अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
जमशेदपुर : किसी का बच्चा चोरी नहीं हुआ, मगर एक परिवार क़हर के आगे दम तोड़ गया. ये क़हर अफ़वाहों का था. झारखंड में एक ही परिवार के चार लोगों की जान इसलिए चली गई, क्योंकि उन पर बच्चा चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगा, उसके बाद उन्हें पीट-पीट कर मौत के हवाले कर दिया गया.
ये कहानी पूर्वीसिंहभूम, जमशेदपुर ज़िलान्तर्गत बागबेड़ा थाना के नागाडीह गांव की है. यहां 18 मई, 2017 की रात क़रीब 8 बजे बच्चा चोरी के अफ़वाह में स्थानीय लोगों द्वारा तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, वहीं इस भीड़ की शिकार हुई 76 साल की राम सखी देवी ने भी 20 जून को दम तोड़ दिया. राम सखी देवी 18 मई को भीड़ द्वारा मारे गए तीनों बच्चों की दादी थी.
आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस बाप पर आज भी क्या गुज़र रही होगी, जिसने अपने तीन जवान बेटे और अपनी मां को महज़ अफ़वाह के कारण खो दिया है. मणिचंद प्रसाद अभी भी सदमे में हैं.
TwoCircles.net के साथ बातचीत में मणिचंद प्रसाद ये कहते हुए रो पड़ते हैं कि, सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा. आज घटना को हुए क़रीब 8 महीने हो गए, लेकिन इंसाफ़ की उम्मीद दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है. सवाल यह है कि जब किसी भी थाने में बच्चा चोरी को लेकर कोई भी एफ़आईआर दर्ज नहीं है तो फिर ये मामला आया कहां से? मुझे इंसाफ़ चाहिए. रघुवर सरकार दोषी है.
वो कहते हैं कि, ऐसा दर्दनाक मौत भगवान किसी को भी न दे. मेरे बच्चों की मौत के लिए यहां की राजनीति ज़िम्मेदार है. राजनीति के तहत ही बच्चों का किडनी निकालते हुए बाहर का वीडियो लोगों को दिखाया गया और उन्हें कुछ कर गुज़रने के लिए उकसाया गया. ये इस देश के लिए कितनी शर्म की बात है कि अभी अदालत में इस बारे में सुनवाई नहीं हुई है. मुख्य आरोपी जेल के बाहर हैं.
इस घटना के चश्मदीद व मृतकों के बड़े भाई उत्तम कुमार वर्मा उस रात को याद करते हुए बताते हैं कि, हम तीनों भाईयों ने मिलकर शौचालय बनाने का काम शुरू किया था. उस शाम क़रीब 7 बजे उस गांव में ‘विकास सेफ्टी टैंक’ का कुछ बोर्ड लगाकर लौट रहे थे. वहां क़रीब 70-80 लोग बैठे हुए थे. उन्होंने हमें पकड़ कर बच्चा चोर कहने लगे. हमने उन्हें बताया कि हम बच्चा चोर नहीं हैं. मैंने अपना आईडी कार्ड दिखाया. विकास के पास उस समय आईडी कार्ड नहीं था. उन्होंने हमें मारना शुरू कर दिया. किसी तरह से उन्हें समझाकर अपने भाई गौतम को कॉल किया और विकास का आईडी कार्ड लाने के बोला. गौतम के साथ-साथ दादी और उसका दोस्त गंगेश भी आ गया.
वो आगे बताते हैं कि, पुलिस प्रशासन को आने में एक घंटा लग गया. पुलिस के आते ही उनमें फिर से जोश आ गई. पुलिस ने खुद को बचाने के लिए बोल दिया कि बच्चा चोर है तो मारो. बस फिर क्या था. सब कुछ ख़त्म हो गया.
उत्तम भी इस घटना में बुरी तरह ज़ख़्मी हुए थे, लेकिन किसी तरह से वहां बच निकलने में कामयाब रहे.
वो कहते हैं कि, वोट बैंक की राजनीति के चलते मेरा भाई मारा गया. सरकार स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया की बात करती है, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा ज़ीरो है तो इसका क्या मतलब? हमने मोदी को वोट दिए. कई बार उन्हें ट्वीट किया, कई पत्र भेजे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
24 साल के गंगेश कुमार गुप्ता के छोटे चाचा जितेन्द्र कुमार गुप्ता बताते हैं कि, भईया अभी भी सदमे में हैं. उसकी शादी के लिए हम लड़की देख रहे थे. लेकिन 18 पुलिस वालों की नौजूदगी में उनके ही जीप से उतार कर उन जंगलियों ने हमारे बच्चों को मार डाला. पुलिस ने उन्हें बचाने के लिए एक फायरिंग तक नहीं की. हद तो यह है कि जिन्हें हमने वोट देकर अपना सांसद व विधायक बनाया, वो हमें पूछने तक नहीं तक नहीं आए. हमारे लिए तो सरकार व प्रशासन दोनों ही हमेशा के लिए ख़त्म हो चुका है.
गंगेश का पूरा परिवार गोरखपुर में रहता है. वो डेढ़-दो साल पहले अपने चाचा के घर आया था. यहां उसने पेन्ट की दुकान खोली थी. वो परिवार का इकलौता बेटा था. उसकी तीन बहने हैं. उनके घर वालों को अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा है कि गंगेश अब इस दुनिया में नहीं है.
गौरतलब रहे कि झारखंड में बच्चा चोरी की अफ़वाह में 11 लोगों की जान गई हैं. और इनसे अलग 14 लोग बेरहमी से पीटे गए. इस घटना पर कोल्हान के प्रभारी आयुक्त की अध्यक्षता में एक जांच कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दी.
लेकिन ये रिपोर्ट इन चारों की मौत के लिए कुछ और ही कहानी पेश की है. इस रिपोर्ट की माने तो ये मामला ज़मीन की दलाली को लेकर हुआ.
रिपोर्ट ये बताती है कि भीड़ के ज़रिए मारे गए तीन युवा ज़मीन खरीद-फरोख़्त के लिए गांव गए थे. गांव में जिस जगह पीटा गया वहां सुनसान था एवं बिजली नहीं थी.
जबकि मृतक का साफ़ तौर पर कहना है कि इस घटना का दूर-दूर तक ज़मीन की दलाली से कोई संबंध नहीं है. सरकार की ये रिपोर्ट गुमराह करने वाली है और आरोपियों को बचाने के लिए तैयार की गई है.
नागाडीह के इस घटना को गुज़रे 9 महीने पूरे होने को हैं. लेकिन आज भी यह परिवार अपने सदमे से उभर नहीं पाया है. हमें याद है कि उत्तम के दादा घर के बाहर ही अपने पत्नी व पोतों के चले जाने के गम में दिन भर दरवाज़े पर ही बैठे रहते हैं. जब हमने उनसे बात करने की कोशिश की तो वो कुछ नहीं बोले, बस रोते हुए अपने हाथ जोड़ लिए.