बजट 2018 : थोथी बातें, भ्रामक दावे, लेकिन संकट ग्रस्‍त जनता के लिए कोई राहत नहीं

TwoCircles.net News Desk


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नई दिल्‍ली :  भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पेश हुए आम बजट को थोथी और भ्रामक बताया है.

उन्होंने विपक्ष के तमाम सांसदों से अपील की है कि वे बजट में ज़रूरी सवालों पर लगाई गई चुप्‍पी और किसानों व गरीबों के नाम में की गई थोथी बयानबाज़ी के लिए सरकार को घेरें और उसे उत्‍तरदायी ठहराएं.

दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि, बजट -2018 भी अरुण जेटली द्वारा पेश पिछली सालों के बजटों की तरह एक की गई एक खोखली बयानबाज़ी है.

उनके मुताबिक़, इस बजट में ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को तबाह कर रहे कृषि संकट को हल करने की दिशा में कोई कोशिश नहीं की गई, फिर भी 2022 तक किसानों की आय दुगुना करने के खोखले वायदे को दुहरा दिया गया है.

दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि, देश भर में किसान संगठनों द्वारा उठाई जा रही क़र्ज़ मुक्ति की मांग पर बजट पूरी तरह चुप है और इसमें न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य को स्‍वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार लागू करने का दावा बिल्‍कुल ही आधारहीन एवं भ्रामक है. वैसे भी सरकार के लागत मूल्‍य की गणना करने के फार्मूले में केवल चालू लागत सामग्रियों के मूल्‍य ही शामिल किए जाते हैं जबकि किसानों द्वारा स्‍वयं लगाई गई लागत सामग्रियों, श्रम आदि को तो शामिल ही नहीं किया जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि, इसी तरह बजट में ट्रेड यूनियनों और स्‍कीम कर्मचारियों की न्‍यूनतम मज़दूरी, रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा तथा उन्‍हें मज़दूर का दर्जा देने व समान काम का समान वेतन देने के बारे में पूरी तरह चुप्‍पी साध ली गई है. मनरेगा में आवंटन पिछले साल जितना ही छोड़ दिया गया है, जबकि कई राज्‍यों में मनरेगा मज़दूरी क़ानून में तय न्‍यूनतम मज़दूरी के कम दी जा रही है और इस क़ानून के तहत परिवारों को मिल रहा औसत रोज़गार केवल 49 दिन प्रति वर्ष ही है.

दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं कि, यह बजट भारतीय जनता के लिए आज के दो सबसे महत्‍वपूर्ण आर्थिक सरोकारों –बेरोज़गारी एवं बेतहाशा बढ़ रही गैरबराबरी– के बारे में बिल्‍कुल चुप्‍पी साधे हुए है. अति-धनाढ्यों पर टैक्‍स लगाने का कोई प्रावधान इसमें नहीं लाया गया है, जबकि हम जानते हैं कि वर्ष 2017 में केवल 1% धनिकों के पास देश की 73% सम्‍पत्ति चली गई है.

उनके मुताबिक़, इस बजट में स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए बड़ी-बड़ी बातें की गई हैं, लेकिन सच्‍चाई यह है कि जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवा तंत्र को मज़बूत बनाने की बजाए इसमें केवल गरीबों को मिलने वाला स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कवर बढ़ाया गया है, जो कि अंतत: निजी अस्‍पतालों और बीमा कम्‍पनियों को सरकारी ख़ज़ाने से मुनाफ़ा दिलवाएगा.

वो कहते हैं कि, एक ओर पूरा देश आज भी नोटबंदी से बने आर्थिक संकट और भारी तबाही से उबरने की कोशिश कर रहा है, वहीं अरुण जेटली जनता की बर्बादी और अर्थव्‍यवस्‍था को भारी क्षति पहुंचाने वाले इस क़दम को ‘ईमानदारी का उत्‍सव’ बताकर एक बार फिर जनता का मज़ाक़ उड़ा गए.

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