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बचपन में ख़त्म होती ईद की खुशियाँ

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

मीरापुर : रमजान के रहमत के बाद ईद का मुबारक मौका आने वाला हैं. खुशियों का त्यौहार हैं. मुसलमान बढ़ चढ़ कर मनाते हैं. लेकिन अगर इस ख़ुशी में कुछ ऐसो को भी शामिल कर लिया जाये जो अब तक ईद के त्यौहार से महरूम हैं तो खुशियाँ दुगुनी हो जाएगी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए ईद का त्यौहार बेमानी हैं. वो अपना काम करते हैं तब जा कर रोज़ी रोटी कमाते हैं. हालांकि उनकी काम की उम्र नहीं हैं लेकिन फिर भी दूसरा कोई रास्ता नहीं हैं. मीरापुर शाही जामा मस्जिद के इमाम मुफ़्ती अरशद कासमी कहते है “मुसलमानो ने फिजूलख़र्च कर अपने ऊपर बोझ बहुत बड़ा कर लिया है वो शादियोँ ,खान पीन और कपड़ो और बड़ा घर बनाने में कर्ज लेकर भी खर्च कर रहे हैं उन्हें खर्चो में कटौती करनी चाहिए और सादगी से रहना चाहिए मगर इन बच्चों को जरूर पढ़ाना चाहिए”.

मीरापुर का सादमान ने ऐसा ही एक बच्चा हैं. अपनी कहानी बताते हुए कहता हैं कि ढाई साल पहले जब वो चौथी क्लास में पढ़ता था तब उसने स्कूल छोड़ दिया था. उसके पिता शरीफ (40)कपड़े की फेरी लगाने का काम करते हैं. वो चार भाई बहनों में सबसे बड़ा है. आसपास में कोई भी दसवीं तक नही पढ़ा है,मैं ढाई साल से काम सीख रहा हूँ.मिस्त्री (दुकानमालिक) मुझे एक रुपया नही देता. कभी-कभी ईद आने पर 50 रुपए देता है.दुकान पर चार और भी बच्चे है वो सभी के साथ ऐसा ही है.

सादमान के चाचा सरताज के अनुसार “मैं भी बहुत शौक से पढ़ रहा था मेरे अब्बू भी यही चाहते थे वो मजदूरी करते थे मगर मुझे मेहनत से पढ़ा रहे थे मगर ना ही तो वो पढ़ाई का खर्च उठा पा रहे थे और आगे की पढ़ाई महँगी भी दिखाई दे रही तो दसवीं के बाद नही पढ़ पाया और मैं कपड़े की फेरी करने लगा मेरा हाल देखकर सादमान की पढ़ाई छुड़वा कर उसे छत का पंखा ठीक करने की दुकान पर भेज दिया ताकि जल्दी ही मिस्त्री हो जाये और फिर घर चलाने में मदद करें. रोटी कपड़े की जरूरत पहली है”.

हालांकि नाबालिग बच्चो से काम करना जुर्म हैं लेकिन बाल श्रम विभाग के पास इस बात का कोई आंकड़ा नही है कि सादमान जैसे कितने बच्चे अपने गरीबी से जूझते हुए काम कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सहायक श्रम आयुक्त शमीम अख्तर हमे बताते है कि “सरकार ऐसे बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है और इसके लिए एक सरकारी पोर्टल ‘पेंसिल’बनाया गया है जहां आप बचपन को ‘किल’करने की शिकायत कर सकते है हम संबद्ध दोषी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे और बाल मजदूरी से मुक्त कराये गये बच्चे की पढ़ाई लिखाई का ख्याल रखेंगे.14 साल से कम उम्र के बच्चे अगर कहीं काम करते हैं तो यह कानूनन अपराध है और बच्चे के पिता और दुकान मालिक के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है”.

मगर कानून की सख्त कार्रवाई की यह धमकी गरीबो पर कोई असर नही करती,स्थानीय बस अड्डो,सिनेमा हॉल के बाहर ,चाय की दुकानों और दूसरे भीड़भाड़ वाले इलाकों में मासूमों के पेट पर बंधे पत्थर आपको दिख ही जायेंगे.लोगो के पास कानून से बच निकलने के ढ़ेरों रास्ते है जैसे सुप्रीम कोर्ट ने एक अपील के बाद स्कूल से आने के बाद 14 साल से कम उम्र वाले इन बच्चो को अपने माँ बाप के साथ काम मे हाथ बटाने की रियायत दे दी तो दूसरा रास्ता निकाल लिया गया.

