंदर सच्चर की पहली जयंती पर लोकतांत्रिक आवाज़ों पर बढ़ते हमले के खिलाफ रिहाई मंच द्वारा लखनऊ में सेमिनार किया।
इस आयोजन के अंतर्गत योगी आदित्यानाथ को हेट स्पीच मामले में कटघरे में खड़ा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज को झूठे मुकदमे में फांसकर जेल में डाल दिया जाना मानवाधिकार का गंभीर मसला, बजरंग दल और विहिप की संगठित भीड़ इस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या, बिना बात के रासुका, यूएपीए और देशद्रोह के मुकदमे सिर्फ और सिर्फ दलित-पिछड़ों और मुस्लिम जैसे कई मुद्दों को उठाया गया।
लोकतांत्रिक अधिकार नेता अर्जुन प्रसाद सिंह ने कहा कि मोदी के शासनकाल में संविधान द्वारा प्रदत्त आजादी के अधिकार पर हमले तेज़ हो गए हैं। भीमा कोरेगांव के बाद नागरिक अधिकार नेताओं के घरों में पुलिस द्वारा छापे मारे गए और उनकी गिरफ्तारियां की गईं। इतना ही नहीं कशमीर में छोटे-छोटे बच्चों तक को पैलेट गन का निशाना बनाया जाता है तो कभी स्कूली बच्चों को पत्थरबाज कहकर गोलियों का शिकार। सोहराबुद्दीन मामले ने तो एक बार फिर से व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि अगर आरोपी रसूखदार होगा तो उसको सजा नहीं होगी।
वहीँ गोरखपुर दंगा मामले में योगी आदित्यनाथ व अन्य के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता असद हयात एडवोकेट ने कहा कि यूपी में माॅब लिंचिग की अनेक घटनाएं हैं मगर अफसोस है कि मुख्यमंत्री को अपने एक पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद भी माॅब लिंचिग की कोई घटना नजर नहीं आती। इसी तरह दूसरे राज्यों में भी घटनाएं हो रही हैं मगर उनमें भी पुलिस की विवेचना निष्पक्ष नहीं है। पहलू केस में छह नामजद लोगों को क्लीन चिट दी गई जिनकी आपराधिक भूमिका पहलू खान ने अपने मृत्यु पूर्व बयान में बताई थी।
उन्होंने कहा कि इसी तरह रकबर माॅब लिंचिग केस में विधायक की भूमिका की जांच ही नहीं की गई। पुलिस की पिटाई से रकबर की मौत हुई है। फैसल लिंचिग केस में दोनों अपराधी जिनको जमानत मिल गई थी, अदालत से भाग चुके हैं और अब पुलिस उनको ढूढ़ने का नाटक कर रही है। अखलाक लिंचिग केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद दिन प्रतिदिन सुनवाई नहीं हो रही है और सरकारी वकीलों की रुची मुकदमें के जल्द निस्तारण कराने में नहीं है। इस सबके पीछे राजनीतिक लोगों की दिलचस्पी है कि राजनितिक लोगों को सजा मिल सके।
कानपुर में बेगुनाहों पर लगे रासुका के मामलों पर एडवोकेट शकील अहमद बुंदेल ने कहा कि जिनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया जा रहा है। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि रासुका और गैंगेस्टर एक्ट में भारी अंतर है। रासुका राजनैतिक द्वेश के चलते लगाया जा रहा है। मकसद है हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना और एक समुदाय की देश विरोधी छवि बनाना।
उन्होंने कहा कि न्याय में देरी अन्याय के बराबर है। कानपुर से लेकर बहराइच, बाराबंकी, आजमगढ़, कासगंज, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ समेत कई जगहों पर रासुका बेगुनाहों के गले की फांस बन गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि देशाद्रोह, रासुका, यूएपीए के नाम पर जिस तरह वंचित समाज पर थोक में मुकदमे लादे जा रहे हैं उससे साफ है कि सरकार मनुवादी एजेण्डे पर काम कर रही है। राजधानी में संविधान की प्रतियां फूंक दी जाती हैं तो अपराधी के नाम पर दलित-पिछड़े और मुसलमानों की मुठभेड़ के नाम पर हत्याएं कर दी जाती हैं। आज ऐसे दौर में जस्टिस राजिन्दर सच्चर याद आ जाते हैं कि मुसलमानों के हालात दलितों से भी बदतर हैं।
डा0 मंजूर अली ने सच्चर कमेटी की सिफारिशों का जिक्र करते हुए राजनीतिक दलों की भूमिका पर सवाल उठाया। दलित अधिकार कार्यकर्ता अरुण खोटे ने जस्टिस सच्चर के साथ गुजरे आंदोलनों के अनुभवों को साझा किया।
शकील कुरैशी ने कहा कि राजाजीपुरम में देशविरोधी नारे के नाम पर क्षेत्रीय भाजपा विधायक, विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने अयोध्या में हुई धर्मसभा के लिए माहौल बनाने के लिए मुस्लिम युवकों पर नारे लगाने का झूठा आरोप लगाया। जबकि वाकये के वक्त स्थानीय थाने तक की पुलिस मौजूद थी। इसके बावजूद 46 लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा दायर किया गया।
उन्होंने बताया कि जो आग 2013 में लगाई गई वो अब तक शांत नहीं हुई। इसका खामियाजा पुरबालियान के लोगों को रासुका के नाम पर भुगतना पड़ा। 17 लोगों को रासुका के तहत पाबंद किया गया है।