आसमोहम्मद कैफ।बरेली
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यह शहर पूरी तरह से गम में डूबा हुआ है,रास्ते बंद कर दिए गए है,पूरे शहर बेइंतहा भीड़ है,अनुमान है कल 20 लाख से ज्यादा लोग बरेली पहुंच रहे है.एक किमी की दूरी तय करने के लिए 5 घण्टे लग रहे है.ऐसा कल शाम से हो रहा है बरेली में कल से रुक-रुक बारिश हो रही है मगर बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर है। ऐसा कल शाम से हुआ है जब बरेली की मस्जिदों से लोगो ने इमामो की कांपती और रंज में डूबी आवाज़ सुनी इसमें ऐलान किया गया कि ताजूशरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा उर्फ़ अजहरी मियां के अब इस दुनिया से चले गए.
यह वही अजहरी मियां है जिन्हें हाल ही में दुनिया के 50 सबसे शक्तिशाली मुसलमानो में एक माना गया था इन्हें 22 वा स्थान मिला था .वो बरेली के आला हजरत अहमद रज़ा साहब के पोते भी थे.
अजहरी मियां ने पिछले साल पदयात्रा के दौरान यहां पहुंचे राहुल गांधी से मिलने के लिए इंकार कर दिया था.वो संजय दत्त और अमर सिंह के घण्टो प्रतीक्षा करने के बाद भी उनसे नही मिले थे इससे पहले उन्होंने कई ओहदे ठुकरा दिए थे.
इस्लामिक विद्वान अजहरी मियां को पूरी तरह से सियासत से दूरी बनाने के लिए हमेशा याद किया जाएगा उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इस्लामिक शरीयत पर अमल करके गुजार दी.
कल शाम मगरिब की नमाज़ पढ़ने के बाद उनका शरीर निढाल हो गया और उनके दामाद में उनके दुनिया से चले जाने की खबर दी. बताया जाता है कि दुनिया भर उनके करोड़ो अनुयाई है.
उनके प्रतिनिधि मौलाना अंजुम अली एडवोकेट ने हमें बताया कि उन्होंने अपनी सारी जिंदगी इस्लाम के कानून पर अमल कर गुजार दी वो महानता की परकाष्ठा थे.आलमी इस्लामजगत में आला हजरत के बाद उन्हें दूसरा सबसे ज्यादा इल्म जानने वाली सख्शियत माना जाता रहा है.
बरेली में आज पूरी तरह से मातम है इनकी जगह कोई नही ले पाएगा.
मिस्र यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने से पहले इन्हें अख्तर रज़ा नाम से पुकारते थे मगर इसके बाद इन्हें अजहरी मियां कहा जाना लगा .75 साल की उम्र में वफात करने वाले अजहरी मियां को कल (रविवार) को 10 बजे सुबह दफनाया जाएगा. उनके एक बेटे असजद रज़ा और पांच बेटियां है.
उनके एक दामाद सलमान रज़ा उनके साथ ही रहते थे.
बाक़ी सब विदेश में है जो कल तक पहुंचगे.
बड़ी इस्लामिक हस्ती अजहरी मियां पर कई किताबें लिखी गईं हैं. इसमे फिलहाल जो किताबें सामने हैं. उसमें हयात ताजुश्शरीया, करामाते ताजुश्शरीया और नवदिरात ताजुश्शरीया है.अंजुम अली के अनुसार शरीयत पर जिंदगी का अमल करने के लिए इन्हें ताजूशरिया कहा जाता था.
1952 में जिस इस्लामियां इंटर कॉलेज में दाखिला लेकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की थी पहले इसी कॉलेज के मैदान में उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाये जाने की खबर थी मगर अब यह जगह कम पड़ गई है. यहां की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो 1963 में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिस्र के शहर काहिरा की विश्व प्रसिद्ध अजहरिया यूनिवर्सिटी चले गए और वहां से तालीम लेने के बाद 1966 में वापस लौटे, तभी से उनके नाम के आगे अजहरी लग गया .वो 2 फरवरी 1943 दुनिया में आये थे 20 जोलाई को वो रुखसत हो गए . उनकी शुरुआती तालीम मदरसा दारूल उलूम मंजरे इस्लाम मे हुई थी. उन्होंने यहां पर उर्दू के अलावा फारसी की भी तालीम हासिल की.
इस एक मौत से दुनियाभर कब मुसलमानो को झटका लगा है.अजहरी मियां ने कई बार फ़िरकों के आपसी मतभेद दूर करने की बात भी कही।उनकी लिखी हुई नात को पूरी दुनिया मे मकबूलियत हासिल थी।