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खुश्बू सिन्हा : पटना की बेटी जिस पर हमें नाज़ होना चाहिए

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net

पटना : किसी ज़रूरतमंद को आपकी एक छोटी सी मदद आपको इतना बड़ा बना सकती है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते.

पटना की खुश्बू सिन्हा ने भी यही किया था. एक छोटी सी मदद से 30 साल की खुश्बू सिन्हा आज पूरे देश में ‘करोजन सिंड्रोम’ से पीड़ित बच्चों के लिए किसी ‘मसीहा’ से कम नहीं हैं. 

एक मोटर मोबाईल कम्पनी में नौकरी करने वाली खुश्बू अब नौकरी छोड़ चुकी हैं. अब वो अपनी ज़िन्दगी सिर्फ़ देश भर में रहस्यमय बीमारी से जूझ रहे बच्चों को बीमारी से निजात दिलाने पर खर्च कर रही हैं. खुश्बू के प्रयासों से आज कई बच्चों की ज़िन्दगी बच गई है.

TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में खुश्बू बताती हैं कि, ये सबकुछ महज़ एक इत्तेफ़ाक़ था. पटना में मैं एक ब्यूटी पार्लर में जाती थी. एक दिन अचानक मेरी नज़र इसी पार्लर में 9 साल की बच्ची शैली पर पड़ी. उसकी आंखें सामान्य से बहुत बड़ी थी. वो बिल्कुल ‘एलियन’ जैसी दिख रही थी.

खुश्बू आगे बताती हैं कि, शैली खुद ही मेरे पास कुर्सी लेकर आई और मुझसे कहा, “दीदी बैठ जाइए.” मैं एकदम शुन्य स्थिति में आ गई. मैंने पार्लर में शैली के आंखों के बारे में पूछा. जवाब मिला —यह बचपन से ऐसी ही है.

खुश्बू बताती हैं कि, शैली के पिता गार्ड हैं. उसके परिवार में पांच लोग हैं. यानी वो चाहकर भी इसका इलाज नहीं करवा सकते थे. मेरे अंदर से आवाज़ आई कि इसकी मदद करनी चाहिए. सरकारी अस्पताल में शैली को दिखाया तो डॉक्टर्स की समझ में बीमारी ही नहीं आई. बाद में एक डॉक्टर ने बताया कि इसे ‘करोजन सिंड्रोम’ है. इसमें आंखों के सॉकेट छोटे होने के कारण आंखें बाहर निकल जाती हैं. भारत में इसका इलाज सिर्फ़ डॉक्टर कृष्णाराव करते हैं. इसमें 30 लाख रुपए खर्च आता है.

वो आगे बताती हैं कि, ये जानकारी मिलते ही मेरा दिल बैठ गया. मैं चाहकर भी इतना पैसा कहीं से ला नहीं सकती थी. खुद 25 हज़ार रुपये की तनख्वाह से पूरा घर चलाती हूं. घर का सारा खर्च मुझे ही देखना होता है, क्योंकि पापा कोई काम नहीं करते. और मेरा कोई भाई भी नहीं है, दो बहनों की शादी करनी है. मेरा दिल परेशान हो गया. शैली के घर वाले तो पहले ही परेशान होकर अब इसके बारे में सोचना छोड़ दिया था.

खुश्बू बताती हैं कि, कई दिनों तक सोचती रही कि आख़िर क्या करना चाहिए. एक दिन अचानक से दिमाग़ में आया और मैंने बीइंग ह्यूमन को शैली की फोटो के साथ एक मेल किया. क्योंकि मैंने सलमान खान की दरियादिली के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. वहां से अगले दिन ही रिप्लाई आ गया. वो तैयार थे. अब हम शैली को लेकर बंगलुरू गए. डॉक्टर कृष्णाराव ने शैली का इलाज किया. इस इलाज का सारा खर्च यानी क़रीब 30 लाख से ज्यादा रूपये सलमान खान ने दिए.

खुश्बू बताती हैं कि, शैली बहुत समझदार लड़की है. जब वो हमारे साथ थी तो उसे अच्छा खाना मिलता था तो वो कम खाती थी. खाना बचाकर अपनी बहनों और मम्मी के लिए ले जाती थी.

खुश्बू कहती हैं, मैं अपनी नौकरी करती थी. मैंने मानवता के लिए यह किया. मुझे अच्छा लगा. इसके बाद इसे प्रचार मिला. सलमान खान का नाम जो जुड़ा था. कहीं किसी जगह शैली के इलाज की ख़बर पढ़कर मुझे फेसबुक पर मुज़फ़्फ़रनगर से अमरीन का मैसेज़ आया. उनका 3 साल का बच्चा दाइम खान भी इसी तरह की बीमारी से पीड़ित था. हालांकि शैली के बाद मैंने तय किया था कि अब बस हो गया. अब कोई समाजसेवा नहीं करना. क्योंकि मेरा खुद का काम इससे प्रभावित हुआ था. लेकिन दाइम के फोटो देखकर मुझे फिर उस पर प्यार आ गया. मैंने उसका फोटो भी सलमान खान को मेल किया. इसके इलाज का खर्च इंगा हेल्थ फॉउंडेशन ने उठाया. यह भी बीइंग ह्यूमन से ही जुड़ी हुई है.

वो आगे बताती हैं कि, अब बंगाल की 9 महीने की माही साहा का भी पिछले सप्ताह ही ऑपरेशन कराया है. अब नौकरी छोड़ दी है और नई तलाश रही हूं.

शैली के नाम का टैटू खुश्बू के हाथ पर अब भी लगा हुआ है. खुश्बू कहती हैं —इस लड़की ने ही मेरी ज़िन्दगी बदली है.

खुश्बू आख़िर में कहती हैं, वैसे मैंने किया कुछ भी नहीं, बस मैं ज़रिया मदद बन गई. अब दो दिन पहले की सुन लीजिए. 12 साल के तरुण को ब्लड कैंसर है. उसके पिता मज़दूरी करते हैं. मैंने उसकी मदद के लिए फेसबुक पर लिखा तो एक अस्पताल ने उसका ज़िम्मा ले लिया है. अब उसका ऑपरेशन होना है.

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