कासगंज दंगा : फेसबुक वार से शुरू हुई राजपूताना ‘संकल्प’ की ये हिंसक लड़ाई

TwoCircles.net News Desk


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कासगंज/लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने कासगंज साम्प्रदायिक हिंसा में युवाओं के ‘संकल्प’ नामक संगठन को मुख्य षडयंत्रकर्ता क़रार दिया है.

रिहाई मंच के राजीव यादव और मोहम्मद आरिफ़ ने कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच-पड़ताल की. इस जांच-पड़ताल में पूर्वनियोजित तरीक़े से साम्प्रदायिक हिंसा की तैयारी की बात सामने आई है.

दरअसल, हिंसा से पूर्व सोशल साइट फेसबुक पर संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों और मुसलमान लड़कों के बीच तकरार हुई थी और यह तकरार एक लम्बे समय तक चलती रही, जिस पर 1000 से अधिक कमेन्ट किए गए थे.

इस तकरार के बाद से ही संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों की गुप्त बैठकें भी हुई थीं. इन्हीं आशंकाओं के चलते संकल्प फाउंडेशन के उपाध्यक्ष आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी (आयुष शर्मा स्वयं को युवा नेता कहते हैं और उनके फेसबुक पेज़ को 8000 से अधिक लोग फॉलो करते हैं) ने 20 जनवरी को गृहमंत्री, मुख्यमंत्री और यूपी पुलिस को ट्विटर के माध्यम से सचेत करने का प्रयास भी किया था. यह बात खुद आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी ने स्वयं अपने फेसबुक पोस्ट पर कहीं हैं.

आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी के फेसबुक वाल पर अभी भी उसी क़िस्म की सांप्रदायिक कमेंट जारी हैं, जिस तरह के फेसबुक वॉर ने दंगों की ज़मीन तैयार की थी. मीडिया रिपोर्ट्स में भी दंगों की शुरुआत सोशल साइट्स के ज़रिए होने की बात सामने आने के बाद भी प्रशासन द्वारा इसका संज्ञान न लेना प्रशासनिक लापरवाही का सबूत है. 

25 जनवरी की रात भी आयुष शर्मा ने एसएसपी को फेसबुक पर मैसेज़ कर इसके बारे में चेतावनी दी थी फिर भी जानबूझकर इसे नज़रअंदाज़ किया गया और सांप्रदायिक तत्वों को हथियार इकठ्ठा करने और हिंसा करने की ढील दी गई.

कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा में राजनीतिक कुचक्र की बात तत्कालीन एसएसपी सुनील सिंह द्वारा भी कही गई थी जिसके तत्काल बाद उन्हें वहां से हटा दिया गया है.

एटा सांसद राजवीर सिंह का वहां दिया गया भड़काऊ भाषण राजनीतिक संरक्षण में हिंसा की पूर्वनियोजित घटनाओं को पुष्ट करता है. जबकि उसी वीडियो में पीछे से एक आवाज़ आई है कि वर्दी वाले ने मारा है.

इसके साथ ही ‘राजपूत गौरव’ से लैस युवा हिन्दू संगठनों द्वारा हाल-फिलहाल में कासगंज में करनी सेना द्वारा पद्मावत फिल्म का विरोध के समर्थन में मार्च निकाला गया था. संकल्प फाउंडेशन के अनुकल्प विजय चन्द्र चौहान ने इसी राजपूत गौरव के अभिमान से लैस होकर “जय राजपूताना” का उद्घोष किया और फिल्म के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी किया था.   

इसके साथ ही कासगंज रेलवे स्टेशन के क़रीब में स्थित बाबा शेरनाथ मंदिर की भूमिका भी संदिग्ध है. बाबा शेरनाथ मंदिर, नाथ संप्रदाय की परम्परा से जुड़ा हुआ मंदिर है जिसके मुख्य संरक्षक नाथपंथ के अन्य सभी मंदिरों के संरक्षक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं और उनके आदेश पर ही वर्तमान महंत सोमनाथ को कासगंज स्थित शेरनाथ मंदिर का प्रभार दिया गया है, जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि ‘संकल्प’ संगठन के सदस्य युवाओं का इस मंदिर में नए महंत के आने के बाद से साप्ताहिक आयोजन/हर सोमवार को संकल्प फाउंडेशन की तरफ से पुनः महाआरती का आयोजन किया जाता था और गतिविधियां होती रही हैं.