मीरापुर पुलिस स्टेशन के सामने यामीन (50)फलों के ठेली लगाते है उनका बेटा सुहैल (13) सातवीं में पढ़ता है.पहले वो अपने पिता का सहयोग करता था अब अपनी अलग ठेली पर केले बेचते है.यामीन कहते है ” अभी स्कूल की छुट्टी चल रही है खुदमुख्तार होना सीखा रहे हैं पढ़ लिखकर नौकरी मिलेगी इसकी कोई गारण्टी नही है वैसे भी सरकारें भी पकोड़े बिक़वाती हैं”.

दिनभर स्थानीय लोकल बसों में इन नाबालिग़ बच्चो की भीड़ दिखाई देती है जो कुछ न बेचते रहते हैं,किसी एक बस स्टैंड पर यह संख्या कम से 50 होती है किस बस में कौन सी टीम जाएगी इस पर आपस में तालमेल होता है.पास में ही दुकानदार बच्चो को यह सामान बेचने के लिए देते जिनपर उनका हिस्सा होता है.बस में जूस बेचने वाला जानसठ का नदीम (14) कहता है “वो अब 200 रुपए रोज़ कमा रहा है सर्दी में मूंगफली बेचता तब ज्यादा कमा लेता है ,पापा कुछ नही करते घर रहते है तीन भाई है मैं सबसे छोटा हूँ वो भी काम करते है,पैसा न हो तो कहीं भी इज्ज़त नही होती.

सलमान (15)कहते है “लोग पूछते है तुम पढ़ते क्यों नहीं हो ! अब पेट भरे या पढ़े मेरी खाला के लड़के ने एमए किया है कपड़े की फेरी लगा रहा है जब कपड़े की फेरी ही लगानी है पढ़कर क्या मिलेगा उसमे में भी पैसा खर्च होता है.”

कुतुबपुर रोड पर मोटरसाइकिल मैकेनिक लियाक़त ने अपने बेटे शानू को मोटरसाइकिल ठीक करना सीखा रहे हैं ,शानू ने हाल ही में 12वी की परीक्षा पास की है .लियाक़त कहते है “सरकारों का मुसलमानो के प्रति रवैया पक्षपाती होता जा रहा है,पढ़ाई नही छुड़वा रहे हैं मगर नौकरी न मिले तो कम से कम खाली हाथ तो न हो”.

सिलाई की दुकानों पर भी ऐसे बच्चो की भीड़ है और कहानी सब एक जैसी है ,आर्थिक परेशानी से जूझ रहे परिवार जल्दी आर्थिक लाभ चाहते है.अगर परिवार का बच्चा 50 रुपए भी कमा लाता है तो एक वक्त की सब्ज़ी आ जाती है।

तालिब (15) सड़क के किनारे फल बेचता है अक्सर मुसाफिर ही उससे गाड़ी रोककर फल खरीदते है,तालिब कहता है मैं यह तो नही चाहता कि उस गाड़ी में बैठा हुआ बच्चा मेरी जगह आ जाये मगर मैं यह जरूर चाहता हूँ कि मैं उसकी जगह चला जाऊं.

इन बच्चों की बेहतरी के लिए स्थानीय सियासी रहबरों ने भी कभी कोई गंभीरता नही दिखाई है इस बात लेकर भी लोगों में नाराजगी है तालिब (15)के पिता इदरीस कहते है “वो जो क़ौम की ठेकेदारी लिए फिरते है वो जवाब दे उन्होंने क़ौम के लिए किया क्या है !

क़ौम के मासूम बच्चे अंधेरे में है !सवाल उन तंजिमो से भी है जो मुसलमानो के नाम पर खुद आलातरीन कहलाती है .

समाजवादी नेता बाबर अंसारी इसपर सरकारों के नजरिया को दोष देते है “क्या श्रम विभाग या उनसे ऊपर बैठे अधिकारी नही जानते ये कौन बच्चे है मगर उनकी गंभीरता नही दिखाई देती,अल्पसंख्यक हितों के सरकार के काम कागज पर हो रहे हैं जमीन पर नही !