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आम बजट : बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर से दुश्मनी साफ़ नज़र आ रही है

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर से मोदी सरकार को कितनी समस्या है, ये बात ताज़ा बजट में खुलकर सामने आ गई है.

इस बार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रस्तावित बजट में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर से जुड़े संस्थाओं के बजट में भारी कटौती की गई है.

डॉ. भीमराव अम्बेडकर इंटरनेशनल सेन्टर का बजट साल 2016-17 में 100 करोड़ का था, लेकिन साल 2017-18 में इसमें भारी कटौती की गई और इसे महज़ 40 करोड़ कर दिया गया. और अब साल 2018-19 में इस सेन्टर का बजट 15 करोड़ कर दिया गया है.

गौरतलब रहे कि इस सेन्टर का उदघाटन खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था. तब उन्होंने कहा था कि, यह सेन्टर युवाओं के बीच अनुसंधान को बढ़ावा देने और डॉ अंबेडकर की मूल सोच को प्रोत्साहित करेगा. ये सेन्टर नई पीढ़ी के लिए बाबा साहेब के विज़न को समझने का केंद्र बनेगा. लेकिन अब लगता है कि पीएम मोदी की बाबा साहब में दिलचस्पी ख़त्म हो गई और उनकी सरकार नहीं चाहती है कि बाबा साहब का विज़न नई पीढ़ी तक पहुंचे.

डॉ. अम्बेडकर नेशनल मेमोरियल का बजट में भी भारी कटौती नज़र आ रही है. साल 2017-18 में इसका प्रस्तावित बजट 62 करोड़ था, लेकिन साल 2018-19 में इसका प्रस्तावित बजट सिर्फ़ 5 करोड़ रखा गया है. 

इतना ही नहीं, अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए काम करने वाले संस्थाओं का बजट भी पिछले साल के 70 करोड़ के बजट से इस बार 50 करोड़ कर दिया गया है.

नेशनल सफ़ाई कर्मचारी फाईनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन का बजट भी लगातार होता दिख रहा है. साल 2016-17 में इसके लिए 50 करोड़ का बजट रखा था. वहीं 2017-18 में इसे 44.83 किया गया और अब साल  2018-19 में 30 करोड़ कर दिया गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस की भी यही कहानी है. साल 2016-17 में इसके लिए 23.68 करोड़ का बजट रखा था. साल 2017-18 में इसे 22.24 किया गया और अब साल  2018-19 में 15.15 करोड़ कर दिया गया है.

देश में भिखारियों के पुनर्वास के लिए एकीकृत कार्यक्रम की शुरूआत पूर्व की यूपीए सरकार ने की थी. लेकिन मौजूदा सरकार भिखारियों के पुनर्वास के लिए संजीदा नज़र नहीं आ रही है. इसका भी बजट एक करोड़ से आधा कर 50 लाख कर दिया गया है. अब 50 लाख में कितने भिखारी पुनर्वासित होंगे, इसका अंदाज़ा आप बखूबी कर सकते हैं.

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और मादक द्रव्यों का सेवन का पैटर्न और रुझान जानने हेतु राष्ट्रीय सर्वेक्षण का आंकलन करने के लिए शुरू की गई स्कीम में भी मौजूदा सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है. पिछले साल इसके लिए 22 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन इस बार के बजट में इसे घटाकर सिर्फ़ 7 करोड़ रूपये कर दिया गया है.

यही नहीं, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इस बार के बजट में राष्ट्रीय वयोश्री योजना का बजट ख़त्म कर दिया गया है. जबकि इस स्कीम की शुरूआत मौजूदा सरकार ने पूरे तामझाम के साथ आंध्र प्रदेश के नेल्लोर ज़िले में 01 अप्रैल 2017 को किया था. केन्द्रीय सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने मीडिया में इस स्कीम को लेकर बड़े-बड़े ऐलान किए थे. उन्होंने कहा था कि, इस योजना के तहत देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए शारीरिक सहायता एवं जीवन यापन के लिए आवश्यक उपकरणों को शिविरों के माध्यम से वितरित किया जाएगा.

गौरतलब रहे कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 10.38 करोड़ है. वरिष्ठ नागरिकों की 70 फ़ीसदी से भी अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. वरिष्ठ नागरिकों का एक बड़ा प्रतिशत वृद्धावस्था में होने वाली अक्षमताओं से पीड़ित है. एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2026 तक उम्रदराज़ लोगों की आबादी बढ़कर क़रीब 173 मिलियन हो जाएगी.

नेशनल कमीशन फॉर डिनोटिफाईड ट्राईब्स का बजट इस बार ख़त्म कर दिया गया है. वहीं Capital Outlay on North Eastern Areas योजना का बजट भी इस बार ख़त्म कर दिया गया है, जबकि पिछले साल इसके लिए 13.57 करोड़ का बजट प्रस्तावित था.

मौजूदा बजट में अनुसूचित जाति के छात्रों को मिलने वाले पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के बजट में भारी कटौती की गई है. साल 2017-18 में इसके लिए 3347.99 करोड़ का बजट प्रस्तावित था. लेकिन इस बार के बजट में इसे घटाकर 3000 करोड़ कर दिया गया है.

इस प्रकार हम देखते हैं कि अनुसूचित जाति के एजुकेशनल डेवलपमेंट का बजट जो कि साल 2017-18 में 3557.69 करोड़ था, उसे घटाकर इस बार के बजट में 3290.46 करोड़ कर दिया गया है. यानी सरकार नहीं चाहती है कि अनुसूचित जाति का किसी भी तरह का एजुकेशनल डेवलपमेंट हो, क्योंकि ये जब पढ़-लिख लेंगे तो फिर इन्हें वोट कौन करेगा और दंगों में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ लड़ेगा कौन?

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