नेहा रोज़ टोप्पो
झारखंड : जब हौसला और विश्वास साथ हो तो कठिन परिस्थितियां भी आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. इस बात को सच कर दिखाया है मध्य प्रदेश के ज़िला छिंदवाड़ा, गांव सिमरीया में रहने वाली महिला किसान कलश्वती बाई ने.
कुछ वर्ष पूर्व घरेलू महिला का जीवन जीने वाली कलश्वती बाई आज लाह (लाख) की खेती के लिए पूरे गांव में प्रसिद्ध है.
दरअसल, इनके जीवन में नया मोड़ उस समय आया जब 15 साल पहले पति हरिश्चंद्र का देहांत कैंसर के कारण हो गया. पति पेशे से किसान थे. परंतु उनकी मृत्यु के बाद परिवार पूरी तरह बिखर गया. जब पति का देहांत हुआ उस समय बेटा धीरज बहुत छोटा था. घर में कमाने वाला कोई नहीं था.
कलश्वती बाई को खेतीबाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं था. कारणवश घर चलाना मुश्किल हो रहा था. स्थिति को लगातार बिगड़ता देख कलश्वती बाई चिंता के कारण बीमार रहने लगी, जिसके कारण बेटे को बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
इसी दौरान 2013 में इनकी मुलाक़ात मध्य प्रदेश स्थित संजीवनीसंस्था के कार्यकर्ताओं से हुई. जिन्होंने कलश्वती को लाह की खेती करने का सुझाव दिया. चूंकि इनके पास लाह की खेती हेतु पलाश एवं बेर के पेड़ उपलब्ध थे.
संजीवनी संस्था द्वारा इनको वैज्ञानिक पद्धति से लाह की खेती का प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि किस तरह वैज्ञानिक विधि को अपना कर लाह उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. साथ ही वैज्ञानिक पद्धति में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न चरणों की जानकारी दी गई, जैसे पेड़ों का चयन, पेड़ों की कटाई-छंटाई, दवा छिड़काव इत्यादि.
इस प्रशिक्षण ने कलश्वती के अंदर कुछ कर दिखाने का जोश भर दिया. उसे उम्मीद थी फ़सल अच्छी होगी एवं आमदनी भी. परन्तु क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.
कलश्वती की मेहनत रंग लाने ही वाली थी कि अचानक हुई तेज़ बारिश ने सब बर्बाद कर दिया. यह बारिश एक सप्ताह तक लगातार होती रही.
सोने पर सुहागा तब हुआ जब बारिश के एक सप्ताह बाद मौसम फिर से ख़राब हो गया एवं तेज़ हवा चली, जिसके कारण बड़े पेड़ गिर गए. घरों के छत उड़ गए एवं जिन वृक्षों में बिहन लाह लगा था वो भी नष्ट हो गए.
इसका गहरा प्रभाव कलश्वती के वृक्षों पर भी हुआ. ऐसा होने से कलश्वती के मनोबल पर काफ़ी गहरा असर पड़ा. क्यूंकि उसने इस खेती के लिए काफ़ी मेहनत किया था. इस प्राकृतिक आपदा ने मेहनत एवं उम्मीद दोनों पर पानी फेर दिया.
कुछ समय के लिए कलश्वती को लगा कि इस काम में भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा, परंतु खुद को प्रेरित करते हुए उन्होंने उसी उत्साह के साथ फिर से लाह खेती करने का निर्णय लिया. इसी निर्णय का नतीजा है कि आज अपनी उत्तम लाह खेती के कारण वह गांव में सफल महिला किसान के रुप में प्रसिद्ध हैं.
मां के इस हौसले के बारे में धीरज कहता है, “पिताजी के देहांत के बाद मां ने पिताजी की कमी महसूस नहीं होने दी. अपने स्तर पर जो कर सकती थी, मेरे लिए हमेशा करती आई है. किस तरह उसने मेरी परवरिश की वो कभी नहीं भूल सकता. वह बातों ही बातों में कहता है कि मां को वह कभी निराश नहीं करेगा न ही दुख का सामना करने देगा.”
मां की हर एक मुसीबत को याद करके धीरज का गला रौंध जाता है. वो बताता है, “पहली बार लाह की खेती में मौसम के कारण मां को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा पर उन्होंने हार नहीं मानी. दोबारा मेहनत कर ये साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत के आगे परिस्थिति को भी सिर झुकाना पड़ता है. आज पूरा गांव मां की हिम्मत की दाद देता है. मैं भी मां के काम में मां का साथ देता हूं.”
स्वयं कलश्वती बाई लाह की खेती के संबंध में कहती हैं कि, “पहली बार खेती से होने वाले नुक़सान ने मेरा मनोबल तोड़ दिया था. लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारी. दोबारा कोशिश की और सफल हुई.”
कलश्वती बाई के काम के बारे हसीब खान, सोना बाई, कमला देवी, भुपेन्द्र समेत गांव के कई लोगों का कहना है कि, कलश्वती बाई लाह की खेती के लिए जिस प्रकार दिन रात मेहनत करती हैं, उससे उसकी आमदनी अवश्य ही बढ़ेगी. जलाने के लिए लकड़ियों का प्रबंध वह निकाली गई लाह की लकड़ी से ही कर लेती है. हम भी कलश्वती बाई द्वारा उत्पादित लाह को देखकर वैसा ही मॉडल अपने खेत मे बनाना चाहते हैं.
कलश्वती बाई ने निराशा का दामन छोड़ कड़ी मेहनत से सफलता पाकर ये साबित कर दिया कि जीवन में परिस्थिति चाहे जैसी भी हो जाए, हौसले और मेहनत के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है. (चरखा फीचर्स)