अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मोदी सरकार ने कभी बड़े ज़ोर-शोर से ‘सबका साथ –सबका विकास’ के नारे को प्रचारित किया था. सरकार का यह दावा था कि बजट के ज़रिए अल्पसंख्यक तबक़े की तमाम ज़रूरतों को वो न सिर्फ़ पूरा करेगी, बल्कि अल्पसंख्यकों का उत्थान कर उन्हें भी ‘मेनस्ट्रीम’ के साथ लाकर खड़ा कर देगी. मगर इस बार का भी बजट भी अल्पसंख्यकों के उम्मीद पर खड़ा उतरता दिखाई नहीं देता है.
स्पष्ट रहे कि इस बार के बजट में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का कुल बजट 4700 करोड़ प्रस्तावित किया है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में इस मंत्रालय का बजट 4195.48 करोड़ का था. यानी इस बार के बजट में 504.52 करोड़ का इज़ाफ़ा किया गया है.
यक़ीनन ये बढ़ोत्तरी देखने में आपको बहुत ज़्यादा लगेगा. लेकिन जब हम इस बार के बजट का आंकलन करते हैं तो इस ताज़ा बजट में न तो अल्पसंख्यकों के बेहतरी लिए अलग से किसी विशेष फंड का इंतज़ाम किया गया है और न ही पहले से चल रही स्कीमों में कोई क्रांतिकारी बदलाव किए गए हैं.
बल्कि ताज़ा बजट के आवंटन में अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्कीमों के बजट पहले से कम भी कर दिए गए हैं. उदाहरण के तौर पर प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप का प्रस्तावित बजट इस बार कम होता नज़र आ रहा है.
पिछले वित्तीय साल यानी 2017-18 में इस स्कीम के लिए 1001.15 करोड़ का बजट रखा गया था. लेकिन इस साल इसके लिए प्रस्तावित बजट को घटाकर 980 करोड़ कर दिया गया है.
बताते चलें कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्कॉलरशिप यानी प्री-मैट्रिक मैट्रिक स्कॉलरशिप का बजट साल 2015-16 में 1040.10 करोड़ रखा गया था. ये स्कॉलरशिप अल्पसंख्यक कल्याण के ख़ातिर सबसे महत्वपूर्ण योजना है, ताकि गरीब अल्पसंख्यक अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें.
नेशनल माइनॉरिटी डेवलपमेंट एंड फाइनेंस कारपोरेशन का बजट भी इस वित्तीय साल में कम कर दिया गया है. पिछले वित्तीय साल यानी 2017-18 में इसके लिए 170 करोड़ का बजट था. लेकिन इस साल इसके लिए प्रस्तावित बजट 165 करोड़ रखा गया है.
अल्पसंख्यकों के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण योजना ‘हमारी धरोहर’ का बजट भी इस साल कम कर दिया गया है. पिछले वित्तीय साल में इस स्कीम का बजट 12 करोड़ था, वहीं अब इस साल इस स्कीम का बजट सिर्फ़ 6 करोड़ रूपये रखा गया है. और ये 6 करोड़ रूपये दो एक्जीबिशन पर खर्च किया जाएगा.
बताते चलें कि मुल्क में तमाम अल्पसंख्यकों की समृद्ध संस्कृति और विरासत को बचाने के मक़सद के तहत मोदी सरकार ने ‘हमारी धरोहर’ स्कीम की शुरूआत साल 2014-15 में की गई थी. यानी यह स्कीम अल्पसंख्यक पहचान की सलामती मुक़र्रर करने के ख़ातिर चलाई जा रही है. इस योजना का उद्देश्य पुराने दस्तावेज़ों, खत्ताती, अनुसंधान और विकास को समर्थन देना भी है. फिलहाल इस स्कीम के तहत सबसे पहली प्राथमिकता पारसी समुदाय को दी गई है. उसके बाद दूसरे धर्मों की बारी आने वाली थी.
इतना ही नहीं, राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड को मज़बूत करने के लिए सरकार की स्कीम प्रस्तावित बजट से गायब है. इसी प्रकार मौलाना आज़ाद मेडिकल एड स्कीम की शुरूआत की गई थी, जिसे सरकार ने ‘सेहत स्कीम’ का नाम दिया था. ये स्कीम भी प्रस्तावित बजट में गायब नज़र आ रही है.
धोखाधड़ी की कहानी आई सामने
आपको जानकर हैरानी होगी कि अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के बजट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय स्कीमों को भी शामिल दिखाया गया है ताकि पहली नज़र में हर किसी को यही दिखे कि सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण के लिए दिल खोलकर अपना बजट बढ़ाया है. जबकि सच्चाई यह है कि इन स्कीमों और उनके लिए तय बजट को दोनों ही जगह दिखाया गया है. और ये बजट की रक़म भी कोई मामूली नहीं है. बल्कि पूरे 1530.39 करोड़ रूपये का बजट है.
गौरलब रहे कि इस आम बजट में देश के क़रीब 20 फ़ीसद अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए जो राशि आवंटित की गई है, वो कुल बजट का तक़रीबन 0.2 फ़ीसद ही है. अब आप खुद ही सोच लीजिए कि ‘सबका साथ -सबका विकास’ नारा कितना थोथला है.