Home Lead Story हे राम … बापू को बिहारी जन का सलाम

हे राम … बापू को बिहारी जन का सलाम

TwoCircles.net News Desk

पटना : महात्मा गांधी के 70वीं शहादत के अवसर पर पटना इप्टा और शहर के दो दर्जन से अधि‍क सांस्कृतिक सामाजिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधन में दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम ‘हे राम… बापू को बिहारी जन का सलाम’ की शुरूआत भिखारी ठाकुर रंगभूमि,  दक्षिणी गाँधी मैदान में हुआ.

कार्यक्रम की शुरूआत में बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए कहा कि, पटना के कलाकार-साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी और समाजिक कार्यकर्त्ता अपने अंदाज़ में बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष कार्यक्रम ‘हे राम… बापू को बिहारी जन का सलाम’ का आयोजन कर रहे हैं. इसके तहत नाटक, गीत, कविता पाठ और जन-संवाद के ज़रिए आम जन से महात्मा गाँधी की शहादत के मायने और वर्तमान समाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर बहुआयामी विमर्श किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि आज हमारे देश में जो माहौल पैदा किया जा रहा है, उसमें गांधी की प्रासंगिकता काफ़ी बढ़ गई है. आज हमें गांधी के विचारों को याद करने और उस पर चलने की ज़रूरत है. बापू चाहते थे कि देश के लोग आपस में मिलकर रहें. वे आपस में लड़ें नहीं. नफ़रत की संस्कृति ख़त्म हो. हम भी यही चाहते हैं. इसलिए हम उन्हें याद कर रहे हैं. बिहारी जन, की ओर से यह बापू को सलाम है. यह कार्यक्रम झूठ, नफ़रत, हिंसा के माहौल में मानवीय मूल्यों की आवाज़ है. 

इसके बाद पटना इप्टा के कलाकारों ने ‘जोगीरा’ प्रस्तुत किया.

जन-संवाद के क्रम में वरिष्ठ पत्रकार नासिरूद्दीन ने आज़ादी के ठीक पहले नफ़रत के माहौल में महात्मा गाँधी के बिहार दौरे और यहां साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए किए गए उनके प्रयास पर चर्चा की.

उन्होंने गांधी के विचारों के ज़रिए लोगों को गांधी से रू-ब-रू कराया.

उन्होंने बताया कि गांधी जी ने कहा था, ‘मुसलमान अगर समझें कि हम हिन्दुओं को मिटा देंगे और हिन्दू समझें कि हम मुसलमान को मिटा देंगे, तो इसका नतीजा आखि‍र क्या होगा. मुसलमान हिन्दुओं को मिटाकर इस्लाम धर्म को ऊंचा कभी नहीं उठा सकते, न हिन्दू मुसलमानों को मिटाकर हिन्दू धर्म को ऊंचा उठा सकते हैं. अलग अलग धर्म तो एक ही वृक्ष की अलग-अलग डालियां और पत्ते हैं. इतना समझ लें तो काफ़ी है. शास्त्रों में भी कहा गया है कि जो दूसरों के धर्म की निंदा करता है, वह अपने ही धर्म की निंदा करता है.’ 

उन्होंने कहा कि किस तरह गांधी अपने धर्म के प्रति आस्थावान थे. मगर यह आस्था दूसरे धर्म के साथ उनके रिश्ते में कहीं से बाधा नहीं बनती थी.

नासिरूद्दीन ने गांधी जी की बात के हवाले से यह बात और साफ़ की. गांधी जी ने कहा था, ‘मैं कहता हूं कि मैं हिन्दू हूं और सच्चा हिन्दू हूं और सनातनी हिन्दू हूं. इसीलिए मैं मुसलमान भी हूं, पारसी भी हूं, क्रिस्टी भी हूं, यहूदी भी हूं. मेरे सामने तो सब एक ही वृक्ष की डालियां हैं. तो मैं किस डाली को पसंद करूं और मैं किसको छोड़ दूं? किसकी पत्तियां मैं ले लूं और किसकी पत्तियां मैं छोड़ दूं. सब एक हैं. ऐसा मैं बना हूं. उसका मैं क्या करूं? सब लोग अगर मेरे जैसा समझने लगें तो पूरी शांति हो जाए.’

इनका मानना था कि त्याग, प्रेम, सहिष्णुता व भाईचारे के बिना देश की प्रगति संभव नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि आज जब देश में नफ़रत की राजनीति की जा रही है तब गाँधी के विचारों को मज़बूती से जनता के बीच ले जाना होगा.

आज के कार्यक्रम में ‘द स्ट्रगल’ के द्वारा नाटक प्रस्तुत की गई जिसके निर्देशक एवं लेखक रमेश कुमार रघु थे. इसमें भाग लेने वाले कलाकार रौशन कुमार, सन्नी कुमार आदि थे. दूसरी प्रस्तुति पटना इप्टा द्वारा प्रेमचुद्र जी कहानी पर आधारित नाटक ‘सवा सेर गेहूं’ थी. इसका नाट्य रूपांतरण अवधेश और निर्देशन परवेज़ अख्तर ने किया. इसमें भाग लेने वाले कलाकार थे -दीपक कुमार, सूरज पाण्डेय, समता कुमार, विकास श्रीवास्तव, संजय कुमार, रोशन कुमार, प्रभात कुमार.

इसके बाद तीसरा नाटक हसन इमाम द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक ‘पोल खुला पोर-पोर’ था. इसमें भाग लेने वाले कलाकार थे -गंगाधर तन्तु बाई, रतनेश पाण्डेय, पवन यादव. 

अंत में हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित और मोहम्मद जहांगीर द्वारा निर्देशीत नाटक ‘भोला राम का जीव’ प्रस्तुत किया गया. यह सरकारी दफ्रतरों में हो रहे भ्रष्टाचार पर आधरित था. इसमें भाग लेने वाले कलाकार मोहित राणा, सौरभ सागर थे. बीच-बीच में पटना इप्टा द्वारा जनगीत पेश किया गया और कविता पाठ किया गया.