मृतक चन्दन भी संकल्प फाउंडेशन के मुख्य संस्थापक सदस्यों में से था और वह रेलवे स्टेशन स्थित शेरनाथ मंदिर के महंत के क़रीबी संपर्क में था. प्रत्येक सोमवार की महाआरती के आयोजन में उसकी मुख्य भूमिका थी.

अभी हाल ही में सांप्रदायिक हिंसा से ठीक पहले मंदिर में इसके पूर्व महंत रतननाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई. पूरे शहर में जुलूस भी 24 जनवरी को निकाला गया था.  इस पूरे कार्यक्रम के कर्ताधर्ता ‘संकल्प’ संगठन और उसके सदस्य थे.

सांप्रदायिक हिंसा के दौरान संदिग्ध स्थितियों में मृत चन्दन द्वारा मंदिर को इसके पूर्व 11000 रुपए भी दिए गए थे इस बात की पुष्टि मंदिर के महंत सोमनाथ ने की है. इसके साथ ही साथ भंडारा और कम्बल वितरण इत्यादि भी इनके द्वारा किया गया था.

रिहाई मंच ने बाबा शेरनाथ मंदिर और ‘संकल्प’ संगठन के आपसी संबंधों पर भी सवाल खड़े किए हैं. इससे पहले भी मंदिर परिसर की चहारदीवारी को लेकर पड़ोसियों से कहासुनी हुई थी और उस वक़्त भी चन्दन और संकल्प संगठन ने मंदिर की ओर से दबाव बनाकर महंत सोमनाथ की मदद की थी.

मंच ने इस पूरे मामले में शेरनाथ मंदिर और संकल्प के संबंधों पर उच्च स्तरीय जांच करने की मांग की है.

इसके अलावा इस पूरे मामले में बिलराम गेट में ठंडी सड़क स्थित प्रसिद्ध चामुण्डा मंदिर विवाद एक अन्य पहलू है जिसके कारण एबीवीपी और अन्य हिंदूवादी संगठन मुसलमानों से नाराज़ थे.

मंदिर परिसर के पास कुछ समय पहले ही गेट लगाने को लेकर दोनों सम्प्रदायों में विवाद हुआ था और गेट लगाने के विरोध में आसपास के मुस्लिम लोगों ने धरना भी दिया था, क्योंकि उनका कहना था कि यह आम रास्ता है और इसके बंद हो जाने से बस्ती के लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा. इस विवाद के कारण पहले भी स्थिति तनावपूर्ण थी जिसे जानबूझकर एबीवीपी, संकल्प फाउंडेशन और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने लोगों को भड़काने में प्रयोग किया और 26 जनवरी को साज़िशन सांप्रदायिक हिंसा की गई.

इसके बाद भी प्रशासन द्वारा दंगाइयों को क़ाबू करने के प्रयास नहीं किए गए और पुनः सांप्रदायिक तत्वों को खुलेआम आगज़नी, लूटपाट करने दिया गया जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों की दुकाने जलाई गईं और घर-मकान, गाड़ियां जला दी गईं. भारी संख्या में पुलिस बल तैनात होने के बाद भी एकतरफ़ा बदले की कार्यवाही से प्रेरित होकर पुलिस द्वारा सांप्रदायिक तत्वों को न सिर्फ़ संरक्षण दिया गया बल्कि एटा सांसद राजवीर सिंह को खुलेआम भड़काऊ भाषण देने की भी छूट दी गई जिससे और अधिक संख्या में मुसलमानों की दुकानों और घरों में आगज़नी और लूटपाट की घटनाएं तीसरे दिन भी होती रहीं.

कासगंज हिंसा में एटा सांसद राजवीर सिंह को भी हिंसा भड़काने के मामले में मुक़दमा चलाने की मांग रिहाई मंच ने की है.

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