अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : संसद में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने साम्प्रदायिक दंगा व हिंसा पर डराने वाला आंकड़ा जारी किया है. इन आंकड़ों के मुताबिक़ जैसे-जैसे 2019 क़रीब आ रहा है, वैसे-वैसे देश में साम्प्रदायिक दंगों में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है और ये इज़ाफ़ा भाजपा प्रशासित राज्यों में सबसे अधिक है.
गृह मंत्रालय की जानकारी के मुताबिक़ साल 2014 से लेकर 2017 तक देश में दंगों की कुल 2920 वारदातें हुई हैं, जिनमें कुल 389 लोगों ने जान गंवाई. वहीं घायलों की संख्या 8890 रिकॉर्ड की गई है. ये सरकारी आंकड़े हैं. वास्तविक आंकड़ों में मरने वालों व घायलों की संख्या इससे भी कई गुना अधिक हो सकती है.
साल 2017 में देश भर में 822 साम्प्रदायिक घटनाओं के मामले दर्ज हुए. इनमें 111 लोगों की जान गई वहीं 2384 लोग घायल हुए. वहीं साल 2016 में 703 साम्प्रदायिक घटनाएं सामने आईं. इनमें 86 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 2321 घायल हुए. साल 2015 में 751 साम्प्रदायिक घटनाओं में 97 लोग अपनी जान गंवाने के साथ-साथ 2264 लोग घायल भी हुए. साल 2014 में भी 644 साम्प्रदायिक घटनाएं घटित हुई. इनमें 95 जानें गई और 1921 लोग घायल हुए.
उत्तर प्रदेश है नंबर —वन
केन्द्र के मोदी सरकार के राज में जिन 10 राज्यों में सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें 7 में बीजेपी की सरकार है और एक जगह बिहार में सत्ता में सहयोगी है.
जिन दो राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वो कर्नाटक और पश्चिम बंगाल है. यहां बीजेपी सरकार बनाने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है.
जिस राज्य में सर्वाधिक दंगे रिकॉर्ड किए गए, वह उत्तर प्रदेश है. यहां साल 2014 से लेकर 2017 तक कुल 645 साम्प्रदायिक दंगों के मामले दर्ज हुए हैं. इन दंगों में 121 मारे गए और 1823 लोग घायल हुए.
इन आंकड़ों का आंकलन करें तो हम पाते हैं कि जब से यूपी में योगी आदित्यनाथ सत्ता पर क़ाबिज़ हुए हैं, तब से साम्प्रदायिक दंगों की इज़ाफ़ा हुआ है. साल 2017 में यहां 195 मामले दर्ज हुए हैं. 44 लोग मारे गए तो वहीं 542 घायल हुए हैं.
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डंके की चोट पर एनकाउंटर करवा रहे हैं. मगर क़ानून व्यवस्था कितनी बेहतर हुई, ये सांप्रदायिक झड़पों के आंकड़े से भी जगजाहिर है. और इसका सबूत उनकी ही सरकार के मंत्री हंसराज अहीर ने दिया है. आंकड़ा कह रहा है कि यूपी में 2017 तक जंगलराज था.
गृह मंत्रालय से प्राप्त यह आंकड़ें देश में हुए दंगों की हक़ीक़त का पूरा सच नहीं है. इन आंकड़ों में वो हज़ारों घर शामिल नहीं हैं, जो दंगों की आग में जल गए. न ही उन घरों में बसने वाले ख्वाब हैं, और न ही मरने वाले के परिजनों का दुख… दंगों में हुई मौतों के यह आंकड़े दंगों की भयावह तस्वीर की झलक भर दिखाते हैं.