TwoCircles.net News Desk
कासगंज : साम्प्रदायिक हिंसा के बाद पुलिस द्वारा मुस्लिम बस्तियों में घरों में छापेमारी के नाम पर तोड़-फोड़ करने की बात सामने आई है. चन्दन की मौत के मामले में आरोपित वसीम जावेद और उनके चाचा के घर में पुलिस द्वारा सांप्रदायिक भावना के कारण पूरे घर में तोड़फोड़ की गई और सारा सामान तहस नहस कर दिया गया. इस तरह की पुलिस कार्रवाई से कासगंज के मुस्लिम घरों में दहशत का माहौल बन गया है और कोई भी निवासी सामने आने और अपना बयान दर्ज करने से डर रहा है.
कासगंज के मुस्लिमों ने यह भी बताया कि जो कोई भी मीडिया में अपने बयान दे रहा है या मीडिया को घटना के बारे में अवगत करा रहा है पुलिस उन्हें चिन्हित कर उत्पीड़ित कर रही है. इस तरह की पुलिसिया कार्यवाही से जांच प्रभावित हो रही है और निष्पक्ष जांच सम्भव नहीं है.
उत्तर प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच द्वारा कासगंज में हिंसा के पीड़ितों और घायलों से मुलाक़ात कर उनका हालचाल लिया गया. रिहाई मंच ने अपनी जांच में प्रथम दृष्टया पाया कि कासगंज हिंसा की घटनाएं पूर्व नियोजित है और पुलिस के पूर्व संज्ञान में अंजाम दी गई है.
रिहाई मंच नेता मोहम्मद आरिफ़ और राजीव यादव ने बताया कि कासगंज में बड्डूनगर स्थित अब्दुल हमीद तिराहे पर 26 जनवरी को ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान हिंदूवादी संगठन ‘संकल्प’ द्वारा जबरन भगवा झंडों के साथ हथियारबंद रैली निकालने तथा उकसावे भरे नारों जैसे “हिंदुस्तान में रहना है तो वंदे मातरम कहना है” और “हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्तान, कटुए भागो पाकिस्तान” लगाने के दौरान झड़प की बात सामने आई है. जिसके बाद पूर्वनियोजित तरीक़े से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
आगे राजीव यादव का कहना है कि, जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई तब जाकर पुलिस द्वारा फ़ायरिंग की गई, जिसमें नौशाद गोली लगने से घायल हो गया और अभिषेक गुप्ता उर्फ़ चन्दन की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई.
यह कथित तिरंगा यात्रा भी अभिषेक उर्फ़ चन्दन गुप्ता के नेतृत्व में ही निकाली गई थी. हाल में प्राप्त विडियो फुटेज भी इस बात की पुष्टि करते हैं. जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि संकल्प फाउंडेशन द्वारा निकाली गई तथाकथित तिरंगा यात्रा में एबीवीपी के कार्यकर्ता भी शामिल थे और उनके हाथों में भगवा झंडे और तमंचे थे. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इनके द्वारा मिलकर पूर्वनियोजित तरीक़े से सर्वप्रथम तिरंगा यात्रा के नाम पर उपद्रव करने के उद्देश्य से रैली निकाली गई और जान-बूझकर मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े में पहुंचने पर उकसावे भरी नारेबाज़ी की गई और वहां पहले से ध्वजारोहण करने के लिए इकठ्ठा हुए लोगों से झड़प हुई.
गौरतलब है कि इस तथाकथित तिरंगा यात्रा की अनुमति भी शासन द्वारा नहीं ली गई थी और न ही इसकी सूचना शासन को दी गई थी. ये भी जानना आवश्यक है कि जिस अब्दुल हमीद तिराहे पर पहले से मुसलमान ध्वजारोहण करने के लिए इकठ्ठा हुए थे, वह कोई मुख्य सड़क न होकर एक संकरी गली है. ऐसे में एक साथ सैकड़ों मोटरसाइकिल के साथ अब्दुल हमीद तिराहे स्थित कार्यक्रम स्थल तक जाकर भगवा लहराते हुए नारेबाजी और ज़बरन वन्दे मातरम गाने के लिए धमकाना भी सोची समझी साज़िश का एक हिस्सा है. इसके बाद वहां माहौल तनावपूर्ण हो गया, इसकी सूचना तत्काल पुलिस प्रशासन को दी गई थी किन्तु पुलिस ने त्वरित कार्यवाही नहीं की. जिसके कारण कासगंज में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया और तथाकथित तिरंगा रैली में पहले से हथियारों से लैस सांप्रदायिक तत्वों ने आगजनी और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देना शुरू किया.
रिहाई मंच की मांग है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच सुनिश्चित की जाए क्योंकि निष्पक्ष जांच के बिना पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा.